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Скачать или смотреть युधिष्ठिर ये गलती न करते तो बिना लड़े ही हस्तिनापुर के राजा बन जाते, Bigest mistake of Yudhistir

  • शब्द बाण
  • 2021-11-09
  • 19193
युधिष्ठिर ये गलती न करते तो  बिना लड़े ही हस्तिनापुर के राजा बन जाते, Bigest mistake of Yudhistir
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युधिष्ठिर ये गलती न करते तो बिना लड़े ही हस्तिनापुर के राजा बन जाते, Bigest mistake of Yudhistir
युधिष्ठिर को यह काम पड़ा भारी, वरना बिना लड़े ही हस्तिनापुर के राजा बन जाते
एक बार द्वैतवन में रह रहे पांडवों को देखने के लिए दुर्योधन के कहने पर शकुनि, कर्ण और दुशासन योजना बनाई। राजा धृतराष्ट्र से कहा की हम घोषयात्रा करना चाहते हैं। इस समय गोएं रमणिक प्रदेश में ठहरी हुई है और यह समय उनकी गणना करना का उचित समय है। इससे उनके बछड़े, रंग और आयु की गणना कर सकेंगे।
यह सुनकर धृतराष्ट्र ने यह कहकर मना कर दिया कि उस क्षेत्र में पांडव ठहरे हुए अत: तुम उधर ना जाओ तो ही उचित है। गौओं की गणना के लिए किसी दूसरे विश्वासपात्र व्यक्त को भेज दें। यह सुनकर शकुनि ने कहा राजन हम लोग केवल गोओं की गणना करना चाहते हैं। पाण्डवों से मिलने का हमारा कोई इरादा नहीं है। जहां पांडव रहते होंगे हम वहां तो जानकर भी नहीं जाएंगे।

इस तरह शकुनि ने धृतराष्ट्र को मना लिया और दुर्योधन और शकुनि को फिर मंत्री एवं सेना सहित वहां जाने की आज्ञा दे दी। दुर्योधन के साथ हजारों स्त्रियां और उनके भाई सहित सैंकड़ों की संख्या में बोझा ढोने के लिए लोग चले। इस सब लश्कर के साथ दुर्योधन पड़ाव डालता हुआ सर्वगुणसम्पन्न, रमणीय, सजल और सघन प्रदेश में पहुंच गया। वहां गाय, बछड़ों आदि की गणना करते करते वह कुछ लोगों के साथ द्वैतवन के एक सरोवर के निकट पहुंच गया। वहां उस सरोवर के तट पर ही युधिष्ठिर आदि पांडव द्रोपदी के साथ कुटिया बनाकर रहते थे। वे उस समय राजर्षि यज्ञ कर रहे थे।

तभी दुर्योधन ने अपने सेवकों को आज्ञा दी की यहां शीघ्र ही एक क्रीड़ाभवन तैयार करो। क्रीड़ा भवन का निर्माण करने के लिए जब वे द्वैतवन के सरोवर पर गए और वे जब उनके द्वार में घुसने लगे तो वहां के रक्षक मुखिया गंधर्वों ने उन्हें रोक लिया। क्योंकि उनके पहुंचने से पहले ही गंधर्वराज चित्रसेन उस जल सरोवर में क्रीड़ा करने के पहुंचकर जलक्रीड़ा कर रहे थे। इस प्रकार सरोवर को गंधर्वों से घिरा देखकर दुर्योधन के सेवक पुन: दुर्योधन के पास लौट आए। दुर्योधन ने तब सैनिकों को आज्ञा दी की उन गंधर्वों को वहां से निकाल दो। लेकिन उन सैनिकों को उल्टे पांव लौटना पड़ा।

इससे दुर्योधन भड़क उठा और उसने सभी सेनापतियों के साथ गंधर्वों से युद्ध करने पहुंच गए। वहां प्रारंभ में उसने कुछ गंधर्वों को पीटकर बलपूर्वक वह वन में अपने सैनिकों के साथ घुस गया। कुछ गंधर्व ने भागकर चित्रसेन को बताया कि किस तरह दुर्योधन अपनी सेना के साथ बलात् वन में घुसा है। तब चित्रसेना को क्रोध आया और उसने अपननी माया से भयंकर युद्ध किया। कुछ देर में दुर्योधन की सेना रणभूमि से भागने लगी। दुर्योधन, शकुनि और कर्ण को गंधर्व सेना ने घायल कर दिया। कर्ण के रथ के टूकड़े टूकड़े कर डाले।

कौरवों की हार को देखने हुए दुर्योधन के भाई और साथ युद्ध छोड़ पीठ दिखाकर भागने लगे। लेकिन चित्रसेना की सेना ने दुर्योधन और दुशासन को मारने की दृष्टि से घेरकर पकड़ लिया। भागती हुए सेना को घेर घेर कर मारा जाने लगा। लेकिन अंतत: कौरवों की सेना ने सारे बचा खुचा सामान लेकर पाण्डवों की शरण ली और उन्होंने दुर्योधन आदि के गंधर्वों की सेना के घेर लिए जाने का समाचार युधिषिठर को सुनाया।
#Mahabharat
#Bhim
#Yudhisthir

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