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Скачать или смотреть कार्तिक मास व्रत कथा - महात्म्य अध्याय 3

  • Astrologer Raman Gupta
  • 2024-10-21
  • 62
कार्तिक मास व्रत कथा - महात्म्य अध्याय 3
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Скачать कार्तिक मास व्रत कथा - महात्म्य अध्याय 3 бесплатно в качестве 4к (2к / 1080p)

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Описание к видео कार्तिक मास व्रत कथा - महात्म्य अध्याय 3

सत्यभामा ने पूछा-हे स्वामिन् ! कालरूपधारी आपके, सभी (वर्ष, मास, दिन आदि) अङ्ग-प्रत्यङ्ग एक समान महत्व रखते हैं, अतः कार्तिक मास ही सब मासों में श्रेष्ठ क्यों है ? फिर सब तिथियों में एकादशी और सब मासों में कार्तिक मास ही आपको अधिक प्रिय क्यों है ? हे देवेश ! इसका कारण कहिए। श्रीकृष्णचन्द्रजी ने कहा- हे प्रिय ! तुमने मुझसे बहुत अच्छी बात पूछी। इस विषय में महाराजा वेन के पुत्र पृथु और नारद का संवाद कहता हूं, उसे एकाग्र मन से सुनो। इसी प्रकार एक समय में नारदजी से राजा पृथु ने प्रश्न किया था और सर्वज्ञ नारदजी ने पृथु को कार्तिक मास की महिमा बतलाई थी। नारदजी ने कहा-हे राजन् ! बहुत दिन पहले समुद्र का शंखासुर नामक अत्यन्त शक्तिशाली और पराक्रमी एक राक्षस-पुत्र तीनों लोकों को मंथ डालने (जीत लेने) में समर्थ हुआ। उस शंखासुर ने स्वर्गलोक में रहनेवाले देवताओं को जीतकर और इन्द्रादि दशों लोकपालों के अधिकारों को छीन लिया। उससे डर कर समस्त देवगण सुमेरु (स्वर्ण) पर्वत की कन्दराओं में अपनी स्त्री तथा कुटुम्ब के साथ उसका अवरोध करते हुए बहुत दिनों तक छिपे रहे। जब सब देवगण सुमेरु पर्वत की कन्दराओं में आसन जमाकर निश्चिन्त होकर रहने लगे, तब वह राक्षस सोचने लगा कि यद्यपि मैंने सब देवताओं को जीत लिया है और इनका अधिकार छीन लिया है तो भी ये लोग बलवान् ही ज्ञात होते हैं; अतः अब हमको क्या करना चाहिए ? आज मुझे ज्ञात हुआ है कि ये सब देवता वेदमन्त्रों से बलवान् हो रहे हैं, उनके वेदों को हर लेने से ये स्वतः बलहीन हो जाएंगे। नारदजी ने कहा-ऐसा मानकर शंखासुर विष्णु भगवान् को सोते देख सत्यलोक से स्वयं उत्पन्न समस्त वेदों को चुरा लाया। जिस समय वह वेदों को चुरा रहा था, उसी समय बीजों के साथ यज्ञमन्त्र उसके डर से जल में छिप गए। शंखासुर भी वेदमन्त्रों और बीज मन्त्रों को खोजता हुआ समुद्र के भीतर घूमने लगा; किन्तु वह राक्षस उन वेदमन्त्रों को एक स्थान पर कहीं भी नहीं पा सका। इसी समय ब्रह्माजी भी सब देवताओं के साथ पूजन-सामग्री और उपहार लेकर बैकुण्ठ-लोक में विष्णु भगवान् की शरण में पहुंचे। श्री विष्णु भगवान् को प्रगाढ़ निद्रा से जगाने के लिए गाने-बजाने तथा धूप-गन्धादिकों से बारम्बार उनका पूजन करने लगे। उन लोगों की इस आराधना से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान् जाग उठे। उस समय देवताओं ने हजारों सूर्य के तेज सदृश देदीप्यमान विष्णु भगवान् को देखा। तत्पश्चात् देवताओं ने विविध सामग्री द्वारा षोडशोपचार से विष्णु भगवान् का पूजन करके पृथ्वी पर दण्डवत् किया,



कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी पर्यन्त प्रातःकाल में जो सज्जन आप लोगों के समान कीर्तन और मङ्गल करेंगे, वे हमारे अतिप्रिय होंगे और शरीर त्याग करने पर बैकुण्ठ में आएंगे। यह जो पाद्य, अर्घ्य, आचमन और जल आदि सामग्री आप लोग हमारे लिए लाए हैं वे सब अनन्त गुणोंवाली होकर आप लोगों को आनन्दित करेगी। जो शङ्खासुर सब वेदों को चुरा ले गया है वे सब समुद्र में हैं। मैं उस सागर के दुष्ट पुत्र को मारकर ले आता हूं। आज से मन्त्र, बीज और यज्ञों के साथ चारों वेद प्रतिवर्ष कार्तिक मास में जल में विश्राम किया करेंगे।


अब मैं मत्स्य का रूप धारण करके समुद्र में जाता हूं और आप लोग भी सब ऋषियों को लेकर हमारे साथ आवें। इस लोक के जो प्राणी (कार्तिक में) नित्य प्रातःकाल में स्नान करेंगे, वे यज्ञान्त में अवभृथ स्नान के पुण्यफल के भागी होंगे। जो कार्तिक में स्नान और व्रत किया करेंगे, हे इन्द्र ! उनको तुम मेरे लोक में पहुंचा दिया करो। हे देवेन्द्र ! मेरी आज्ञा से उन प्राणियों को सब आपत्तियों से बचाते रहना, हे वरुण ! तुम उन्हें पुत्र-पौत्रादि, सन्तान देते रहना। हे धनाधिप कुबेर ! मेरी आज्ञानुसार तुम उनका धन-धान्य बढ़ाते रहना, क्योंकि इस प्रकार का अचारण करनेवाला प्राणी हमारा रूप धारण करके जीवन्मुक्त हो जाया करता है। जन्म से लेकर मरणपर्यन्त विधिपूर्वक जिसने यह उत्तम व्रत कर लिया है, वह आप लोगों का भी पूजनीय है। आप लोगों ने मुझे कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को जगाया है, इसी से यह एकादशी मान्य है और हमको बड़ी प्रिय है। हे देवता लोगों ! ये दोनों व्रत विधिपूर्वक करने से प्राणी मेरे समीप पहुंचते । इस प्रकार का न कोई तीर्थ, न कोई व्रत और न कोई यज्ञ ही है .


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