जिन खोजा तिन पाईयां,पारब्रह्म घट माहीं।
यह जग बौरा हो रह्या,इत उत ढूंढन जाहीं।।
साहेब बंदगी🙏🙏🙏,साहेब!
(सरलार्थ: सदगुरु कबीर साहेब कहते है कि जिस किसी ने भी अपने घट में अंदर ही पारब्रह्म(परमात्मा/साहेब/आदिराम)को ढूंढने का प्रयास किया है उसे वह परमात्मा अपने अंदर ही मिला है। इस सत्य बात से अनजान होकर,यह सारा जग बौरा हो रहा है और उस परमात्मा को ढूंढने इधर उधर घूम रहा है।)
(Explained meaning: Sadguru Kabir Sahib says that whoever has tried to find Parabrahma (Paramatma/Saheb/Adiram) within himself has found (that)God/True Rama within himself. Being unaware of this truth, this whole world is going crazy/mad and roaming here and there in search of (that) God/Saheb.)
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सदगुरु कबीर साहेब और उनके शिष्य का संवाद:
सदगुरु कबीर साहेब अपने शिष्यों को उपदेश देने के लिए अपने सिंहासन पर बैठे हुए है। सभी शिष्य एक साथ नतमस्तक होकर व हाथ जोड़कर अपने गुरु के प्रति बड़ी श्रद्धा और समर्पण दिखाते हुए अभिवादन करते है और बोलते है: साहेब बंदगी,साहेब!
कबीर साहेब जी का एक शिष्य अपने गुरु से कहता है: हे गुरुदेव,हे सदगुरु,मेरे मन में एक प्रश्न है, जिसे मैं आपसे पूछना चाहता हूं यह प्रश्न जगत के कल्याण से जुड़ा हुआ है। इस प्रश्न के उत्तर में जीव मात्र का कल्याण छिपा हुआ है।
कबीर साहेब बोलते है: हे शिष्य, आपका प्रश्न जीव मात्र के कल्याण के लिए ही होता है। इसलिए अपना प्रश्न पूछिए।
शिष्य बोलता है: हे गुरुदेव, हे मेरे साहेब, इस संसार में अनेकों मनुष्य परमात्मा की तलाश में अर्थात् परमात्मा को पाने के लिए इधर उधर घूमते है और घूम रहे है, फिर भी उन्हें परमात्मा के दर्शन क्यों नहीं होते है?
सदगुरु कबीर साहेब जवाब देते है: हे मेरे प्रिय शिष्य! जो मैं कहने जा रहा हूं, उसे ध्यान से सुनो और इस पर अमल करो।
जिन खोजा तिन पाईयां,पारब्रह्म घट माहीं।
यह जग बौरा हो रह्या,इत उत ढूंढन जाहीं।।
अर्थात् जिस किसी ने भी अपने घट के अंदर ही पारब्रह्म परमात्मा अर्थात् आतम राम साहेब को ढूंढने का प्रयास किया है, उसे अपना पीव अर्थात् परमात्मा अपने अंदर ही मिला है। इस सत्य बात से अनजान होकर, कि प्रत्येक जीव के अंदर उसका मालिक,उसका राम, उसका साहेब विराजमान है। जिस प्रकार तिल के अंदर उसका तेल छिपा हुआ होता है और जिस प्रकार चकमक पत्थर के अंदर अग्नि छिपी होती है, ठीक उसी प्रकार सभी आत्माओं का आधार, आतम राम सभी जीवों में समाया हुआ है।
ज्यों तिल माही तेल है,ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझहीं में है,जाग सके तो जाग।।
यदि घर के अंदर रखी हुई वस्तु को हम घर के अंदर ही ना तलाश करके, बाहर किसी अन्य जगह ढूंढे या तलाश करे तो क्या वह वस्तु मिल सकती है। यही हाल इस जगत अर्थात् संसार का है। यह सारा जग बौरा हो रहा है अर्थात् नासमझ हो रहा है और सभी जीवात्माओं के सिर्जनहार, परमात्मा साहेब को अपने अंदर ढूंढने या तलाश करना छोड़कर बाहर इधर उधर घूमते हुए ढूंढने में लगा है ।
वस्तु कहीं ढूंढे कहीं,वस्तु न आवे हाथ।
कहे कबीर तब पाईयां,जब भेदी लीना साथ।।
आतम राम अर्थात् परमात्मा को प्राप्त करने का रास्ता तो स्वयं मनुष्य के अपने अंदर होकर ही जाता है। हे शिष्य, जो सब कुछ बाहर है, वह सब कुछ सूक्ष्म रूप से मनुष्य के शरीर में भी मौजूद है, लेकिन बिना सदगुरु की कृपा के,कोई भी परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकता। सदगुरु ही भेदी है। वो ही हमे परमात्मा से हमे मिला सकते है। इसलिए सर्वप्रथम सदगुरु की शरण में जाना और उनकी भक्ति करना ही इस भवसागर से बाहर निकलने का एक मात्र उपाय है।
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