त्रेतायुगीन समझा जाता है रोहतासगढ़ का चौरासन शिव मंदिर, अपने आप में है रहस्यो का खजाना!(Ep-7)

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त्रेतायुगीन समझा जाता है रोहतासगढ़ का चौरासन शिव मंदिर, अपने आप में है रहस्यो का खजाना!(Ep-7)‪@Gyanvikvlogs‬

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काशी प्रसाद जयसवाल शोध संस्थानसे जुड़े जिले के इतिहासकार डॉ. श्याम सुन्दर तिवारी के मुताबिक इस मंदिर की बनावट: रोहतासन मंदिर एक ऊँचे आधार पर स्थित है, जिसपर दो वेदिकाएँ बनती हैं. पश्चिमी निचली वेदिका बड़ी है, जबकि पूर्वी वेदिका उससे छोटी तथा ऊँची है. इसी वेदिका पर पश्चिमाभिमुख मंदिर अवस्थित है. वेदिकाओं पर जाने के लिए पश्चिम में एक सोपान है, जिसमें 84 सीढ़ियाँ बनी हैं, जो 8-8 इंच ऊँची हैं. प्रत्येक दसवीं सीढ़ी एक छोटी वेदिका बनाती है. इस सोपान क्रम के दोनों ओर कगार बने हैं. मंदिर 28 फीट लंबे-चौड़े आधार पर बना है!
गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है. गर्भगृह के बाहर दो भित्ति स्तंभों के ऊपर छोटा सा मंडप है. मंडप के भीतर मंदिर के दरवाजे को फूलों से अलकृत किया गया है. ऊपर मध्य में शिवलिंग जैसी छोटी प्रतिमा है. इसके दोनों ओर दो जोड़ा हंस बने हैं, जो अपनी चोंच में कमल की कली लिए हुए है और गणेश को समर्पण की मुद्रा में हैं. नीचे दरवाजे के अगल-बगल द्वारपाल बने हुए हैं, जिन्हें अपने खंजरों को खींचते हुए प्रदर्शित किया गया है. हालांकि गर्भगृह के भीतर विशेष नक्काशी नहीं है, किंतु मंदिर का बाहरी भाग बहुत ही भव्य, आकर्षक और सुंदर है!
मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ बना हुआ है. नंदी मंदिर के सामने यानी पश्चिम की ओर है. मंदिर की छत सपाट है तथा बाद की बनी हुई है. स्पष्ट लगता है कि मंदिर के ऊपर शिखर रहा होगा जो अब नहीं है. कहा जाता है कि इस मंदिर में रोहिताश्व द्वारा पूजा अर्चना की जाती रही, लेकिन यह मंदिर इतना प्राचीन नहीं लगता!एक बात ध्यान देने योग्य है कि रोहतासगढ़ पर बंगाल के शासक शशांक देव का शासन रहा, जो कट्टर शैव था. हो सकता है कि उसी के समय में इस मंदिर की स्थापना हुई हो. नागर शैली के इस मंदिर की वास्तुकला भी पूर्वमध्ययुगीन है. इसपर आदिवासी कला की भी छाप है. इस मंदिर का निर्माण शशांक देव के बाद किसी खरवार राजा द्वारा हुआ है. बाद में इसकी मरम्मती राजा मान सिंह द्वारा कराई गई!

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