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वीडियो जानकारी: 23.05.24, वेदान्त संहिता, ग्रेटर नॉएडा
बाबा साहेब अंबेडकर और हिन्दू धर्म || आचार्य प्रशांत (2024)
📋 Video Chapters:
0:00 - Intro
0:45 - बाबासाहेब अंबेडकर का आक्रोश और धर्म परिवर्तन
1:59 - धर्म की शोषक व्यवस्था और समाज सुधार
11:01 - ऋषियों का श्रम और करुणा
18:43 - बाबासाहेब अंबेडकर का आक्रोश और धर्म परिवर्तन
23:31 - हिन्दुत्व को कैसे बचाएँ ?
28:03 - वर्ण व्यवस्था बनाम नस्लवाद
34:28 - जाति हमारी आत्मा,बोध हमारा गोत्र
35:10 - समापन
विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों और उनके द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों पर चर्चा की है। आचार्य जी
ने बताया कि अंबेडकर ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक समाज में सुधार लाने का प्रयास किया, लेकिन जब समाज सुधारने के लिए तैयार नहीं था, तो उन्होंने हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाने का निर्णय लिया।
आचार्य जी
ने यह भी बताया कि अंबेडकर ने 22 प्रतिज्ञाएँ की थीं, जिनमें से एक यह थी कि वे हिंदू देवी-देवताओं को नहीं मानेंगे। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि अंबेडकर का उद्देश्य केवल जातिवाद को समाप्त करना नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज के सभी शोषण के प्रतीकों को चुनौती दी।
आचार्य जी
ने यह भी कहा कि धार्मिकता में सुधार की आवश्यकता है, और यह कि जातिवाद और अंधविश्वास को त्यागना होगा। उन्होंने यह भी बताया कि वेदांत और बौद्ध धर्म में जातिवाद का कोई स्थान नहीं है।
अंत में, आचार्य जी
ने यह कहा कि समाज को अपने अंधविश्वासों और कुरीतियों को छोड़कर सच्चाई की ओर बढ़ना चाहिए, और अंबेडकर के विचारों को समझना और अपनाना चाहिए।
प्रसंग:
बाबा साहब ने हिन्दू धर्म क्यों छोड़ा?
अंबेडकर ने कौन सा धर्म अपनाया है?
क्या अंबेडकर दलित थे?
क्या अंबेडकर ब्राह्मण होते हैं?
अंबेडकर कौनसी जाति के थे?
अंबेडकर कौन बिरादरी के थे?
का जाति:।
जाति रीति च।
न चर्मणो न रक्तस्य न मांसस्य न चास्थिन:।
न् जातिरात्मनो जातिर्व्यवहारपरकल्पिता।।२०।।
शरीर (त्वचा, रक्त, हड्डी आदि) की कोई जाति नहीं होती।
आत्मा की भी कोई जाति नहीं होती।
जाति तो व्यवहार में प्रयुक्त कल्पना मात्र है।
~ निरालंब उपनिषद् (श्लोक १०)
तर्हि को वा ब्राह्मणो नाम।
ब्राह्मण किसे माना जाए?
जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त न हो;
जाति, गुण और क्रिया से भी युक्त न हो;
काम-रागद्वेष आदि दोषों से रहित,
आशा, मोह आदि भावों से रहित;
दंभ, अहंकार आदि दोषों से मुक्त;
वही ब्राह्मण है।
ऐसा श्रुति, स्मृति-पुराण
और इतिहास का अभिप्राय है।
यही उपनिषद् का मत है।
~ श्लोक 9, वज्रसूचिका उपनिषद् (सार)
न त्वं विप्रादिको वर्णो नाश्रमी नाक्षगोचरः।
असङ्गोऽसि निराकारो विश्वसाक्षी सुखी भव।।
न तुम ब्राह्मण इत्यादि किसी वर्ग के हो, न वर्ण व्यवस्था से तुम्हारा सम्बन्ध है। जो कुछ भी आँख द्वारा देखा जा रहा है वो तुम नहीं हो। तुम तो असंग हो, निराकार हो और समस्त दृश्यमान जगत के साक्षी हो।
AG 1.5
1. जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।
~ संत कबीर
2. कबीरा कुआँ एक है, पानी भरै अनेक ।
बर्तन में ही भेद है, पानी सबमें एक ॥
~ संत कबीर
3. एक बूँद एकै मल-मूत्र, एक चाम एक गुद ।
एक ज्योति से सब उत्पना, कौन बामन कौन शूद ॥
~ संत कबीर
4. जाति हमारी आत्मा, प्राण हमारा नाम।
अलख हमारा इष्ट है, गगन हमारा ग्राम।।
~ संत कबीर
5. ऊँचै कुल में जनमिया, जे करणी ऊँच न होई।
सोवन कलस सुरै भरया, साधु निंदया सोइ।।
~ संत कबीर
संगीत: मिलिंद दाते
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