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Скачать или смотреть जो बांधता है उसी से मुक्ति भी हो सकती है - Gujarati Mi

  • Gujarati Mi
  • 2024-05-12
  • 215
जो बांधता है उसी से मुक्ति भी हो सकती है - Gujarati Mi
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Скачать जो बांधता है उसी से मुक्ति भी हो सकती है - Gujarati Mi бесплатно в качестве 4к (2к / 1080p)

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Описание к видео जो बांधता है उसी से मुक्ति भी हो सकती है - Gujarati Mi

जो बांधता है उसी से मुक्ति भी हो सकती है - Gujarati Mi

जो बांधता है उसी से मुक्ति भी हो सकती है

एक बड़ी प्राचीन कथा है,

एक सम्राट अपने वजीर पर नाराज हो गया,
उसने उसे एक मीनार पर बंद करवा दिया,
वहा से भागने का कोई उपाय न था,
अगर वह कूदे भी तो प्राण निकल जाएं,
बड़ी ऊंची मीनार थी,
उसकी पत्नी बडी चिंतित थी,
कैसे उसे बचाया जाए?

वह एक फकीर के पास गयी,
फकीर ने कहा कि जिस तरह हम बचे,
उसी तरह वह भी बच सकता है,
पत्नी ने पूछा कि आप भी कभी
, किसी मीनार पर कैद थे?
उसने कहा कि मीनार पर तो नहीं,
लेकिन कैद थे,
और हम जिस तरह बचे,
वही रास्ता उसके काम भी आ जाएगा,
तुम ऐसा करो,

उस फकीर ने अपने बगीचे में जाकर,
एक छोटा सा कीड़ा उसे पकड़कर दे दिया,
कीड़े की मूंछों पर शहद लगा दी ,
और कीड़े की पूंछ में एक पतला,
महीन रेशम का धागा बाध दिया,

पत्नी ने कहा,
आप यह क्या कर रहे हैं?
इससे क्या होगा?

उसने कहा, तुम फिकर मत करो,
ऐसे ही हम बचे,
इसे तुम छोड़ दो मीनार पर,
यह ऊपर की तरफ बढ़ना शुरू हो जाएगा,
क्योंकि वह जो मधु की गंध आ रही है,
मूंछों पर लगी मधु की गंध,
वह उसकी तलाश में जाएगा,
और गंध आगे बढ़ती जाएगी जैसे-जैसे कीड़ा आगे बढ़ेगा,
तलाश उसे करनी ही पड़ेगी,
और उसके पीछे बंधा हुआ धागा ,
तेरे पति तक पहुंच जाएगा,
पर पत्नी ने कहा,
इस पतले धागे से क्या होगा?

फकीर ने कहा, घबरा मत,
पतला धागा जब ऊपर पहुंच जाए,
तो पतले धागे में थोड़ा मजबूत धागा बाधना,
फिर मजबूत धागे में थोड़ी रस्सी बाधना,
फिर रस्सी में मोटी रस्सी बाधना।,
उस मोटी रस्सी से तेरा पति उतर आएगा,

उस छोटे से कीड़े ने पति को मुक्ति दिलवा दी,
एक बड़ा महीन धागा!
लेकिन उस धागे के सहारे और ,
मोटे धागे पकड़ में आते चले गए,

तुम्हारा प्रेम अभी बड़ा महीन धागा है,
बहुत कचरे-कूड़े से भरा है,
इसलिए जब धर्मगुरु तुम्हें समझाते हैं,
कि तुम्हारा प्रेम पाप है,
तो तुम्हें भी समझ में आ जाता है,
क्योंकि वह कूड़ा-कर्कट तो बहुत है,
हीरा तो कहीं दब गया है,
इसलिए तो धर्मगुरु प्रभावी हो जाते हैं,
क्योंकि तुम्हें भी उनकी बात तर्कयुक्त लगती है ,
कि तुम्हारे प्रेम ने सिवाय आसक्ति के,
राग के, दुख के, पीड़ा के,
और क्या दिया! तुम्हारे ,
प्रेम ने तुम्हारे जीवन को कारागृह के,
अतिरिक्त और क्या दिया!
तुम्हें भी समझ में आ जाती है,
बात कि यह प्रेम ही बंधन है।

लेकिन मैं तुमसे कहता हूं,
कि जिस कूड़ा-कर्कट को तुम प्रेम समझ रहे हो,
उसी को धर्मगुरु भी प्रेम कहकर निंदा कर रहा है,
लेकिन तुम्हारे कूड़ा-कर्कट में ,
एक पतला सा धागा भी पड़ा है,
जिसे शायद तुम भी भूल गए हो,
उस धागे को मुक्त कर लेना है,
क्योंकि उसी धागे के माध्यम से ,
तुम कारागृह के बाहर जा सकोगे,

ध्यान रखना,
इस सत्य को बहुत खयाल में रख लेना,
कि जो बांधता है उसी से मुक्ति भी हो सकती है,
जंजीर बांधती है तो जंजीर से ही मुक्ति होगी,
कांटा गड़ जाता है, पीडा देता है,
तो दूसरे काटे से उस काटे को निकाल लेना पड़ता है,


जिस रास्ते से तुम मेरे पास तक आए हो,
उसी रास्ते से वापस अपने घर जाओगे,
सिर्फ रुख बदल जाएगा,
दिशा बदल जाएगी,
आते वक्त मेरी तरफ चेहरा था,
जाते वक्त मेरी तरफ पीठ होगी,
रास्ता वही होगा,
तुम वही होओगे,
प्रेम के ही माध्यम से तुम संसार तक आए हो,
प्रेम के ही माध्यम से परमात्मा तक पहुंचोगे;
रुख बदल जाएगा, दिशा बदल जाएगी,

सितारों के आगे जहां और भी हैं,
अभी इश्क के इम्‍तिहां और भी हैं,
जिसे तुमने प्रेम समझा, वह अंत नहीं है,
अभी इश्क के इम्‍तिहां और भी हैं ,

अभी प्रेम की और भी मंजिलें हैं,
और प्रेम के अभी और भी इप्तिहान हैं,
परीक्षाएं हैं,
और प्रेम की आखिरी परीक्षा परमात्मा है,
ध्यान रखना,
जो तुम्हें फैलाए वही तुम्हें परमात्मा तक ले,
जाएगा। प्रेम फैलाता है,
भय सिकुडाता है,

संसार से डरो मत,
परमात्मा से भरो,
जितने ज्यादा तुम परमात्मा से भर जाओगे,
तुम पाओगे,
तुम संसार से मुक्त हो गए,
संसार तुम्हें पकड़े हुए मालूम पड़ता है,
क्योंकि तुम्हारे हाथ में कुछ और नहीं है।

आदमी के पास कुछ न हो तो कंकड़,
पत्थर भी इकट्ठे कर लेता है,
हीरे की खदान न हो तो ,
आदमी पत्थरों को ही इकट्ठे करता चला जाता है,
मैं तुमसे कहता हूं?
हीरे की खदान पास ही है,
मैं तुमसे कंकड़-पत्थर छोड़ने को नहीं कहता,
मैं तुमसे त्याग की बात ही नहीं करता,
जीवन महाभोग है।
जीवन उत्सव है।

मैं तुमसे यही कहता हूं कि ,
जब विराट तुम्हारे भीतर उतरेगा,
क्षुद्र अपने आप बह जाएगा,
तुम विराट का भरोसा करो,
क्षुद्र का भय नहीं,
तुम विराट को निमंत्रण दो,
क्षुद्र को हटाओ मत। ध्यान रखो,
क्षुद्र से लड़ोगे,
क्षुद्र हो जाओगे।

क्षुद्र का बहुत चिंतन करोगे,
कैसे इसे छोड़े, कैसे इससे मुका हों,
उतने ही बंधते चले जाओगे,
क्षुद्र का चिंतन भी क्या करना,
मनन भी क्या करना!
क्षुद्र बांधेगा भी क्या!
उसकी सामर्थ्य भी क्या है!
कूड़ा-कर्कट को -कोई छोड़ने जाता है,
त्यागने जाता है? हीरों को खोजने चलो।
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