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Скачать или смотреть स्वर्गीय ठाकुर लोकेन्द्र सिंह कालवी ॥ सादर नमन ॥ The Kshatriya Legacy

  • The Kshatriya Legacy
  • 2023-03-14
  • 8645
स्वर्गीय ठाकुर लोकेन्द्र सिंह कालवी ॥ सादर नमन ॥ The Kshatriya Legacy
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Описание к видео स्वर्गीय ठाकुर लोकेन्द्र सिंह कालवी ॥ सादर नमन ॥ The Kshatriya Legacy

इस देश में एक आग का दरिया हुआ करता था. दरिया आग का हो या पानी का दरिया तो आखिर दरिया होता है. बगावती, बदमिजाज, बेसलीका, बेरंग और कभी - कभी बिगड़ैल भी.

दरियाओं की कहानी कभी सैलाब बनने की होती है कभी फौलाद होने की तो कभी पानी इतना बह जाता है कि कीचड़ होना पड़ता है. लेकिन वह आखिर में रहता तो एक दरिया ही है.

मुनीर नियाज़ी का एक शेर अगर इस दरिया की शान में कहा जाए तो तस्वीर से शायद धुंधलापन छंट सकता है.

" तुमने तो आदत सी बना ली है मुनीर अपनी
जिस शहर में भी रहना बस उकताए हुए रहना "

इस दरिया कि तासीर बस यही थी. मिजाज का बगावती, पेशे से आंदोलनकारी और जुबान का राजपूत.

इस दरिया का नाम ठाकुर लोकेन्द्र सिंह कालवी था जिसने जीवनभर सफलताओं और असफलताओं से कदमताल करते - करते अपने किरदार को रंगमंच पर उस तरकीब से उकेरा कि अकादरी के सारे कायदे तोड़ दिए.

इस किरदार के पन्नों को थोड़ा पलटते है और जुलाई 1991 के नौजवान लोकेन्द्र सिंह कालवी को टटोलते है. नागौर के कालवी ठिकाने में सियासत से लेकर राजपूत समाज के नामचीन क्षत्रपो के बीच मेयो से अंग्रेजी पढ़े और बास्केटबॉल के उम्दा खिलाड़ी लोकेन्द्र सिंह कालवी का पाग दस्तूर हुआ. जो पगड़ी लोकेन्द्र सिंह कालवी के माथे पर होने वाली थी वह कोई छोटी जिम्मेदारी नही थी. उस पगड़ी के साथ एक जिम्मेदारी थी उस महान सामाजिक परंपरा को आगे बढ़ाने की जिसे स्वर्गीय कालवी साहब ने उम्र भर साकार किया. स्वर्गीय कालवी साहब कहा करते थे कि...

" जोगा ने ही जग पूछे
नाजोगा ने कुण पूछे "

मैने लोकेन्द्र सिंह कालवी साहब से यह बात ना जाने कितने मंचो से सुनी है कि मैं अपने माथे पर कल्याण सिंह कालवी की पगड़ी पहनता हूं और इसका मुझे हमेशा गर्व है, लेकिन अगर मैं मेरे गांव के हरिजन की पगड़ी भी पहनता तो उसका भी मुझे उतना ही गर्व होता. मैने अपने पिता से सीखा है.

" जो अपनी जात का नही, वो अपने बाप का नही
जो अपने बाप का नही वो राष्ट्र का कैसे हो सकता है "

अपने पिता द्वारा दिए गए इन्ही उसूलों की पतवार थामे लोकेन्द्र सिंह कालवी उसी विरासत के महान समंदर में जीवनभर गोते लगाते रहे. कभी तैर लिए,कभी हिचकोले खाए तो कभी डूबने से भी नही बच पाए.

मेरी कालवी साहब से जुड़ी एक मीठी स्मृति है, जो जीवन भर मेरे लिए उनके स्नेह और आशीर्वाद की याद दिलाती रहेगी.

जयपुर के एक कार्यक्रम में जब मंच पर कालवी साहब ने मुझे सुना तो कार्यक्रम के बाद कंधे पर हाथ रखकर कहा कि

" अरे भाई इस टाबर को कालवी हाउस बुलाकर बकरा रोटी खिलाओ ठाकर का छोरा जुबान और डील में बराबर नही होगा तो कैसे बात बनेगी "

फिर एक बार कालवी साहब ने मुझे भोपाल में याद किया. इस आदेश के साथ कि फटाफट उस टाबर का जयपुर से भोपाल का टिकिट करवाओ.

मैं अक्सर मजाक में हर बार कहा करता हूं कि राजस्थान में तो दो ही लोकेन्द्र सिंह है. एक लोकेन्द्र सिंह कालवी और दूसरा लोकेन्द्र सिंह किलाणौत बाकी कोई लोकेन्द्र काम का नही है.

आज कालवी साहब नही रहे. उनके पीछे एक बड़ी विरासत है कालवी परिवार की एक महान परंपरा है. कौन उनका कैसे मूल्यांकन करे मुझे नही पता लेकिन निर्विवाद सत्य तो यही है कि आजादी के बाद राजपूत समाज का ऐसा एक भी आंदोलन नही हुआ जिसमे कालवी परिवार का नेतृत्व नही रहा हो. आंदोलन सफल और असफल होते है. व्यक्ति कामयाब और नाकामयाब होता है लेकिन विचार हमेशा जिंदा रहते है.

किसी ने ठीक तो कहा है कि सुकरात उस दिन जहर ना पीता तो मर जाता. जो जहर विचारो को जिंदा रखे वह पी लेना चाहिए.

स्वर्गीय ठाकुर लोकेन्द्र सिंह कालवी साहब को सादर नमन

~ लोकेन्द्र सिंह किलाणौत

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