कितना हसीं था लम्हा...

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जैसे दूर देश से आया हुआ संदेश होता है
वैसे ही थके मुसाफिर के लिए ठंडा नीर होता है
कि ख़बर लेके आया फरिश्ता जन्नत से
बसेरा अब करेंगे इंसान तेरे संग में

कितना हसीं था लम्हा तुम आए ज़िन्दगी में -2
वरना पड़ा ही रहता गुनाह की गंदगी में
कितना हसीं था लम्हा।

फजलो करम खुदा का हुआ मुझपे यूं मसीह में
विरानगी चमन की बदल गई खुशी में
बदल गई खुशी में,
तू मसीह को लेके आया है मेरी ज़िन्दगी में
वरना पड़ा ही रहता गुनाह की गंदगी में
कितना हसीं था लम्हा।

ऐतबार तुझ पे मेरा तुझ बिन कैसे जियूं मैं
मुहब्बत जो तेरी मुझसे तुझे प्यार ही करूं मैं
तुझे प्यार ही करूं मै,
तू अगर न राह दिखाता करता न बंदगी मैं
वरना पड़ा ही रहता गुनाह की गंदगी में
कितना हसीं था लम्हा।

है नूर - ऐ - मन येशु का यही तो नाम है वो
मीठा सुरूर जिसमे मुहब्बत का जाम है वो
मुहब्बत का जाम है वो,
मुहब्बत से बाप की तो महरूम अब नहीं मैं
वरना पड़ा ही रहता गुनाह की गंदगी में
कितना हसीं था लम्हा।

गीतकार एंड कम्पोज़र : राजेश
संगीत : पवन जी, पठानकोट

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