राजा दशरथ और रावण का महायुद्ध

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दोस्तों रामायण हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है। जो राम जन्म और राम-रावण युद्ध के आलावा खुद में कई और रोचक कथा समेटे हुए है। आज की इस वीडियो में हम आपको एक ऐसे ही कथा बताने जा रहे है। ये तो सभी जानते हैं की, सीता हरण के बाद प्रभु श्रीराम ने लंका पर आक्रमण कर रावण के साथ युद्ध किया था। लेकिन बहुत कम लोग ही ये जानते हैं की रावण ने श्रीराम के पिता और अयोध्या के राजा दशरथ से भी युद्ध किया था। तो दोस्तों रावण और राजा दशरथ के बिच यह युद्ध कैसे हुआ? क्यों हुआ? और इस युद्ध का परिणाम क्या हुआ? यह हम आज की कथा में जानेंगे ...।तब तक दोस्तो आप सब लोगो का बहोत- बहोत स्वागत है हमारी YouTube channel indian reality में।


दोस्तो,रामायण में वर्णित कथा के अनुसार,
अयोध्या के राजा दशरथ और लंकापति रावण के बिच यह युद्ध प्रभु श्रीराम के जन्म से पहले हुआ था। एक बार राक्षसराज रावण तीनो लोकों पर विजय प्राप्त करने के लिया निकले। इस क्रम में उसने अयोध्या को छोड़कर लगभग दसों दिशाओं के सभी राज्य को अपने बाहुबल से जीत लिया। अंत में वह सरयू नदी के तट पर बसे अयोध्या को अपने अधीन करने पहुंचा। उस समय अयोध्या के नरेश राजा दशरथ थे।

सरयू नदी के तट पर पहुंचकर रावण ने अपने सेना को वही विश्राम करने का आदेश दिया। और मामा माल्यवान से कहा -की हे '"मामाश्री हमने दसों दिशाओं के सभी राज्य को जीत लिया है अब केवल सरयू तट पर बसा, ये अयोध्या नगर ही शेष रह गया है। अयोध्या के राजा दशरथ को हमारे शरण में आना शेष है। इसलिए मैं आक्रमण करने से पहले अयोध्या के राज सभा में अपना दूत भेजना चाहता हूँ"।

यह सुनकर माल्यवान ने कहा -हे लंकेश , दूत भेजने की क्या जरूरत है।,राजा दशरथ को तो दशानन रावण की जयकार अभी से सुनाई दे रही होगी और भला वो आपसे बलवान भी नहीं है। यह सुनलर रावण ने कहा कि हे मामाश्री यह मत भूलिये की किसी राज्य पर आक्रमण करने से पहले दूत भेजना हमारी राज पद्धति है और इसका हमने हर युद्ध में पालन किया है।

रावण की बात सुनकर उसके मामा ने कहा -जो आज्ञा दशानन ,मेरे विचार से इस काम के लिए आपको मेरे भ्राता मारीच को दशरथ की राजसभा में भेजना चाहिए।यह सुनकर रावण ने मामा माल्यवान की बात पर सहमति जताई।

इसके बाद लंकापति रावण ने मारीच को अयोध्या की राज्यसभा में अपना सन्देश लेकर भेजा ,जहाँ पहुंचकर मारीच ने राजा दशरथ को लंकापति रावण के सन्देश सुनाया। मारीच ने कहा की हे राजन लंका के राजा रावण सरयू तट पर सेना सहित आ पहुंचे हैं और मुझे ये कहने को भेजा है की या तो कल प्रातः आप उनसे युद्ध करें अथवा उनकी अधीनता स्वीकार कर ले। इसी में आपकी और अयोध्या की भलाई है।

रावण का यह सन्देश सुनकर राजा दशरथ क्रोधित हो उठे और उन्होंने दूत मारीच से कहा -अयोध्या की किसमे भलाई है ये में अच्छे से जनता हूँ। तुम्हारे राजा रावण के अत्याचार से आज तक किसी का भी भला नहीं हुआ है। इसलिए तुम अपने राजा से जाकर कहो की हम रघुवंशी शांतिप्रिय हैं,हम राक्षसराज रावण की तरह किसी पे अत्याचार नहीं करते। किन्तु इसका अर्थ ये नहीं की हम किसी का अत्याचार सहन कर ले। जिस प्रकार तुम्हारे राजा रावण को अपनी संस्कृति प्रिय है उसी प्रकार हमें भी अपनी संस्कृति प्रिय है। इसलिए अपने राजा से जाकर कहो की हम उनकी अधीनता स्वीकार नहीं कर सकते। 

उसके बाद मारीच ने कहा की इसका अर्थ ये हुआ राजन की आप युद्ध चाहते हैं। तब राजा दशरथ ने मारीच से कहा मैंने तो ऐसा नहीं कहा बल्कि मैंने यह कहा है की हम शांतिप्रिय हैं ,किन्तु यदि हम पर कोई आक्रमण करता है तो हम उसका स्वागत युद्ध क्षेत्र में करते हैं। तुम्हारे राजा रावण यदि अशांति प्रिय है और वो युद्ध क्षेत्र में हमसे भेंट करना चाहते हैं तो दशरथ उनका स्वागत तीक्ष्ण बाणो से करेगे।

राजा दशरथ के मुख से ऐसी बातें सुनकर मारीच वहां से चला गया और उसने रावण को सारी बातें बताई। अपने लिए राजा दशरथ की ऐसी बातें सुनकर रावण क्रोधित हो गया और बोला सैनिको तैयार हो जाओ कल सुबह हमें अयोध्या पर आक्रमण करेंगे। राजा की बात सुनते ही सभी सैनिक युद्ध के लिए तैयार हो गये।


अगली सुबह दोनों सेनाएं युद्ध के मैदान में आमने सामने आई। युद्ध शुरू होने से पहले राजा दशरथ और लंकापति दोनों ने एक-दूसरे की सेनाओं को देखा। फिर राजा दशरथ ने रावण से कहा -हे लंकेश रावण तुम इतनी विशाल सेना लेकर अयोध्या पर क्यों आक्रमण करने आये हो ?उसके बाद रावण ने राजा दशरथ के प्रश्नो का जवाब देते हुए कहा -हे दशरथ तुमने देवताओं की सहायता से पृथवी पर जो अपना अधिपत्य जमाया हुआ है ,मैं पृथ्वी को उससे मुक्त कराने आया हूँ। अगर इस धरती पर किसी का स्वामित्व रहेगा तो केवल लंकेश रावण का। मुझसे युद्ध करने आये हो तो बातें मत करो युद्ध करो युद्ध।

ऐसा कहते हुए रावण ने राजा दशरथ से युद्ध आरंभ कर दिया.. दोनों ही अलग-अलग शस्त्रों से एक दूसरे पर वार करने लगे ...। दोनों सेनाओं मैं महा भयंकर युद्ध आरंभ हो गया..। राजा दशरथ और लंकापति रावण काफी समय तक एक दूसरे पर अलग-अलग शास्त्रों से वार करते रहे लेकिन दोनों के शस्त्र विफल हो रहे थे ....। यह देख राजा दशरथ ने अपने शक्ति से ब्रह्मास्त्र प्रकट किया और उसे मंत्रो से सिद्ध कर वे उसे रावण पर चलाने ही वाले थे। उसी समय वहां ब्रह्मदेव प्रकट हुए और उन्होंने दशरथ को वह बाण चलने से रोक दिया।

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