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संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी के आह्वान पर दिल्ली में लाखों लोगों ने की नशों से तौबा
-रोहिणी के जापानी पार्क में हुआ ऑनलाइन सत्संग, भंडारा
-संगत को लंगर में मटर-पनीर की सब्जी व रोटी के साथ बर्फी का मिला प्रसाद
दिल्ली। रविवार को नशे सहित सामाजिक कुरीतियों को उखाड़ फेंकने के लिए एक साथ लाखों लोगों ने अनूठा संकल्प लिया। इसके साथ ही अपने मुर्शिद ए कामिल के प्रति समर्पण, अटूट श्रद्धा और विश्वास का संगम भी देखने को मिला। अवसर था दिल्ली रोहणी के जापानी पार्क मैदान में आयोजित डेरा सच्चा सौदा के दूसरे गद्दी नशीन पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के पावन महा रहमोकर्म माह के 'एमएसजी भंडारा' कार्यक्रम का। जिसमें दिल्ली व आसपास के क्षेत्र से पहुंचे लाखो डेरा अनुयायियों के समक्ष प्रबंधन द्वारा किए गए सारे प्रबंध छोटे पड़ गए और रूहानी सत्संग कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही पूरा पंडाल साध-संगत से खचाखच भर गया । इतना ही नहीं आलम ये था कि सड़कोंं पर डेरा श्रद्धालुओं के वाहनों का काफिला रेंगता नजर आया तथा यह क्रम सत्संग समाप्ति तक अनवरत जारी रहा। इस कार्यक्रम में पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने उत्तर प्रदेश के शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा से पावन भंडारे पर वर्चुअली रूहानी सत्संग फरमाया। और दिल्ली रोहिणी जापानी पार्क से ऑनलाइन पूज्य गुरु जी ने डेरा सच्चा सौदा द्वारा चलाई जा रही नशा मुक्त देश अभियान के तहत लोगों को नशा व सामाजिक कुरीतियों से दूर रहने की शपथ दिलाई। वहीं सत्संग कार्यक्रम के दौरान पूज्य गुरु जी के एक मात्र आह्वान पर ना केवल लोगों ने नशा बेचने से तौबा की बल्कि कार्यक्रम में पहुंचे अनेक गणमान्य जनों ने भी पूज्य गुरु जी की नशा मुक्त देश मुहिम में पूरा सहयोग देने का विश्वास दिलाया। इससे पूर्व 11 बजे धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा का इलाही नारा लगाकर पावन भंडारा कार्यक्रम की शुरूआत की गई। जिसके पश्चात कविराजों ने अनेक सुंदर भजन वाणी के माध्यम से साध-संगत को झूमने पर मजबूर कर दिया। सत्संग पंडाल में बड़ी-बड़ी एलईडी स्क्रीनें लगाई गई। जिनपर पूज्य गुरु जी के रूहानी वचनों को सुनकर साध-संगत निहाल हुई। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने रूहानी सत्संग को संबोधित करते हुए फरमाया कि संत सच्चा कौन सा होता है? संतों का काम क्या होता है? संत किसलिए दुनिया में आते हैं? संतों का मकसद क्या होता है इस समाज में आने का, इस धरती पर आने का? संत-जिसके सच का कोई अन्त ना हो, सन्त-जो सच से जुड़ा हो, संत, जो सदा सबके भले की चर्चा करे, सन्त-जो सबकुछ त्याग कर सिर्फ और सिर्फ ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम की औलाद का भला करे, सन्त-जो सच्ची बात कहे, चाहे कड़वी लगे या मीठी लगे, सन्त-जो सच से जोड़ दे और सच क्या है, ये भी सन्त बताए, कि भाई ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम, गॉड, खुदा, रब्ब सच था और सच ही रहेगा। उसको छोड़कर चन्द्रमा, सूरज, नक्षत्र, ग्रह, पृथ्वी जितना भी कुछ नजर आता है, जो कुछ भी आप देखते हैं सबने बदल जाना है और जो बदल जाता है, उसे सच नहीं कहा जा सकता। सच तो वो ही है जिसे एक बार सच कह दो तो हमेशा सच ही रहता है। तो सन्तों का काम सच से जोड़ना होता है। सन्त हमेशा सबका भला मांगते हैं। सन्त ना छोड़े संतमयी, चाहे लाखों मिलें असन्त, सन्तों का काम सन्तमत पर चलना होता है, सबको बताना कि ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम, वो ओउम वो दाता आपके अन्दर है, उसको देखना चाहते हो तो आप भला करो, मालिक के नाम का जाप करो तो आपके अन्दर से ही वो नजर आ जाएगा।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि लोग परमपिता-परमात्मा को, उस ओउम, हरि, अल्लाह, गॉड, खुदा, राम को पाने के लिए, उसे ढूंढने के लिए जंगलों, पहाड़ों, उजाड़ों में जाते हैं, शायद अज्ञानवश या कोई रिद्धि-सिद्धि के लिए, शायद वैराग्य में, त्याग में भगवान के लिए जाते हों तो कितनी हैरानीजनक बात है कि आप उसे बाहर ढूंढ रहे हो और वो आपके अन्दर बैठा राम आवाज दे रहा है कि अरे मैं तो कण-कण में रहता हूँ तो तेरा शरीर भी उसी कण में आ गया, मैं तेरे अन्दर हूँ, अन्दर से ढूंढ तुझे जरूर मिल जाऊंगा। पर अन्दर उस परमपिता परमात्मा को पाने के लिए अपने विचारों का शुद्धिकरण करना होगा। अपने ख्यालों का शुद्धिकरण करना होगा। पाखंडवाद, ढोंगे, ढकोसले कभी भी इन्सान को परमात्मा से नहीं मिलाते। बहुत सारे पाखंड हैं, बहुत सारे ढोंग हैं, जिसमें समाज उलझकर रह गया है। दिनों का चक्कर पड़ गया।
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