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Скачать или смотреть राम मंदिर के लिए 1 हजार वर्षों तक लड़े गए युद्ध || Ram Mandir || Inda Sahab

  • The Kshatriya Legacy
  • 2024-01-11
  • 9380
राम मंदिर के लिए 1 हजार वर्षों तक लड़े गए युद्ध || Ram Mandir || Inda Sahab
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Описание к видео राम मंदिर के लिए 1 हजार वर्षों तक लड़े गए युद्ध || Ram Mandir || Inda Sahab

कन्नौज के गहड़वाल राजपूत वंश के पांचों सम्राटों (चंद्रदेव, मदनपाल, गोविंदचन्द्र, विजयचंद्र, जयचंद्र) के शासन काल में अयोध्या का चतुर्दिक् विकास हुआ। त्रेता के ठाकुर तथा विष्णु हरी शिलालेख के अनुसार 1130 में गोविंदचंद्र तथा 1184 में जयचंद्र ने श्री राममंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। अवधवासियों के अनुसार आक्रांता से लड़ते लड़ते जयचंद्र की वीरगति के बाद हिंदुओ का सूर्य अस्त हो गया। देश में विदेशी आक्रांताओं का दौर बढ़ने लगा।

भारत पर हो रहे आक्रमणों की इस कड़ी में खानवा के युद्ध के बाद महाराणा सांगा की मृत्यु तथा चंदेरी में मेदिनीराय प्रतिहार की वीरगति के बाद बाबर ने अवध पर विजय के लिए मीरबाकी को सेनापति बनाया। वर्तमान अयोध्या के हंसवर के राजा रणविजय सिंह और उनकी पत्नि जयकुमारी ने अन्य स्थानीय राजपूत शासकों के साथ मिलकर बाबर के सेनापति मीरबाकी द्वारा श्री रामजन्मभूमि पर बाबरी मस्जिद का निर्माण के विरुद्ध युद्ध लड़ा। लगभग 15 दिनों तक जन्मभूमि परिसर रणविजय सिंह के नियंत्रण में रही किंतु अंततः युद्ध में सभी वीरगति को प्राप्त हो गए। मीरबाकी ने 1528 में मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया।

1678-1707 में औरंगजेब के समय पर राजेपुर के ठाकुर गजराज सिंह, सिसिंडा के कुंवर गोपाल सिंह, ठा. जगदम्बा सिंह, बाबा केशव दास और हजारों राजपूतों ने रामजन्मभूमि के लिए दर्जनों लड़ाईया लड़ी। ठाकुर जगदम्बा सिंह का बलिदान आज भी अवध की लोककथाओं में अमर है।

बाबर की मृत्यु के बाद के मुगल सत्ता में जयपुर के शासकों का हस्तक्षेप अधिक रहा। काशी मथुरा वृंदावन सहित उत्तर भारत के यह सभी धार्मिक स्थल मानसिंह जी की जागीरी में आते थे। जयपुर रॉयल के अभिलेखागार के अनुसार 1717 में सवाई जयसिंह द्वितीय ने सरयू नदी के किनारे श्री रामजन्म स्थान खरीद 1725 तक इस मन्दिर का
जीर्णोद्धार करवाया। उत्तर भारत के इन धार्मिक स्थलों पर मिर्जा राजा मानसिंह से लेकर सवाई जयसिंह जी तक के जयपुर शासकों का अधिकार होने के कारण मुग़ल सत्ता द्वारा स्थानीय नवाबों को मंदिर परिसरों से दूर रहने के सख्त निर्देश थे। जयपुर शाही परिवार के पास राममंदिर और आसपास 983 एकड़ के करीब जमीन थी। राम जन्मभूमि का नक्शा जयपुर रॉयल आर्काइव में उपलब्ध है।

सवाई जयसिंह जी की मृत्यु के बाद यह क्षेत्र नवाबों के अधीन रहा। नवाबों के शासन में श्री राम जन्मभूमि पर पुनः मस्जिद का निर्माण होता रहा। अमेठी के राजा बंधालगोती ( जयपुर से निकली एक शाखा) राजपूत वंश के गुरुदत्त सिंह और पिपरा के चंदेल राजा राज कुमार सिंह ने राम मंदिर के लिए नवाब सादात अली खान के साथ लगातार 5 लड़ाइयां लड़ीं

कालांतर में हंसवर परिवार से ही निकले मकरही के चंद्रवंशी राजा ने 1814 -1836 के मध्य अवध के नवाब नरीरुद्दीन हैदर के विरुद्ध राममंदिर के लिए 3 लड़ाई लड़ी
गोंडा के राजा देवी बख्श सिंह ने अवध क्षेत्र के सभी तालुकदारों और छोटे राज्यों को एकजुट किया और 1847-57 के बीच कई लड़ाइयां लड़ीं. इन लड़ाइयों में नवाब वाजिद अली शाह बुरी तरह हार गया. इन लड़ाइयों के दौरान ही एक छोटा चबूतरा और राम मंदिर परिसर में मंदिर का निर्माण किया गया। जन्मभूमि स्थल पर चबूतरे के निर्माण के बाद अमेठी के एक मौलवी अमीर अली द्वारा एक टुकड़ी रवाना की गई, जिसे भीटी के राजकुमार जयदत्त सिंह ने रोनाही गांव के पास रोक दिया। और वहां एक लम्बी लड़ाई हुई तथा कई राजपूत सैन्य दल से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।

1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने मंदिर परिसर पर भविष्य में विकास कार्यों पर रोक लगा दी।

देश आज़ाद हो गया। किंतु 1000 वर्षों से चल रहें इस संघर्ष ने विराम नहीं लिया। राम मंदिर आंदोलन के जनक मेवाड़ के वीरमदेवोत राणावत महंत दिग्विजयनाथ जी ने इस आंदोलन को संगठनात्मक स्वरूप दिया तथा 1969 में अपनी समाधि से पूर्व तक अनवरत इस काम में कार्यरत रहे। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह रघुवंशी ने 1 फरवरी 1986 में पहली बार राममंदिर के ताले खुलवाये। 1949 में केन्द्र तथा राज्य सरकार पर विवादित ढांचे से प्रभु श्री राम की मूर्ति हटाने का दबाव था। उस समय फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरदत्त सिंह जी ने मूर्ति नहीं हटने दी। फलस्वरुप उन्हे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।निर्मोही अखाड़े के संतों के बाद, शायद अशोक सिंघल पहले प्रमुख हिंदू नेता है जिन्होंने स्वीकार किया कि ठाकुर गुरुदत्त सिंह के योगदान ने राम जन्मभूमि के इतिहास की दिशा बदल दी और राम जन्म भूमि पर नियंत्रण के लिए हिंदू संघर्ष की समयरेखा में एक मील का पत्थर स्थापित किया। विवादित ढांचा गिराया गया और आज हम देखते है महंत दिग्विजयनाथ जी की भावी पीढ़ी योगी आदित्यनाथ जी के तप परिश्रम के फलस्वरुप प्रभू श्री राम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है।

लगभग एक सहस्त्र वर्ष के क्षत्रियों के इस संघर्ष के बाद आज क्षत्रियो को कौनसा स्थान प्राप्त है आज स्वयं मूल्यांकन करें

✍ ब्रह्मवीर सिंह कोटड़ी
साभार - अभिषेक आनंद ( आज तक )

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