कीजिये 1 मिनट मै श्रीनाथजी दर्शन -श्रीजी मै आज अंतिम मंगल भोग दर्शन

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व्रज – पौष शुक्ल पंचमी
Monday, 18 January 2021

श्री विट्ठलनाथजी के घर का द्वितीय मंगलभोग

विशेष – श्रीजी में आज चतुर्थ एवं अंतिम मंगलभोग है. मैंने पूर्व में बताया था कि वैसे तो श्रीजी को नित्य ही मंगलभोग अरोगाया जाता है परन्तु गोपमास व धनुर्मास में चार मंगलभोग विशेष रूप से अरोगाये जाते हैं.

मंगलभोग का मुख्य भाव यह है कि शीतकाल में रात्रि बड़ी व दिन छोटे होते हैं.
शयन उपरांत अगले दिन का अंतराल अधिक होता तब यशोदाजी को यह आभास होता कि लाला को भूख लग आयी होगी अतः तड़के ही सखड़ी की सामग्रियां सिद्ध कर बालक श्रीकृष्ण को अरोगाते थे.

मंगलभोग का एक भाव यह भी है कि शीतकाल में बालकों को पौष्टिक खाद्य खिलाये जावें तो बालक स्वस्थ व पुष्ट रहते हैं इन भावों से प्रेरित ठाकुरजी को शीतकाल में मंगलभोग अरोगाये जाते हैं.

इनकी यह विशेषता है कि इन चारों मंगलभोग में सखड़ी की सामग्री भी अरोगायी जाती है.

एक और विशेषता है कि ये सामग्रियां श्रीजी में सिद्ध नहीं होती. दो मंगलभोग श्री नवनीतप्रियाजी के घर के एवं अन्य दो द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर के होते हैं. अर्थात इन चारों दिवस सम्बंधित घर से श्रीजी के भोग हेतु सामग्री मंगलभोग में आती है.

आज द्वितीय गृहाधीश्वर श्री विट्ठलनाथजी के घर का दूसरा मंगलभोग है जिसमें वहाँ से विशेष रूप से अनसखड़ी में सिद्ध तवापूड़ी की छाब श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु आती है.

मंगलभोग में अरोगायी जाने वाली सखड़ी की सामग्री सिद्ध हो कर नहीं आती क्योंकि दोनों मंदिरों के मध्य आम रास्ता पड़ता है और खुले मार्ग में सखड़ी सामग्री का परिवहन नहीं किया जाता अतः श्री विट्ठलनाथजी के घर से कच्ची सामग्री आती है और सेवक श्रीजी के सखड़ी रसोईघर में विविध सामग्रियां सिद्ध कर प्रभु को अरोगाते हैं.

श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिवसों की तुलना में थोड़ा जल्दी होता है.

आज द्वितीय पीठाधीश्वर श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपेश्वरलालजी का उत्सव है अतः प्राचीन परंपरानुसार आज श्रीजी प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं.

वस्त्रों के संग बूंदी के लड्डुओं की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु आती है.

मैं पूर्व में भी बता चुका हूँ कि वर्षभर में लगभग सौलह बार द्वितीय गृह से वस्त्र सिद्ध होकर श्रीजी में पधारते हैं.
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राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोडी)

हों बलि बलि जाऊं तिहारी हौ ललना आज कैसे हो पाँव धारे l
कौन मिस आवन बन्यो पिय जागे भाग्य हमारे ll 1 ll
अब हों कहा न्योछावर करूँ पिय मेरे सुंदर नंददुलारे l
'नंददास' प्रभु तन-मन-धन प्राण यह लेई तुम पर वारे ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की सुनहरी सुरमा-सितारा के कशीदे के भरतकाम एवं श्याम रंग के पुष्प-लताओं के भरतकाम के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग के साटन (Satin) के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. केसरी रंग के मोजाजी एवं केसरी रंग के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित कटि-पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण फ़िरोज़ा के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, क़तरा, चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
कमल माला धरावे.
पीले रंग के पुष्पों की कमलाकार कलात्मक मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी गोटी मीना की आती हैं.

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