रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 59 - श्री कृष्ण और बलराम का जरासंध के साथ युद्ध

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बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।

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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 59 - Sri Krishna and Balarama's war with Jarasandh

मगध का राजा जरासंध अपने जमाता कंस की मौत का प्रतिशोध लेने के लिये अपनी सेना के साथ मथुरा को घेर लेता है किन्तु नगर में प्रवेश करने से पूर्व वह राजा शूरसेन को पत्र भेजकर शर्त रखता है कि यदि कृष्ण और बलराम को उसके सुपुर्द कर दिया जाये तो वह मथुरा का विध्वंस नहीं करेगा। मथुरा की राजसभा में अक्रूर इस पत्र को पढ़ते हैं। कुछ मंत्री पत्र की शर्तों पर भड़क उठते हैं। किन्तु कृष्ण स्वयं उठकर कहते हैं कि मथुरा के हित में वह और बलदाऊ नगर से बाहर निकल कर जरासंध के समक्ष आत्मसमर्पण कर देंगे। जरासंध इसे बिना लड़े अपनी जीत मानता है। दूसरे दिन प्रातः जब दोनों भाई मथुरा से बाहर जाने के लिये मार्ग पर निकलते हैं तो हर कहीं यही पुकार उठती है कि वे आत्मसमर्पण करने न जायें। कुछ लोग तो उनके पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाते भी हैं लेकिन कृष्ण बलराम अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ने से नहीं रुकते। यहाँ तक कि नगर का द्वार रक्षक भी बहुत ही मुश्किल से नगर का द्वार खोलने के लिये राजी होता है। सेनापति अक्रूर भी एक बलिदानी जत्था लेकर कृष्ण के साथ जाने का हठ करते हैं। कृष्ण राजी होते हैं किन्तु उन्हें अपने पीछे आने को कहते हैं। जरासंध कृष्ण के पीछे कुछ सैनिकों को आते देखता है तो बाणासुर से इसकी वजह पूछता है। इसपर बाणासुर उपहास उड़ाने के अन्दाज में कहता है कि यह कृष्ण और बलराम के मृत शरीरों को उठाकर वापस मथुरा ले जाने के लिये आ रहे हैं। जरासंध अपने साथी राजाओं से कहता है कि कृष्ण और बलराम का वध मुझे अकेले करने दिया जाये। रणभूमि के मध्य में पहुँचने पर कृष्ण और बलराम ठहरते हैं और कृष्ण अपनी उँगली आकाश की ओर उठाकर कोई संकेत भेजते हैं। नीला आकाश लाल पड़ जाता है। बिजलियाँ कड़कने लगती है। यह दृश्य देखकर जरासंध के सैनिकों में भय से भगदड़ मच जाती है। हाथी और घोड़े भी बिदक जाते हैं। अक्रूर प्रभु की लीला देखकर नतमस्तक होते हैं। जरासंध और शल्य की आँखों के सामने बिजलियाँ कौंधने लगती हैं और उन्हें दिखना बन्द हो जाता है। तभी आकाश मार्ग से दो दिव्य रथ सारथियों के साथ धरती पर उतरते हैं। रथ के पीछे पीछे पाँच अस्त्र शस्त्र भी प्रकट होते हैं। श्रीकृष्ण इनमें से सुदर्शन चक्र, गदा और धनुष धारण करते हैं। वस्तुतः श्रीकृष्ण इस अवतार में पहली बार अपना सुदर्शन चक्र धारण करते हैं। इसके बाद सावर्तक हल प्रकट होता है जिसे हलधर बलराम मूसल के साथ धारण करते हैं। बलराम सदा ही हल और मूसल को अस्त्र बनाकर दुष्टों का संहार करते हैं। अस्त्र शस्त्र धारण करने के बाद श्रीकृष्ण बलराम से कहते हैं कि हम दोनों पहली बार युद्ध लड़ने जा रहे हैं और इस अवतार में आप बड़े हैं तो इस युद्ध के सेनापति आप ही होंगे और आगे रहकर युद्ध का संचालन करेंगे। इस पर बलराम शर्त रखते हैं कि मैं युद्ध अपनी नीति से लड़ूगा और कृष्ण बीच में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि आप जरासंध का वध न करें। जरासंध को अपमानित कर जीवित छोड़ देने पर वह पुनः दुष्ट राजाओं को एकत्र करेगा और पुनः आक्रमण करेगा। इस तरह हमें मथुरा में बैठे-बैठे दुष्ट राजाओं के संहार करने का अवसर मिलता रहेगा। श्रीकृष्ण पान्चजन्य शंख बजाकर युद्ध की घोषणा करते हैं। शंखनाद सुनकर जरासंध शल्य से कहता है कि यह आत्मसमर्पण नहीं हो सकता। हमें धोखा दिया जा रहा है। वह अपनी सेना को आक्रमण करने का आदेश देता है। श्रीकृष्ण अपना सुदर्शन चक्र शत्रुदल पर चलाते हैं। अक्रूर भी अपने मुठ्ठी भर सैनिकों को लेकर रण में कूद पड़ते हैं। जरासंध और उसके सहयोगी राजा हर प्रकार के अस्त्र शस्त्र को प्रयोग करते हैं किन्तु श्रीकृष्ण और बलराम उनके हर प्रहार को विफल कर देते हैं। इसके बाद दोनों भाई उनका वध करने से पहले उनका अहंकार तोड़ते हैं। पहले सभी राजाओं को मुकुट विहीन किया जाता है और फिर रथ और शस्त्र विहीन। रणभूमि में चारों ओर लाशें ही लाशें बिछी हैं। जरासंध गदा लेकर बलराम का सामना करने आता है। प्रारम्भ के कुछ प्रहार बलराम के शरीर को चोट पहुँचाते हैं। यह देख अक्रूर उनकी सहायता को आगे बढ़ना चाहते हैं किन्तु श्रीकृष्ण उन्हें रोक देते हैं। वह जानते हैं कि बलदाऊ शेषावतार हैं। अभी वह कुछ देर जरासंध के साथ खेल खेलना चाहते हैं। जरासंध भी बलवान है। दोनों के बीच भीषण गदायुद्ध होता है।
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