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Скачать или смотреть वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की सम्पूर्ण कथा | Bejnath Jyotirling Katha | Sawan Special Shiv Katha

  • FD Ram Bhajan
  • 2023-05-28
  • 5415
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की सम्पूर्ण कथा | Bejnath Jyotirling Katha | Sawan Special Shiv Katha
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वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की सम्पूर्ण कथा | Bejnath Jyotirling Katha | Sawan Special Shiv Katha | Shiv Bhajan

🔘Song : Vaidyanath Katha
🔘Singer : Shikha Rana
🔘Lyrics : Sandeep Kapoor
🔘 Music : Pritam Rawat
🔘Label : Katha Mahasagar

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श्री वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंग में से 9 वां लिंग है जो भारत के झारखंड राज्य के देवघर पर स्थित है, सिद्ध पीठ होने की वजह से यहां भक्तों की मुरादे जल्दी पूरी होती हैं इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को “कामना लिंग” कहते हैं। आइये जानते है इस मंदिर से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें इस लेख के माध्यम से ,
वैद्यनाथ नौवाँ ज्योतिर्लिंग
श्री शिव महापुराण के उपर्युक्त द्वादश ज्योतिर्लिंग की गणना के क्रम मे श्री वैद्यनाथ को नौवाँ ज्योतिर्लिंग बताया गया है। स्थान का संकेत करते हुए लिखा गया है कि ‘चिताभूमौ प्रतिष्ठित:’। इसके अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी ‘वैद्यनाथं चिताभूमौ’ ऐसा लिखा गया है। ‘चिताभूमौ’ शब्द का विश्लेषण करने पर परली के वैद्यनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों में नहीं आते हैं, इसलिए उन्हें वास्तविक वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मानना उचित नहीं है। सन्थाल परगना जनपद के जसीडीह रेलवे स्टेशन के समीप देवघर पर स्थित स्थान को 'चिताभूमि' कहा गया है। जिस समय भगवान शंकर सती के शव को अपने कन्धे पर रखकर इधर-उधर उन्मत्त की तरह घूम रहे थे, उसी समय इस स्थान पर सती का हृत्पिण्ड अर्थात हृदय भाग गलकर गिर गया था। भगवान शंकर ने सती के उस हृत्पिण्ड का दाह-संस्कार उक्त स्थान पर किया था, जिसके कारण इसका नाम ‘चिताभूमि’ पड़ गया। श्री शिव पुराण में एक निम्नलिखित श्लोक भी आता है, जिससे वैद्यनाथ का उक्त चिताभूमि में स्थान माना जाता है।,
कथा
वैद्यनाथ लिंग की स्थापना के सम्बन्ध में लिखा है कि एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर स्थिर होकर भगवान शिव की घोर तपस्या की। उस राक्षस ने अपना एक-एक सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिये। इस प्रकिया में उसने अपने नौ सिर चढ़ा दिया तथा दसवें सिर को काटने के लिए जब वह उद्यत (तैयार) हुआ, तब तक भगवान शंकर प्रसन्न हो उठे। प्रकट होकर भगवान शिव ने रावण के दसों सिरों को पहले की ही भाँति कर दिया। उन्होंने रावण से वर माँगने के लिए कहा। रावण ने भगवान शिव से कहा कि मुझे इस शिवलिंग को ले जाकर लंका में स्थापित करने की अनुमति प्रदान करें। शंकरजी ने रावण को इस प्रतिबन्ध के साथ अनुमति प्रदान कर दी कि यदि इस लिंग को ले जाते समय रास्ते में धरती पर रखोगे, तो यह वहीं स्थापित (अचल) हो जाएगा। जब रावण शिवलिंग को लेकर चला, तो मार्ग में ‘चिताभूमि’ में ही उसे लघुशंका (पेशाब) करने की प्रवृत्ति हुई। उसने उस लिंग को एक अहीर को पकड़ा दिया और लघुशंका से निवृत्त होने चला गया। इधर शिवलिंग भारी होने के कारण उस अहीर ने उसे भूमि पर रख दिया। वह लिंग वहीं अचल हो गया। वापस आकर रावण ने काफ़ी ज़ोर लगाकर उस शिवलिंग को उखाड़ना चाहा, किन्तु वह असफल रहा। अन्त में वह निराश हो गया और उस शिवलिंग पर अपने अँगूठे को गड़ाकर (अँगूठे से दबाकर) लंका के लिए ख़ाली हाथ ही चल दिया। इधर ब्रह्मा, विष्णु इन्द्र आदि देवताओं ने वहाँ पहुँच कर उस शिवलिंग की विधिवत पूजा की। उन्होंने शिव जी का दर्शन किया और लिंग की प्रतिष्ठा करके स्तुति की। उसके बाद वे स्वर्गलोक को चले गये।

यह वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मनुष्य को उसकी इच्छा के अनुकूल फल देने वाला है। इस वैद्यनाथ धाम में मन्दिर से थोड़ी ही दूरी पर एक विशाल सरोवर है, जिस पर पक्के घाट बने हुए हैं। भक्तगण इस सरोवर में स्नान करते हैं। यहाँ तीर्थपुरोहितों (पण्डों) के हज़ारों घाट हैं, जिनकी आजीविका मन्दिर से ही चलती है। परम्परा के अनुसार पण्डा लोग एक गहरे कुएँ से जल भरकर ज्योतिर्लिंग को स्नान कराते हैं। अभिषेक के लिए सैकड़ों घड़े जल निकाला जाता हैं। उनकी पूजा काफ़ी लम्बी चलती है। उसके बाद ही आम जनता को दर्शन-पूजन करने का अवसर प्राप्त होता है।

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