Dev Deeksha Vidhaan - When Shiv Becomes Your Guru
Not All Seekers Qualify for Shiv as Guru – Dakshinamurti: The Guru You Don’t Find...You Earn Through Tapasya
Dakshinamurti Shiv is the ultimate Guru.
9:55 – Qualities of an ideal disciple / उत्तम शिष्य के लक्षण
26:00 – Mahadev / Dakshinamurti Shiv / महादेव / दक्षिणामुखी शिव
50:00 – Dev Deeksha Vidhaan (Divine Initiation Process) / देव दीक्षा विधान
53:00 – Yantra (Mystic Diagrams and Energy Tools) / यंत्र
Source: Agamrahasyam, Chaukhamba Prakashan (आगमरहस्यम् , चौखम्बा प्रकाशन), Sarva Karma Anushthan Prakash
कोई भी मंत्र ग्रहण करने का विधान :
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यामल में भी बतलाया गया है कि - कृष्णपक्ष में त्रयोदशी के दिन, दक्षिणामूर्ति के सन्निकट, चाँदी के पत्र पर अथवा ताम्र पत्र पर, मंत्र लिख कर, वेदी पर स्थापित करे। फिर महेश्वर की पूजा कर पायस आदि का नैवेद्य समर्पित कर तदंतर उन्हें प्रणाम कर सौ बार मंत्र का पाठ दक्षिणामूर्ति के सन्निघान में करे - इस प्रकार सभी मंत्रों का विधान कहा गया है
देव दीक्षा विधान
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(बिना अष्टांग योग - यम नियम को समझे और उसका पालन किए मंत्र-तंत्र साधना में ना जाये)
यहाँ भाव बहुत प्रबल है क्योकि भगवती - महादेव ने आपके सामने ऐसी स्तिथि रखी है कि आप उनको गुरु बना सके देव दीक्षा विधान से। पूरी पूजा-जप आपको इस भाव से करनी है की महादेव स्वयं साक्षात आपके सामने है और आपको देख रहे है कि किस भाव से आप उनको गुरु स्वरूप ग्रहण कर रहे है। निष्काम भाव से सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके मार्गदर्शन के लिए उनको गुरु बनाइए।
सामग्री:
धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य, दो भोजपत्र या साफ़ कागज, चाँदी या अनार की लकड़ी का कलम, अष्टगंध या चावल को पीस कर उसका घोल, कलश, अक्षत, मौली, रोली, आम के पत्ते, गंगाजल, दक्षिणा के लिए कुछ पैसे, भगवान दक्षिणामूर्ति या महादेव का चित्र, दो सुपारी अगर गणपति-गौरी के चित्र या विग्रह (मूर्तियाँ) ना हो, माला, गोमुखी, साफ़ जल
देव दीक्षा दिन वाली पूजा और जप विधान
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1. नहा धो कर अपने पूजा घर में आसन पर बैठ जाये (या कही कोई वट वृक्ष पूजा करने के लिए सुलभ हो तो वहाँ आसन ले कर बैठ जाये)
2. दिशा: पूर्व या उत्तर
3. आचमन - हां आत्मतत्त्वाय स्वाहा, हीं विद्यातत्त्वाय स्वाहा, हूं शिवतत्त्वाय स्वाहा - (मंत्र महोदधि, शैव आचमन विधान)
4. अपने सामने महादेव शिव का चित्र रख ले (अगर दक्षिणामूर्ति स्वरूप का चित्र ना मिले तो महादेव का चित्र ही रख ले, या शिवलिंग में भगवान की भावना के साथ पूजा करे)। साथ में अगर मंदिर में गणपति जी और गौरी माँ ना हो तो सुपारी में उनको स्थापित कर ले।
5. गौरी गणपति पूजन, पंचदेव पूजन, मातृका पूजन इत्यादि पंचोपचार तरीक़े से कर ले
पंचोपचार पूजन (चंदन (गंध), पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य)
5. सामने दक्षिणामूर्ति यंत्र स्थापित करे (अगर यंत्र नहीं है तो अष्टगंध, चावल या रंगोली से किसी वस्त्र पर यंत्र बना ले)
6. यंत्र: षट्दल, उसके ऊपर अष्टदल, उसके बाहर चार द्वार युक्त परिधि का भूपुर, उसके ऊपर रुद्रकलश (रुद्रकलश के लिए एक चाँदी या पीतल के कलश को धो कर उसपर स्वस्तिक बना ले, कलश के मुँह पर मौली बांध ले)
7. मंत्र को भोजपत्र या कागज़ पर लिखे और उसको कलश में डाल दे
मंत्र: ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्तये मह्यं मेधां प्रयच्छ स्वाहा (मंत्र महार्णव , शारदातिलक)
मंत्र भेद = (इस मंत्र के कई भेद दिखाई देते है। एक में मंत्र में "प्रज्ञां" भी है और मंत्र इस तरह है - ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्तये मह्यं मेधां प्रज्ञां प्रयच्छ स्वाहा - पर मंत्र महार्णव, शारदा तिलक, और सर्व प्रकाश में पहला भेद दिया गया है)। मेरू तंत्र में बताया है - इसी मन्त्र में 'मेधा' के स्थान पर 'प्रज्ञा' रखने से दूसरा मन्त्र हो जाता है। नामानुरूप (नाम के अनुरूप) ही इन मन्त्रों का फल प्राप्त होता हे।
कण्ठ के सामर्थ्य को मेधा कहा जाता है एवं स्मृति का नाम प्रज्ञा है।
8. चंदन (गंध), पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से यंत्र का पूजन करे
9. चंदन (गंध), पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से कलश का पूजन करे
10. भोजपत्र या जिस कागज पर आपने मंत्र लिखकर कलश में डाला था उसको कलश से निकल कर मंत्र को पढ़े और उसको ग्रहण करे। भावना ये रहनी चाहिए की ये मंत्र मुझे आदिगुरु स्वरूप भगवान दक्षिणामूर्ति शिव ने स्वयं प्रदान किया है और आज से वो मेरे गुरु है। दक्षिणा स्वरूप कुछ पैसे रखे और मन में ये भावना करे की आप अपना सर्वस्व भगवान शिव को समर्पित कर रहे है और जी जान लगा कर उत्तम शिष्य बनने की कोशिश करेंगे।
11. जप माला को निकाल कर माला मंत्र पढ़े और माला का पूजन करे, माला को गोमुखी में रख ले
जपमाला मन्त्र:
ॐ मां माले महामाये सर्वमन्त्र स्वरूपिणि ।चतुर्वर्ग स्त्वयिन्यस्त स्तस्मान्ये सिद्धिदा भव॥
12. दक्षिणामूर्ति भगवान का ध्यान करे
13. मंत्र का १०८ बार दक्षिणामूर्ति शिव जी के पास बैठकर ही जप माला पर जप करे
14. जप को भगवान के दाहिने हाथ में जप मंत्र पढ़ते हुए समर्पण करे
शिव: जप समर्पण मंत्र:
गुह्यातिगुह्यगोप्त्रा त्वं गृहाणास्मत्-कृतं जपम्।सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादान्मयि स्थिरा ॥
15. अपराध क्षमा प्रार्थना पढ़े या मन में भगवान से किसी भी अपराध या त्रुटि के लिए क्षमा माँगे
क्षमा याचना:
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु में।।
16. भगवान शिव का श्लोक पढ़े : कर्पूरगौरम करुणावतारम…..
17. आरती करे
18. आसन पर जल छिड़क कर उसको माथे पर लगा ले
इसके बाद इसी मूल मंत्र का पुरूशचरन करे (न्यास, ध्यान, आवरण पूजा के साथ) जिसका विधान वीडियो में दिया गया है, पुरूशचरन के बाद मंत्र जाग्रत हो जाता है और समय समय पर उसका अनुष्ठान करके उसको पुष्ट करते रहना चाहिए।
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