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Скачать или смотреть मां स्कंदमाता -मां स्कंदमाता की पूजा विधि और कथा || Maa Skandamata Puja Vidhi & Katha ||Navratri2021

  • Blissful Life
  • 2021-10-10
  • 90
मां स्कंदमाता -मां स्कंदमाता की पूजा विधि और कथा || Maa Skandamata Puja Vidhi & Katha ||Navratri2021
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मां स्कंदमाता -मां स्कंदमाता की पूजा विधि और कथा || Maa Skandamata Puja
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नवरात्रि के पांचवे दिन दुर्गा मां के स्कंदमाता रूप की पूजा की जाती है।
शास्त्रोंके अनुसार, इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है।
पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं देवी हैं स्कंदमाता।
कहते हैं कि देवी दुर्गा का यह स्वरूप मातृत्व को परिभाषित करता है।
इनकी चारभुजाएं हैं।इनकी दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं और दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपरी भुजा वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा में भी कमल हैं। माताका वाहन शेर है। स्कंदमाता कमल के आसन पर भी विराजमान होती हैं इसलिए इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है।
स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से भी जाना जाता है।
इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है।
वहीं मान्‍यता ये भी है कि इनकी पूजा करने से संतान योग की प्राप्‍ति होती है।
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आइए जानते हैं इनकी पूजन विधि,

मां स्कंदमाता की पूजा विधि:
नवरात्रि के पांचवें दिन सबसे पहले स्‍नान करें और स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें।
अब घर के मंदिर या पूजा स्‍थान में चौकी पर स्‍कंदमाता की तस्‍वीर या प्रतिमा स्‍थापित करें।
गंगाजल से शुद्धिकरण करें फिर एककलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्‍के डालें और उसे चौकी पर रखें। अब पूजा का संकल्‍प लें। इसके बाद स्‍कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाएं और नैवेद्य अर्पित करें। अब धूप-दीपक से मां की आरती उतारें और आरती के बाद घर के सभी लोगों को प्रसाद बांटें और आप भी ग्रहण करें।
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स्कंदमाता की कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार, एक राक्षस था जिसका नाम तारकासुर था।
उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की।
उसकी कठोर तपस्या देख ब्रह्मा जी बेहद प्रसन्न हो गए।
उन्होंने प्रसन्न होकर तारकासुर को दर्शन दिए।
ब्रह्माजीसे वरदान मांगते हुए तारकासुर ने अमर करने के लिए कहा।
ब्रह्मा जी ने उसे समझाया कि जिसका जन्म हुआ है उसे मरना ही होगा।
फिर तारकासुर ने निराश होकर ब्रह्मा जी से कहा कि प्रभु ऐसा कर दें कि शिवजी के पुत्र के हाथों ही उसकी मृत्यु हो।
उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वो सोचता था कि कभी-भी शिवजी का विवाह नहीं होगा तो उनका पुत्र कैसे होगा।
इसलिए उसकी कभी मृत्यु नहीं होगी। फिर उसने लोगों पर हिंसा करनी शुरू कर दी।
हरकोई उसके अत्याचारों से परेशान था। सब परेशान होकर शिवजी के पास पहुंचे।
उन्होंने शिवजी से प्रार्थना की कि वो उन्हें तारकासुर से मुक्तिदिलाएं।
तब शिव ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बनें।
बड़े होने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। स्कंदमाता कार्तिकेय की माता हैं।

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