कुडालयाँ | गिरिधर कविराय | बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछताय | GIRIDHAR KAVIRAY | KUNDALIYA

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कुडालयाँ - गिरिधर कविराय
बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछताय।
काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय।।
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान-पान सनमान, राग रँग मनहिं न भावै।।
कह गिरिधर कविराय, दु:ख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय माँहि, कियो जो बिना बिचारे।।

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