Sawan 2021 | Shravan 2021 | शिव दे देंगे श्राप...!! एक गलती कर देगी बड़ा नुकसान, इन चीजों को शिवलिंग पर कभी भी न चढ़ाएं,
जानिए इन चीजों के बारे में..
शंकर या महादेव आरण्य संस्कृति जो आगे चल कर सनातन शिव धर्म नाम से जाने जाती है में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू शिव घर्म शिव-धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता वासुकी विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है।
शंकर जी को संहार का देवता कहा जाता है। शंंकर जी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव के कुछ प्रचलित नाम, महाकाल, आदिदेव, किरात,शंकर,चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय[ मृत्यु पर विजयी] , त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति [ पार्वती के पति], काल भैरव, भूतनाथ, ईवान्यन [तीसरे नयन वाले], शशिभूषण आदि। भगवान शिव को रूद्र नाम से जाता है रुद्र का अर्थ है रुत दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला अतः भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है ।रुद्राष्टाध्याई के पांचवी अध्याय में भगवान शिव के अनेक रूप वर्णित है रूद्र देवता को स्थावर जंगम सर्व पदार्थ रूप सर्व जाति मनुष्य देव पशु वनस्पति रूप मानकर के सराव अंतर्यामी भाव एवं सर्वोत्तम भाव सिद्ध किया गया है इस भाव से ज्ञात होकर साधक अद्वैत निष्ठ बनता है। संदर्भ रुद्राष्टाध्याई पृष्ठ संख्या 10 गीता प्रेस गोरखपुर। रामायण में भगवान राम के कथन अनुसार शिव और राम में अंतर जानने वाला कभी भी भगवान शिव का या भगवान राम का प्रिय नहीं हो सकता। शुक्ल यजुर्वेद संहिता के अंतर्गत रुद्र अष्टाध्याई के अनुसार सूर्य इंद्र विराट पुरुष हरे वृक्ष अन्न जल वायु एवं मनुष्य के मनुष्य के कल्याण के सभी हेतु भगवान शिव के ही स्वरूप है भगवान सूर्य के रूप में वह शिव भगवान मनुष्य के कर्मों को भली-भांति निरीक्षण कर उन्हें वैसा ही फल देते हैं आशय यह है कि संपूर्ण सृष्टि शिवमय है मनुष्य अपने अपने कर्मानुसार फल पाते हैं। अर्थात स्वस्थ बुद्धि वालों को वृष्टि जल अन्य आदि भगवान शिव प्रदान करते हैं और दुर्बुद्धि वालों को व्याधि दुख एवं मृत्यु आदि का विधान भी शिवजी करते हैं।
जिस प्रकार इस ब्रह्मण्ड का ना कोई अंत है, न कोई छोर और न ही कोई शूरुआत, उसी प्रकार शिव अनादि है सम्पूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे जब कुछ न होगा तब भी शिव ही होंगे। शिव को महाकाल कहा जाता है, अर्थात समय। शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व उष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है। परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है क्योंकि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर टिका हुआ है।
पवित्र शिव पुराण एक लेख के अनुसार ,कैलासपति शिव जी ने देवी आदिशक्ति और सदाशिव से कहे है कि हे मात ब्रह्मा तुम्हारी सन्तान है तथा विष्णु की उत्पति भी आप से हुई है तो उनके बाद उतपन्न होने वाला में भी आपकी सन्तान हुआ।
ब्रह्मा और विष्णु सदाशिव के आधे अवतार है,परंतु कैलाशपति शिव "सदाशिव" के पूर्ण अवतार है। जैसे कृष्ण विष्णु के पूर्ण अवतार है उसी प्रकार कैलाशपति शिव "ओमकार सदाशिव" के पूर्ण अवतार है। सदाशिव और शिव दिखने में,वेषभूषा और गुण में बिल्कुल समान है। इसी प्रकार देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती(दुर्गा) आदिशक्ति की अवतार है।
शिव पुराण के लेख के अनुसार सदाशिव जी कहे है कि जो मुझमे और कैलाशपति शिव में भेद करेगा या हम दोनों को अलग मानेगा वो नर्क में गिरेगा । या फिर शिव और विष्णु में जो भेद करेगा वो नर्क में गिरेगा। वास्तव में मुझमे,ब्रह्मा,विष्णु और कैलाशपति शिव कोई भेद नही हम एक ही है। परंतु सृष्टि के कार्य के लिए हम अलग अलग रूप लेते है।
यही प्रमाण देवीभागवत पुराण में है। इसलिए इन दोनों पुराण से यह निष्कर्ष निकाला कि तीनों देवताओ के माता है। अब प्रश्न उठता है कि माता है तो पिता भी होगा!
देवीभागवत पुराण में लिखा है कि देवी का ब्रह्म के साथ अभेद सम्बंध हैं ब्रह्म को सदाशिव भी कहते हैं।
वास्तव में ब्रह्म(सदाशिव) व आदिशक्ति जी ही इन तीनों देवताओं के माता पिता है
पृथ्वी पर बीते हुए इतिहास में सतयुग से कलयुग तक, एक ही मानव शरीर एैसा है जिसके ललाट पर ज्योति है। इसी स्वरूप द्वारा जीवन व्यतीत कर परमात्मा ने मानव को वेदों का ज्ञान प्रदान किया है जो मानव के लिए अत्यंत ही कल्याणकारी साबित हुआ है। वेदो शिवम शिवो वेदम।। परमात्मा शिव के इसी स्वरूप द्वारा मानव शरीर को रुद्र से शिव बनने का ज्ञान प्राप्त होता है।
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