💫गुरु जंभेश्वर भगवान की संपूर्ण शब्दवाणी 120 शब्द !! ✨स्वामी राजेंद्र आनंद जी महाराज

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गुरु जंभेश्वर भगवान की संपूर्ण शब्दवाणी 120 शब्द !! स्वामी राजेंद्र आनंद जी महाराज

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गुरु जांभोजी महाराज का स्वरूप तेजोमय में ज्योति स्वरूप है । अतः आजीवन संसारी कार्य करते हुए भी निराहारी थे । गुरु जम्भेश्वर भगवान प्रकृति के अधीन नहीं है " महापण को आधारू " स्वयं अपने ही अधीन है ।
आज से पांच शताब्दी पूर्व श्री गुरु जंभेश्वर भगवान ने अवतार लेकर जनकल्याण के लिए मानवता का संविधान मानव मात्र के सामने रखा जो की युक्ति मुक्ति का अमूल्य खजाना है ।प्रारंभिक अवस्था से ही प्रभु ने दिव्य अलौकिक चमत्कारों से जनमानस को प्रभावित कर सन्मार्ग में लाने का प्रयास किया । 7 वर्ष तक अलौकिक बाल लीला की तथा मौन भंग करके अनुमानतःसंवत 1515 भादवा वदी अष्टमी के दिन प्रथम शब्द का उच्चारण किया । 27 वर्ष गौ सेवा में व्यतीत किये । इसी बीच माता हांसा और पिता लोहट जी का स्वर्गवास होने पर संपूर्ण संपत्ति जनहित के लिए लगाकर 34 वर्ष की अवस्था में समराथल पर निश्चित रूप से विराजमान हो गये ।
संवत 1542 में कार्तिक वदि अष्टमी के दिन अपने वैकुण्ड धाम से दिव्या कलश का आह्वान किया इसमें पवित्र गंगा आदि सभी तीर्थ का जल लाकर प्रविष्ट किया, स्वयं श्री गुरु जांभोजी ने पाहल बनाकर बिश्नोई पंथ का प्रवर्तन किया l जिसमें अनेक राजा महाराजाओं तथा कृषक, ब्राह्मण, क्षत्रिय, आदि लोगों को 29 नियमों पर चलने की प्रतिज्ञा करवा करके "जीया नै जुगति मूवा नै मुक्ति" सुगम मार्गका दर्शन करवाया । संवत 1593 मिंगसर वदि नवमी तक लगातार मानव मात्र को उपदेश दिया । वे उपदेश 'शब्दवाणी' के नाम से प्रसिद्ध है ।
गुरु जंभेश्वर भगवान ने अपने इस काल में अनेकों शब्द कहे थे । किंतु सभी शब्द इस समय उपलब्ध नहीं है क्योंकि काल कराल ने अपने में ही समाहित कर लिये है। प्राचीन परंपरा में वेदों से लेकर संत युग तक ज्ञान उपदेश कण्ठस्थ करने की परंपरा थी । कण्ठस्थ करने की परंपरा बाद में पांडुलिपि में लिखा जाने लगा जिसमें केवल 120 शब्द ही तथा कुछ संध्या मंत्र आदि ही उपलब्ध है, जो आज भी प्रचलित है ।
इस वर्तमान भौतिक युग में विश्व शांति का एकमात्र उपाय है श्री गुरु जांभोजी द्वारा उपचारित शब्दवाणी ही हो सकती है। शब्दवाणी एवं 29 नियम सभी वेद शास्त्रों का सार होते हुए सम सामयिक है । गुरु जंभेश्वर महाराज जी का उपदेश आज से पांच शताब्दी पूर्व उपयोगी वैसा ही वर्तमान समय में भी उपयोगी सिद्ध हो रहा है । शब्दवाणी तत्कालीन ठेठ मारूभाषा में है क्योंकि जनसाधारण को सन्मार्ग में लाने के लिए ही शब्दवाणी का सर्जन हुआ है । शब्दवाणी मारूभाषा के पदों की एक अनुपम विधि है । जिससे संशोधिन के नाम पर शुद्ध मारूभाषा को संस्कृत निष्ठ हिंदी के रूप में बदला है जो की प्रचलित शब्दवाणी का पाठ प्राचीन पांडुलिपि से मेल कम खाता है ।
शब्दवाणी पर अनेक टिकाएं हुए हैं । इस संदर्भ में जंभ संहिता, जम्भ गीता, जम्भसागर, शब्दवाणी, बिश्नोई धर्म प्रकाश. आदि में 29 नियम वे शब्दों की अपने-अपने ढंग से विविध व्याख्या है

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