दिल्ली की सातों सीटें गईं या एक-दो बचा पाएगी बीजेपी

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कहते हैं, देश का दिल है दिल्ली। कहा यह भी जाता है, दिल्ली है दिलवालों की। पर दिल्ली वालों का दिल इस बार ईवीएम का बटन दबाते समय किसकी तरफ धड़केगा!

यूं तो दिल्ली प्रदेश में जनता द्वारा चुना गया एक राजा भी है लेकिन उसकी हालत जंगल के उस राजा शेर जैसी है जिसके पंजों में न नाखून हैं और न दांत। ऐसे में दिल्ली का मुख्यमंत्री राजा होते हुए भी असहाय है। उसके पास न अपनी पुलिस है और अधिकार भी बहुत सीमित हैं। पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है और अधिकारों की चाबी केंद्र द्वारा नियुक्त एलजी साहब के पास। केंद्र को दिल्ली सरकार सुहाती नहीं है लेकिन जनता भारी बहुमत से केजरीवाल को दो बार मुख्यमंत्री बना चुकी है। कारण बहुत साफ है कि केजरीवाल के शासन में उन्हें बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बहुत से फायदे मिलते हैं। लेकिन यही नागरिक लोकसभा चुनावों में मोदी की बीजेपी के पास चले जाते हैं। देशहित और धर्म के जंजाल में फंसी जनता ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को सात में से सात सीटों को बीजेपी की झोली में डाल दिया था। पर इस बार फिज़ा बदली हुई है। केजरीवाल को केंद्र सरकार की एजेंसी ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया। यहीं से जनता में यू टर्न आया दिखाई दे रहा है। बहुतायत में नागरिकों में यह धारणा घर बैठ गई है कि मोदी की सरकार आम आदमी पार्टी की सरकार को अपदस्थ कर अपना राज कायम करने को आमादा है। और ऐसा होते ही उन्हें निशुल्क मिलने वाली बुनियादी सुविधाएं बंद हो जाएंगी। इस मामले में मोदी की केंद्र सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड खुली किताब है।

फिलहाल केजरीवाल जमानत पर ब��हर आ गए हैं। इंडिया गठबंधन में होने के नाते वह दिल्ली की सभी सात सीटों पर चुनाव प्रचार करते हुए दहाड़ रहें हैं। गठबंधन की वजह से अब तिकोना मुकाबला भी नहीं है, बल्कि बदली परिस्थियों में बीजेपी से आमने-सामने की टक्कर है!

ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 में दिल्ली की सात सीटों पर क्या होगा? दिल्ली की सातों सीटें बीजेपी के हाथ से निकल जाएंगी या कुछ उनके हाथ भी आएगा? आज चर्चा इसी पर।


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