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Скачать или смотреть How to forming Wheat 🌾 || indian forming 🌾 || animation forming 🌾🌻?

  • T2 MOTIVATION.
  • 2025-06-10
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How to forming Wheat 🌾 || indian forming  🌾 || animation  forming 🌾🌻?
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Описание к видео How to forming Wheat 🌾 || indian forming 🌾 || animation forming 🌾🌻?

How to Wheat cultivation🌾 || indian forming 🌾 || animation forming
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मैं आपको गेहूं की फसल उगाने का पूरा तरीका विस्तृत रूप से शुद्ध हिंदी में बताता हूँ।
गेहूं की फसल उगाने का संपूर्ण विवरण
गेहूं (Wheat) हमारे देश की एक मुख्य खाद्यान्न फसल है, जो लाखों लोगों का प्रमुख भोजन है। इसका सही तरीके से उत्पादन (production) करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण चरणों का पालन (following) करना आवश्यक (necessary) है।
1. खेत की तैयारी (भूमि का प्रबन्धन)
मिट्टी का चुनाव (मृदा का चयन): गेहूं की खेती के लिए बलुई दोमट (sandy loam), दोमट (loam) या भारी दोमट मिट्टी (heavy loam soil) सबसे अच्छी मानी जाती है। ऐसी मिट्टी जो पानी को सोख सके और सही जल निकास (proper water drainage) हो, उत्तम (excellent) होती है।
जुताई (भूमि की तैयारी): सबसे पहले, खेत की गहरी जुताई (deep plowing) करें। यह मिट्टी को पोला (loose) बनाता है, जिससे हवा का संचार (air circulation) अच्छा होता है और जड़ों का विकास (root development) बेहतर होता है। दो-तीन बार हल चलाकर मिट्टी को भुरभुरी (crumbly) बना लें। जुताई के बाद पाटा (plank) चलाएं ताकि मिट्टी समतल (leveled) हो जाए और नमी बनी रहे (moisture retention)।
उर्वरक का प्रयोग (खाद का उपयोग): खेत तैयार करते समय ही गोबर की सड़ी खाद (well-rotted farmyard manure) या कम्पोस्ट खाद (compost manure) का उपयोग करें। यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति (fertility) बढ़ाता है। इसके साथ ही, रासायनिक उर्वरकों (chemical fertilizers) जैसे डीएपी (DAP), पोटाश (Potash) और नाइट्रोजन (Nitrogen) की अपेक्षित मात्रा (required quantity) को मिट्टी में मिलाना आवश्यक है। सामान्यतः, बुवाई (sowing) के समय फास्फोरस (Phosphorus) और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की एक-तिहाई मात्रा डाली जाती है।
2. बीज का चुनाव और बुवाई (बीज का चयन और रोपण)
उन्नत किस्मों का चयन (बेहतर प्रजातियों का चुनाव): अच्छी पैदावार (good yield) के लिए उन्नत और रोग प्रतिरोधी (disease-resistant) किस्मों का चुनाव करें। विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग किस्में उपयुक्त होती हैं, जैसे डीबीडब्ल्यू 303, डब्ल्यूएच 1270, पीबीडब्ल्यू 723 आदि सिंचित क्षेत्रों के लिए। देरी से बुवाई के लिए डीबीडब्ल्यू 173, डब्ल्यूएच 1124 जैसी किस्में हैं।
बीज उपचार (बीज का शुद्धीकरण): बुवाई से पहले बीज को फफूंदनाशक (fungicide) या कीटनाशक (insecticide) से उपचारित (treated) करना अनिवार्य (mandatory) है। यह बीज जनित रोगों (seed-borne diseases) और कीटों से बचाव (protection from pests) में मदद करता है।
बुवाई का समय (रोपण का काल): गेहूं की बुवाई के लिए सही समय का चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण (extremely important) है। सामान्य बुवाई का उत्तम समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक होता है। देरी से बुवाई (late sowing) के लिए दिसंबर के मध्य तक का समय चुन सकते हैं, लेकिन इससे पैदावार थोड़ी कम हो सकती है।
बुवाई की विधि (रोपण की तकनीक):
पंक्ति में बुवाई (कतार में रोपण): यह सबसे अच्छी विधि (best method) मानी जाती है। इसमें सीड ड्रिल (seed drill) या देशी हल (indigenous plough) का उपयोग करके पंक्तियों में बीज बोए जाते हैं। पंक्तियों के बीच की दूरी लगभग 17.5 से 20 सेंटीमीटर (7-8 इंच) होनी चाहिए।
बीज की गहराई (बीज का तल): बीज को 4-5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए ताकि अंकुरण (germination) समान (uniform) हो।
बीज की मात्रा (बीज की राशि): सामान्य बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर (per hectare) लगभग 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। देरी से बुवाई के लिए 120 किलोग्राम तक बीज की मात्रा बढ़ाई जा सकती है।
जीरो टिलेज विधि (शून्य जुताई प्रणाली): इसमें खेत की जुताई किए बिना ही विशेष मशीन (special machine) से सीधे बुवाई की जाती है। यह समय, ईंधन (fuel) और श्रम (labor) की बचत करता है।
3. सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन (जल प्रबन्धन और खाद का प्रबन्धन)
सिंचाई की अवस्थाएं (जल प्रबन्धन के चरण): गेहूं की फसल को 3 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है, जो मिट्टी और जलवायु पर निर्भर करता है। कुछ महत्वपूर्ण अवस्थाएं जहाँ सिंचाई आवश्यक है:
ताजमूल अवस्था (Crown Root Initiation - CRI): यह बुवाई के 20-25 दिन बाद आती है। इस समय पहली सिंचाई करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह जड़ों के विकास के लिए सर्वाधिक निर्णायक (most crucial) होता है।
कल्ले बनने की अवस्था (Tillering Stage): बुवाई के 40-45 दिन बाद। इस समय कल्लों का विकास (tillers development) होता है, जिससे फसल की उपज बढ़ती है।
गांठ बनने की अवस्था (Jointing Stage): बुवाई के 60-70 दिन बाद।
फूल आने की अवस्था (Flowering Stage): बुवाई के 80-90 दिन बाद।
दूधिया अवस्था (Milking Stage): जब दानों में दूध जैसा पदार्थ बनता है।
दाना पकने की अवस्था (Dough Stage): जब दाने सख्त होने लगते हैं।
उर्वरक की शेष मात्रा (खाद की बची हुई राशि): नाइट्रोजन की शेष मात्रा को दो भागों में बांटकर दिया जाता है: आधी मात्रा पहली सिंचाई पर और बची हुई आधी मात्रा दूसरी सिंचाई पर। यदि मिट्टी में जिंक (Zinc) या मैंगनीज (Manganese) की कमी हो, तो सूक्ष्म पोषक तत्वों (micronutrients) का भी
4. खरपतवार नियंत्रण (अवांछित पौधों का उन्मूलन)
हाथ से निराई (हाथ से घास निकालना): शुरुआती अवस्था में
खरपतवारनाशक (घासमारक): रासायनिक खरपतवारनाशकों
5. रोग
6. कटाई और गहाई (फसल की कटाई और दाना निकालना)
कटाई का समय (कटाई का काल): जब गेहूं की फसल पूरी तरह पक जाए (fully ripened) और दाने सख्त (hard grains) हो जाएं, तथा पत्तियां सूखकर पीली (leaves dried and yellow) पड़ जाएं, तो कटाई का सही समय होता है। आमतौर पर, मार्च से मई के महीनों में कटाई की जाती है,

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