Dakor Temple Ranchhodraiji Mahraj Story

Описание к видео Dakor Temple Ranchhodraiji Mahraj Story

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नमस्कार। सभी का मेरे चैनल में स्वागत है, आज का ये वीडियो भगवान श्री कृष्ण का प्रसिद्ध मंदिर, डाकोर स्थित रणछोड़रायजी की मूर्ति की अलौकिक कथा के बारे में हैं।

डाकोर, भारत के गुजरात राज्य में, अपने विशाल रणछोडरायजी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर इस जिले का सबसे ऊंचा मंदिर, जहाँ रणछोडरायजी स्वयं बिराजमान है। गुजरात में तीर्थस्थल के रूप में अपने शुरुआती चरणों में, डाकोर, डंकनाथ महादेव मंदिर के लिए प्रसिद्ध था। बाद के चरणों में, ये भगवान रणछोड़रायजी मंदिर से प्रसिद्धि पाकर विकसित हुआ।

महाभारत के समय में, डाकोर का आसपास का क्षेत्र, 'हिडिम्बा वन” के रूप में जाना जाता था। वह नदियों और झीलों से समृद्ध था। उस घने जंगल के कारण तपस्या के लिए संतों आकर्षित होते थे। इसी प्रकार ऋषि कंडु के गुरुभाई, डंकऋषि का आश्रम भी इसी क्षेत्र में था। तपस्या के दौरान भगवान शिव उनसे प्रसन्न हुए, और उनसे वरदान मांगने को कहा। वरदान स्वरुप, डंकऋषि ने भगवान शिव से अपने आश्रम में स्थायी रूप से रहने का अनुरोध किया। भगवान शिव उनके अनुरोध पर सहमत होकर, लिंग रूप में स्थायी हुए। जो आज डाकोर में गोमती तालाब के किनारे पर डंकनाथ महादेव के नाम से जाना जाता है। इसी कारण प्राचीन काल में डाकोर, डंकनाथ महादेव के नाम पर “डंकपुर” से प्रसिद्ध था।

वर्तमान डाकोर का श्रेय डंकऋषि को नहीं, बल्कि भगवान श्री कृष्ण के एक परम भक्त बोडाणा को जाता है। माना जाता है कि अपने पिछले जन्म में, वह गोकुल में रहता था और विजयानंद नामक एक चरवाहा था। एक 'पवित्र' दिन, विजयानंद को छोड़कर सभी चरवाहों ने भगवान कृष्ण की पूजा की। लेकिन विजयानंद घमंडी था इसलिए वो घर पर ही रहा। अगले दिन रंगो से होली खेलते हुए, श्री कृष्ण नदी में गिर गए। विजयानंद उनके पीछे नदीमे कूदा, जहां भगवान श्री कृष्ण ने अपना असली स्वरूप प्रकट किया। तब विजयानंद ने प्रभुसे क्षमा मांगी। प्रभु ने उस पर दया की और उसे एक वरदान दिया और कहा कि वह कलियुग में फिर से गुजरात में विजयानंद बोडाणा के रूप में जनम होगा और, उसकी वर्तमान पत्नी सुधा फिर से उसकी पत्नी होगी। तब प्रभु उन्हें दर्शन देंगे और उसे मोक्ष प्रदान करेंगे। तो जैसेकि, 'विजयानंद बोडाणा', डाकोर का एक राजपूत, भगवान कृष्ण का निष्ठावान भक्त बन जाता है। वह अपने हाथोमे तुलसी के पौधे को मिट्टी के गमले में ऊगाता और हर छह महीने द्वारिका जाकर उसी तुलसी के पत्तों से भगवान श्री कृष्ण की पूजा करता।
उन्होंने ऐसा लगातार, अमोघ रूप से बहत्तर साल की आयु तक किया। फिर उन्हें इस अनुष्ठान को आगे बढ़ाने में कठिनाई होने लगी। उनकी दुविधा को देखकर, तब एक रात बोडाणा को सपने में भगवान श्री कृष्ण ने दर्शन दिए। और कहा कि वे उनकी भक्ति से बहुत प्रसन्न है, और अपनी आगामी द्वारिका यात्रा पर, उन्हें अपने साथ एक बैलगाड़ी लानी चाहिए जिसमे बैठ कर भगवान उनके साथ डाकोर आएंगे। प्रभु के आदेशानुसार, बोडाणा अपनी टूटी फूटी बैलगाड़ी के साथ द्वारिका गए। तभी द्वारिका के गुगली ब्राह्मण पुजारिओं ने बोडाणा से पूछा, कि वह अपने साथ ये बैलगाड़ी क्यों लाए है। इस पर बोडाणा ने उत्तर दिया, कि वो भगवान श्री कृष्ण को अपने साथ लेजाने के लिए लाया है। बेढंगी गाड़ी को देखकर, उन्होंने उस पर विश्वास नहीं किया, लेकिन फिर भी रात के लिए द्वारिका मंदिर के गर्भगृह को बंद कर दिया और ताले मार दिए।

आधी रात को, भगवान श्री कृष्ण ने सभी दरवाजे तोड़ दिए, बोडाणा को जगाया और उसे डाकोर ले जाने के लिए कहा। द्वारिका से निकलनेके कुछ देर बाद, भगवान ने बोडाणा को आराम करने के लिए कहा, और डाकोर के नज़दीक पहुंचने तक बैलगाड़ी को खुद चला दिया। यहां डाकोर के पास बिलेश्वर महादेव मंदिर के नज़दीक उन्होंने नीम के पेड़ की एक शाखा को पकड़कर कुछ देर विश्राम किया। फिर बोडाणा को जगाकर उसे बैलगाड़ी संभालने के लिए कहा। उस दिन से, वह नीम के पेड़ में एक मीठी शाखा पाई जाती है, हालांकि बाकी शाखाएँ कड़वी होती हैं।

द्वारिका के मंदिर से भगवान की मूर्ति गायब होने का पता लगते ही, गुगली ब्राह्मणों ने गांव वालों के साथ, बोडाणा का पीछा करते हुए डाकोर आ गए। ये जानकर बोडाणा भयभीत हो गया, लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने अपनी प्रतिमा गोमती तालाब में छिपाने, और गुगली ब्राह्मणों से मिलने के लिए कहा। तदानुसार, बोडाणा ने मूर्ति को गोमती तालाब में छिपा कर, गुगली ब्राह्मणों को शांत करने के लिए दही के बर्तन के साथ गुगलीओ से मिलने गए। गुगली क्रोधित थे, और उनमें से एक ने बोडाणा पर भाला फेंका। बोडाणा घायल होकर गिर गया और उनकी मृत्यु हो गई। बोडाणा को भाले से चोट पहुँचाने पर, गोमती तालाब में छिपी भगवान की प्रतिमा को भी चोट पहुँची। और तालाब का पानी भगवान के खून से लाल हो गया। आश्चर्य होकर भी और बोडाणा की मृत्यु के बाद भी गुगली शांत नहीं हुए। फिरभी गुगलिओने, प्रभु से द्वारिका लौटने का अनुरोध करते हुए गोमती तालाब के किनारे बैठ गए। अंत में, भगवान ने गुगलीओ की परीक्षा लेते हुए, बोडाणा की पत्नी गंगाबाई को अपने वजन के बराबर सोना देने और गुगलीओ को द्वारिका लौटने के लिए कहने का निर्देश दिया।

भगवान का निर्देश पाकर गुगलि बहुत खुश हुए, क्यो की वे जानते थे, बोडाणा की विधवा बेचारी एक कंगाल थी और ऐसा करने में अ समर्थ थी। लेकिन देखो प्रभु की लीला, एक चमत्कार से, मूर्ति एक सोने की आधे ग्राम वजन की नाक की बाली समान हल्की हो गई, जो कि गंगाबाई के पास थी। ये चमत्कार देखकर गुगली निराश हो गए, लेकिन प्रभु ने दया से निर्देश दिया, कि वे छह महीने के बाद द्वारिका कि सावित्री वाव में मूर्ति की प्रतिकृति पाएंगे। अधीर गुगली ब्राह्मणों ने उन्हें बताए जाने से कुछ समय पहले ही तलाश की और परिणामस्वरूप, एक मूर्ति मिली, जो मूल के समान थी।

इति श्री समाप्त:।

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