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Скачать или смотреть 211. कार्ल मार्क्स - अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत Karl Marx -Theory of Surplus Value

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  • 2025-03-19
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211. कार्ल मार्क्स - अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत Karl Marx -Theory of Surplus Value
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Описание к видео 211. कार्ल मार्क्स - अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत Karl Marx -Theory of Surplus Value

कार्ल मार्क्स - अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत कार्ल मार्क्स ने अपनी पुस्तक दास कैपिटल जो 1867 में प्रकाशित हुई उसमें अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत की चर्चा की है। मार्क्स ने किया है कि पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजीपति श्रमिकों का किस प्रकार शोषण करते हैं तथा पूंजीपति श्रमिकों को उनके श्रम का उचित मूल्य नहीं देते हैं। मार्क्स ने सिद्धांत प्रमुख समाजशास्त्रीय रिकार्डों के श्रम सिद्धांत से ग्रहण किया। श्रम सिद्धांत के अनुसार वस्तु का विनिमय मूल्य उसके उत्पादन में लगाए गए श्रम की मात्रा पर निर्भर करता है। मूल्य वस्तुओं की उपयोगिता या आवश्यकता से निर्धारित होता है। जैसे प्यासे व्यक्ति के लिए पानी का बहुत मूल्य है जबकि तृप्त व्यक्ति के लिए बिल्कुल नहीं।विनिमय मूल्य वह मूल्य है जिस मूल्य पर वस्तु को बाजार में बेचा जाता है। अर्थव्यवस्था की दृष्टि से विनिमय मूल्य महत्वपूर्ण होता है।कार्ल मार्क्स के अनुसार वस्तुओं का विनिमय मूल्य उनकी उपयोगिता अर्थात उपयोग मूल्य पर निर्भर नहीं करता बल्कि उनके उत्पादन में लगाए गए श्रम की मात्रा पर निर्भर करता है।मार्क्स रिकॉर्डों के इस सिद्धांत को स्वीकार करता है कि श्रम ही मूल्य का स्त्रोत है। उत्पादन में केवल एक सामान्य तत्व है और वह है मानव श्रम। विनिमय मूल्य कम या अधिक इस बात पर निर्भर करता है कि उत्पादन में कितना मानव श्रम लगा है।मार्क्स के अनुसार पूंजीपति श्रमिक को उसके श्रम के बदले जीविका योग्य मजदूरी देता है। मजदूर को कम मजदूरी देखकर मालिक यह सुनिश्चित करता है कि उसे मानव श्रम लगातार मिलता रहे। अतिरिक्त मूल्य कार्ल मार्क्स के अनुसार अतिरिक्त मूल्य उन दो मूल्य का अंतर है जिसे मजदूर पैदा करता है और जिसे वह वास्तव में प्राप्त करता है। यह वह मूल्य जिसे पूंजीपति मजदूर के श्रम से प्राप्त करता है जिसके लिए उसने मजदूर को कोई मूल्य नहीं चुकाया है। वास्तविक मूल्य वस्तु के उत्पादन में लगाए गए श्रम के अनुसार होता है। विनिमय मूल्य बाजार में वस्तु के विक्रय से प्राप्त होता है। विनिमय मूल्य वास्तविक मूल्य से अधिक होता है और इस प्राप्त अतिरिक्त धन को पूंजीपति अपने पास रख लेता है। यह शोषण की व्यवस्था है। न्याय की मांग है कि श्रम के परिणाम से उत्पादित अतिरिक्त मूल्य श्रमिक को प्राप्त होना चाहिए परंतु श्रमिक वर्तमान उत्पादन व्यवस्था में उत्पादन के साधनों के स्वामी नहीं है। अतः उत्पादन के साधनों के मालिकों द्वारा उनका शोषण किया जाता है। आधुनिक पूंजीवादी व्यवस्था का यह अन्याय है।
मार्क्स के अनुसार पूंजीपति सदैव अतिरिक्त मूल्य को बढ़ाने की इच्छा रखते हैं। शोषण के माध्यम से पूंजी संचय करते हैं। पूंजी पर उनका एकाधिकार होता है और यह श्रमिकों के कष्ट में वृद्धि करता है। कोकर के शब्दों में - "उनका अंतिम निष्कर्ष यह है कि इन अवस्थाओं को समाप्त करने का एक मात्र उपाय है व्यक्तिगत भाड़े, ब्याज तथा मुनाफे के सभी अवसरों का सर्वनाश। यह परिणाम केवल समाजवादी व्यवस्था के अंतर्गत ही संभव है जिसमें व्यक्तिगत पूंजी का स्थान सामूहिक पूंजी ले लेगी तब ना कोई पूंजीपति रहेगा और न मजदूर। सब व्यक्ति सहकारी उत्पादक बन जाएंगे।" अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत की आलोचना 1. श्रम ही उत्पादन का एकमात्र साधन नहीं है – मार्क्स ने श्रम के अतिरिक्त उत्पादन के अन्य साधनों भूमि, पूंजी, प्रबंधन,साहस और जोखिम को अनदेखा किया है जबकि उत्पादन एवं वितरण की प्रक्रिया में इन सबकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 2. पूंजीपति द्वारा किए जाने वाले अनेक व्ययों का उल्लेख नहीं है – मशीनों की घिसावट, कारखाने में सुधार, बेकारी बीमा, बोनस, श्रमिक सुविधा आदि अनेक प्रकार के व्यय का मार्क्स ने कोई उल्लेख नहीं किया है जबकि उत्पादन प्रक्रिया में यह सब महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। 3.विनिमय मूल्य उपयोग मूल्य पर निर्भर करता है – मार्क्स का यह कथन की मूल्य श्रम के अनुसार निर्धारित होता है यह केवल कल्पना है। बिना उपयोग मूल्य के वस्तु का कोई विनिमय मूल्य नहीं होता। 4. मानसिक श्रम की उपेक्षा – मानव श्रम, शारीरिक के साथ मानसिक भी होता है। उत्पादन प्रक्रिया में शारीरिक के साथ मानसिक श्रम भी लगता है। मार्क्स ने मानसिक श्रम की उपेक्षा की है। तकनीकी ज्ञान, प्रबंधन एवं व्यवसायिक कुशलता, वस्तु के निर्माण एवं बाजार ढूंढने में मानसिक श्रम की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 5. सिद्धांत अस्पष्ट एवं अतिरंजित है – मार्क्स ने अपने सिद्धांत में पूंजी, मूल्य, कीमत जैसे शब्दों की स्पष्ट व्याख्या नहीं की है।
अगर केवल श्रम ही वस्तु के मूल्य का निर्धारक तत्व है तब कीमत में उतार-चढ़ाव क्यों होता है? इसका कोई जवाब मार्क्स ने नहीं दिया है।मार्क्स - "पूंजी केवल वह है जो अतिरिक्त मूल्य उत्पादन करती है‌" अर्थात यंत्र, कच्चा माल, मकान, ईंधन आदि तभी पूंजी जब मजदूरों द्वारा उपयोग किया जाता है जब इनका स्वामी द्वारा उपयोग करें तब यह पूंजी नहीं है। मार्क्स - "मजदूर दुगने या तिगुने कर दीजिए मुनाफा भी स्वयं दुगना या तिगुना हो जाएगा।" क्या उत्पादन एवं वितरण प्रक्रिया में कुशलता, प्रबंधन, संगठन, योग्यता की कोई आवश्यकता नहीं है। 6. विरोधाभास युक्त सिद्धांत – मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत स्वयं में विरोधाभासी है। मार्क्स कहते हैं (i) पूंजीपति लाभ या अतिरिक्त मूल्य प्राप्त करने के लिए नई मशीन लगता है। (ii) मशीनों एवं कच्चे माल आदि से कोई अतिरिक्त मूल्य प्राप्त नहीं होता।दोनों कथन एक दूसरे का विरोध करते हैं। 7. सिद्धांत आर्थिक कम प्रचारात्मक अधिक – मार्क्स का सिद्धांत पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिकों के शोषण एवं पूंजीपतियों के अन्याय का प्रचार करता है। सिद्धांत पूर्णतया सही नहीं है।यह सच है कि पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिकों के श्रम पर पूंजीपतियों द्वारा अतिरिक्त मूल्य के रूप में बड़ी धनराशि एकत्र की जाती है और वह श्रमिकों के हित की अनदेखी करते हैं और उन्हें कम से कम देना चाहते हैं।

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