मूल नक्षत्र में जन्में बच्चे कैसे होते है ? | Jha Amrit Shastri
• मूल नक्षत्र में जन्में बच्चे का मुख देखना पिता के लिए क्यों माना जाता है अशुभ? जानें खास बातें
हिंदू धर्म में अनेक परंपराएं और मान्यताएं हैं। इनमें से कुछ का आधार वैज्ञानिक है तो कुछ का आधार धार्मिक। वहीं कुछ परंपराओं के पीछे मनोविज्ञान छिपा है। लेकिन बहुत कम लोग इन कारणों से बारे में जानते और समझते हैं।
उज्जैन. हिंदू मान्यताएं के अनुसार, जब भी किसी बच्चे के जन्म होता है ये जरूर देखा जाता है कि उसका जन्म नक्षत्र क्या है। अगर उस बच्चे का जन्म मूल नक्षत्रों में हुआ है तो फिर पिता का उस बच्चे का मुंह देखना शुभ नहीं माना जाता। इससे जुड़ी कई मान्यताएं हैं, हालांकि इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। आज हम आपको मूल नक्षत्र से जुड़ी खास बातें बाते रहे हैं, जैसे मूल नक्षत्र कौन से होते हैं। अगर किसी बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र में हो तो क्या करना चाहिए आदि। आगे जानें इन सभी प्रश्नों से जुड़े उत्तर…
क्या होते हैं नक्षत्र?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आकाश में स्थित तारों को समूह को नक्षत्र कहा जाता है। इनकी कुल संख्या 27 है। इनमें से कुछ शुभ और कुछ अशुभ बताए गए हैं। चंद्रमा जब पृथ्वी की परिक्रमा करता है तो इन नक्षत्रों के बीच में होकर गुजरता है। जब भी किसी का जन्म होता है तो उस समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, वही उस बच्चे का जन्म नक्षत्र माना जाता है। इसी नक्षत्र का शुभ-अशुभ प्रभाव उस बच्चे पर जीवन भर देखा जाता है।
• कौन-कौन से हैं मूल नक्षत्र?
ज्योतिष शास्त्र में कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं- अश्विन, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती। इनमें से 6 नक्षत्रों को मूल नक्षत्र कहते हैं, जो इस प्रकार हैं- मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा अश्विनी, रेवती और मघा।
• पिता को क्यों नहीं देखना चाहिए मूल में जन्में बच्चे का मुख?
ज्योतिषियों के अनुसार, जब किसी बच्चे का जन्म मूल नक्षत्रों में होता है तो उसके पिता को बच्चे का मुख नहीं देखना चाहिए। अगर वह ऐसा करता है तो निकट भविष्य में उसे या उसके किसी परिजन को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि इस बात का फैसला बच्चे की कुंडली देखकर किया जाता है। यदि बच्चे की कुंडली में ग्रहों की स्थिति अनुकूल हो तो चिंता करने की जरूरत नहीं होती। लेकिन फिर भी जब अगली बार बच्चे का जन्म नक्षत्र आए तो मूल की शांति जरूर करवानी चाहिए।
• कैसा होता है मूल नक्षत्र में जन्में बच्चे का नेचर?
मूल नक्षत्र का स्वामी केतु राशि स्वामी गुरु है, इसलिए इस नक्षत्र में जन्में बच्चों पर इन दोनों ग्रहों का प्रभाव जीवन भर बना रहता है।
ज्योतिषियों के अनुसार, मूल नक्षत्र में जन्मे बच्चे की कुंडली में ग्रहों की स्थिति शुभ हो तो ऐसा बालक तेजस्वी होता है। वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
शुभ प्रभाव होने पर मूल नक्षत्र में जन्में बच्चे कार्यकुशल व अच्छे वक्ता भी होते हैं। इनका खोजी स्वभाव इन्हें अन्य लोगों से विशेष बनाता है।
मूल नक्षत्र में जन्म बच्चे की ग्रह स्थिति ठीक न हो तो उसकी सेहत बिगड़ती रहती है। और वह क्रोधी और ईर्ष्यालु स्वाभाव का हो जाता है।
Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें। आर्टिकल पर भरोसा करके अगर आप कुछ उपाय या अन्य कोई कार्य करना चाहते हैं तो इसके लिए आप स्वतः जिम्मेदार होंगे। हम इसके लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।
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