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Скачать или смотреть आर्य कौन हैं ? कहाँ से आए थे ? इन्होंने क्या किए हैं ? क्या यह भारत के बाहर से आए थे ?

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  • 2024-03-28
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आर्य कौन हैं  ? कहाँ से आए थे ? इन्होंने क्या किए हैं ? क्या यह भारत के बाहर से आए थे ?
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Описание к видео आर्य कौन हैं ? कहाँ से आए थे ? इन्होंने क्या किए हैं ? क्या यह भारत के बाहर से आए थे ?

#आर्य_कौन_है ?
भारत आयें आर्यों की सम्पूर्ण जानकारी ।

आज से कुछ हज़ार साल पहले #हिमालय से कुछ #आर्य नीचे उतर मैदानी इलाके में बस गए थे . उनकी संख्या में उत्तरोत्तर बृद्धि होती गई और ये पूरे मैदानी इलाके में फ़ैल गए . आर्यों के नाम पर इस पुरे भू भाग को आर्यन या एरियाना या ईरान कहा गया . इस पूरे इलाके को #पारस भी कहा जाता था .चूँकि ये आर्य भारत से आये थे . इसलिए इनकी #जवेस्था भाषा #संस्कृत से बहुत कुछ मिलती जुलती थी . #ऋग्वेद की बहुत सी ऋचाएं इनकी भाषा में ज्यों की त्यों हैं .
आज से 1200 -1300 पहले अरब #आक्रांताओं ने ईरान की समूची धरती पर कब्जा कर आर्यों को जबरन मुस्लिम बनाना शुरू कर दिया . उस दौर में कुछ आर्य लोग भाग कर भारत के गुजरात के तट पर पहुँचे . गुजरात के राजा जादव राणा ने उन्हें एक दूध भरा कटोरा भिजवाया . मतलब साफ़ था कि यहाँ उनके लिये जगह नहीं है . आर्यों ने उसमें थोड़ी शक्कर मिला दी . मतलब यह कि हमें अलग से जगह देने की जरूरत नहीं हम यहाँ दूध में शक्कर की तरह घुल मिल जाएंगे . राजा जादव राणा ने उन्हें गुजरात में बसने की इजाजत दे दी .
चूँकि ये आर्य पारस से आए थे . अतः इन्हें #पारसी कहा गया . तब से आज तक पारसी लोग दूध में शक्कर की तरह हीं इस देश में रहे . कभी इस देश के लिए न बोझ बने और न अपने लिए कोई विशेष पैकेज या आरक्षण की मांग की . कभी देश द्रोही गतिविधि में शामिल नहीं हुए और न कभी इनकी वजह से साम्प्रदायिक हिंसा हीं भड़की .
पारसी लोग #अग्नि , #पृथ्वी व #जल को पवित्र मानते हैं . इसलिए मरने पर दाह संस्कार हेतु ये इन तीनों का प्रयोग नहीं करते . मरने पर लाश को पृथ्वी वआकाश के बीच बने टॉवर ( जिसे ये दाख्मा कहते हैं ) पर रख देते हैं , जिसे गिद्ध नोंच नोंच के खा जाते हैं . ऊँचे पर होने के कारण बदबू नीचे नहीं आ पाती . इस क्रिया के पीछे इनका यह तर्क होता है कि जब तक पारसी जिया दूसरों के लिए जिया . मरने पर भी यह शरीर दूसरे प्राणी के क्षुधा पूर्ति के काम आ जाय तो इससे बढियाँ और क्या हो सकता है ?
आज कल गिद्ध खत्म हो रहे हैं . इसलिए पारसी समुदाय को दाह संस्कार के इस तरीके पर सोचना होगा . वैसे भी दाह संस्कार का यह तरीकाअमानवीय व घृणित है .
जिस प्रकार इस दुनिया से गिद्ध खत्म हो रहे हैं , उसी प्रकार पारसी समुदाय की जनसंख्या भी घट रही है . जब भारत में पारसी लोग आए थे उस समय उनकी संख्या 18000 के लगभग थी . तब से लेकर आज तक इनकी जनसंख्या मात्र 55000 तक पहुँची है . इनकी जनसंख्या का ग्राफ उत्तरोत्तर नीचे गिर रहा है . यहाँ हम विभिन्न काल में हुए जनगणना का डेटा दे रहे हैं -
1941 - 1 ,10, 000 .
2001 - 70, 000 .
2011 - 55,000 .
इनकी जनसंख्या घटने की दर इसी तरह की रही तो 2020 तक इनकी संख्या मात्र 20, 000 रह जायेगी और उस हालत में ये एक समुदाय न होकर एक जन जाति कहलाएंगे .
आइए पारसी समुदाय की घटती आबादी पर विचार करें .
1..पारसी लोग तभी शादी करते हैं जब ये पूर्णतया अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं . इस प्रक्रिया में 40 की उम्र तक पहुँच जाना लाजिम बात है . 40 की उम्र तक पहुँच कर हमसफ़र की तलाश करना बहुत मुश्किल होता है . इसलिए कुछ लोग शादी ही नहीं करते . जो करते हैं वो मात्र एक बच्चे पालने की हीं धारणा रखते हैं . इसलिए पारसी समुदाय में मृत्यु दर ज्यादा व जन्म दर कम होता है .
2..जिस समुदाय में औरतें ज्यादा पढ़ी लिखी होती हैं उस समुदाय में बच्चे कम होते हैं . ऐसा इसलिए होता है कि माएं बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए कम बच्चे पैदा करती हैं . पारसी समुदाय में औरतों के शिक्षा का स्तर शत प्रतिशत है .
3.. पारसी समुदाय में यदि कोई लड़का या लड़की अपने धर्म से इतर शादी कर लेता है तो उसे धर्म च्युत कर दिया जाता है . अब उस लड़के या लड़की की गणना पारसी समुदाय में नहीं की जाती .
4.. पारसी समुदाय की कम जनसंख्या के कारण अच्छा घर बर तलाश करना नितांत मुश्किल काम है . इसलिए कई लड़कियां कुँवारी रह जाती हैं और आगे सन्तान उत्पन्न होने की आशा खत्म हो जाती है .जो लड़कियां समुदाय से बाहर जा शादी करती हैं उनके बच्चों को पारसी नहीं माना जाता है .
पारसी समुदाय को बढ़ाने के लिए किराये की कोख पर भी भारत सरकार विचार कर रही है . इस दिशा में सरकार द्वारा पोषित " जियो पारसी " संस्था इस दिशा में कार्यरत है , पर पारसी पुरोहित ने यह शर्त रखी है की शुक्राणु व अंडाणु पारसी होना चाहिए .
इसके अतिरिक्त सरकार व पारसी समुदाय ने जनसंख्या बढ़ाने के लिए उन दम्पतियों को 1000/- रूपये मासिक देने की मंजूरी दी है , जो तीन बच्चे पैदा करेंगे . मगर इस योजना का लाभ लेने के लिए मात्र 10 लोग हीं आगे आए .
पारसी लोग जिस धर्म को मानते हैं उसे जोरोस्ट्रीयन कहते हैं . जोरोस्ट्रीयन धर्म अपने मूल देश ईरान में अब भी मौजूद है . ईरानी मुस्लिम इस धर्म का आदर करते हैं , क्योंकि यह उनके पूर्वजों का धर्म रह चुका है . ईरान में 25, 000 पारसी रहते हैं . पारसी भी इस देश को अपना देश मानते हैं . ईरान इराक़ युद्ध के दौरान पारसी भी सीमा पर लड़ने गए और देश के लिए अपनी जान गवाईं थीं . ईरानी संसद में पारसियों का एक नुमायंदा जरूर होता है . पूरे विश्व के पारसियों का सम्मेलन ईरान के शहर तेहरान में दो बार हो चुका है .
भारत के भी आज़ादी की लड़ाई में पारसियों का योगदान अप्रतिम रहा है . उद्योग , परमाणु ,सिनेमा ,सेना , राजनीति , संस्कृति जगत आदि में पारसी लोगों का योगदान वर्णनातीत है . आर डी टाटा , ए बी गोदरेज , दादा भाई नौरोजी , फिल्ड मार्शल मानक शाह , होमी जहांगीर भाभा , रुसी मोदी , जुबिन मेहता , बोमन ईरानी , पीनाज मसानी आदि लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी एक अलग पहचान बनाई है .
‪@shivkumarsinghkaushikey2877‬

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