What is the secret of Dwarka?
क्या है द्वारिका रहस्य।
@DivyaDarshanbr-45
द्वारका नगरी समुद्र में कैसे डूबी एक स्वप्न समान नगरी का रहस्य भारत की प्राचीन सभ्यताओं में “द्वारका” का नाम एक ऐसे स्वर्गिक नगर के रूप में आता है जिसे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था। यह नगरी, समुद्र तट पर बसी, सोने के महलों, मोतियों से जड़ी दीवारों और सुवर्ण द्वारों से चमकती थी। महाभारत, हरिवंश पुराण, विष्णु पुराण और स्कंद पुराण सभी में द्वारका के वैभव और उसके अंत की कथा विस्तार से मिलती है। लेकिन सबसे बड़ा रहस्य यह है —
क्या द्वारका वास्तव में समुद्र में डूबी थी?
अगर हाँ, तो क्यों और कैसे डूबी?
इस प्रश्न का उत्तर न केवल धार्मिक कथा है, बल्कि इतिहास, भूगोल और आधुनिक विज्ञान की खोजों से भी जुड़ा है। आइए, हम एक-एक चरण में इस रहस्य को समझते हैं।श्रीकृष्ण और द्वारका की स्थापना जब कंस का वध हुआ और मथुरा में यादवों का राज्य स्थापित हुआ, तब जरासंध ने बार-बार मथुरा पर आक्रमण किया। यादव बार-बार विजयी तो हुए, पर युद्धों से थक चुके थे। श्रीकृष्ण ने सोचा कि मथुरा अब सुरक्षित नहीं रह सकती क्योंकि यह चारों ओर से स्थलीय सीमाओं में घिरी है।
इसलिए उन्होंने सागर के पास एक नया नगर बसाने का निश्चय किया। भगवान विष्णु के वरदान से समुद्र देवता ने अपने जल का एक हिस्सा पीछे हटा लिया, और वहां एक भूमि प्रकट हुई। उसी भूमि पर “द्वारका” की स्थापना हुई — जिसका अर्थ है “द्वारों का नगर” या “द्वार का नगर”।
तो दोस्तों वीडियो में आगे बढ़ने से पहले मैं एक बात करना चाहता हूं कि अगर चैनल को सब्सक्राइब नहीं किए हैं तो प्लीज सब्सक्राइब कर लीजिए और इसी तरह का वीडियो देखने के लिए हमारे चैनल पर समय-समय पर बने रहिए तो चलिए वीडियो में आगे बढ़ते हैं महाभारत के अनुसार, विश्वकर्मा ने स्वयं उस नगरी की रचना की थी। यत्र नित्यम् जलप्रायं, दिव्यं नगरीमपश्यत्।”
(महाभारत, सब्हा पर्व)
इस नगरी के चारों ओर सात विशाल द्वार थे, और हर द्वार की रक्षा देवदत्त रथों और प्रहरी सैनिकों द्वारा की जाती थी।
द्वारका का वर्णन ऐसा मिलता है मानो यह किसी दैवी लोक का विस्तार हो —
सोने की दीवारें, चाँदी की सड़कें, रत्नजटित मीनारें, और भीतर बहने वाले जलकुंड।
चारों ओर समुद्र की लहरें मानो रक्षा के लिए ही उठती थीं।
द्वारका का स्वर्ण युग और महाभारत का काल
श्रीकृष्ण के राज्य में द्वारका एक आदर्श शासन का उदाहरण थी। यहाँ विज्ञान, कला, युद्धकला, और शासन व्यवस्था में एक संतुलन था। राजा उग्रसेन नाम मात्र के शासक थे, पर वास्तविक प्रशासन श्रीकृष्ण के निर्देशन में चलता था। द्वारका में 9 लाख से अधिक भवन बताए गए हैं। हर परिवार को जल, अनाज, और सुरक्षा की गारंटी थी।विद्याध्ययन के लिए गुरु-संस्थाएँ थीं और यदुवंशी सेना अजेय मानी जाती थी।
यह वही काल था जब हस्तिनापुर में पांडव और कौरव संघर्षरत थे।महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने पांडवों का पक्ष लिया, और युद्ध के अंत के बाद द्वारका लौट आए।
लेकिन द्वारका का अंत भी यहीं से प्रारंभ हुआ।
श्राप, द्वारका का विनाश और यादवों का अंत
महाभारत युद्ध के बाद, जब श्रीकृष्ण ने धर्म की स्थापना कर दी, तब यदुवंशी कबीले अत्यधिक अहंकारी हो गए।
प्रचुर संपत्ति और शक्ति ने उनमें कलह और व्यसन को जन्म दिया। ऋषियों के श्राप ने द्वारका के अंत की नींव रखी।
ऋषियों का श्राप: एक बार कुछ ऋषि द्वारका आए। यादव राजकुमारों ने उनसे मज़ाक करते हुए साम्ब को स्त्री के वेश में उनके पास भेज दिया और पूछा — “मुनिवर! बताइए, यह स्त्री पुत्र को जन्म देगी या पुत्री को?” ऋषियों ने क्रोधित होकर कहा यह तुम्हें एक लोहे का मुसला (गदा) उत्पन्न करेगी जो तुम्हारे कुल का विनाश करेगा!” यह श्राप सच हुआ। साम्ब के गर्भ से लोहे का एक टुकड़ा निकला।
राजा उग्रसेन ने उसे जल में फेंकवा दिया, परंतु वह लोहे का कण रेत में मिलकर उग गया और बाद में वही यदुवंश के विनाश का कारण बना। यादवों का अंत: कालांतर में, द्वारका में शराब और कलह का वातावरण बढ़ा। एक दिन यादव समुद्र तट पर उत्सव मनाने गए और आपसी विवाद में उन्होंने उसी
लोहे की रेत से बने डंडों से एक-दूसरे का संहार कर दिया।
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