जन्म कुंडली के लग्न में सभी ग्रहों का फलादेश, कौन सा ग्रह है आपके लग्न में,

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सूर्यः यदि बली सूर्य, केन्द्र अथवा त्रिकोण का स्वामी होकर लग्न में स्थित हो तो यह उर्जा का बहुत बड़ा स्रोत होता है। प्रथम भाव में स्थित ऐसा सूर्य जातक को उच्च आन्तरिक बल, प्रबल इच्छाशक्ति, सत्ता के प्रति प्रेम और अच्छा स्वास्थ्य देता है। शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि से प्रभावित लग्न में स्थित उच्च का सूर्य जातक की प्रगति एवं अच्छे भाग्य का सूचक है। निर्बली सूर्य जातक को अहंकारी, झूठी प्रशंसा का प्रेमी, घमण्डी, झूठी शान वाला और बड़ा-चढ़ाकर बातें करने वाला बनाता है। अशुभ ग्रहों जैसे कि शनि और मंगल के साथ यह जातक को खून सम्बन्धित परेशानियां देता है।
चन्द्रमाः यदि पूर्ण चन्द्रमा वर्गोत्तम होकर लग्न में स्थित हो तो जातक को शक्तिशाली राजा बनाता है। ऐसा जातक दयावान, मानवतावादी, कार्य सम्पूर्ण करने की उर्जा का स्रोत, यात्राओं का शौकीन, लग्न में स्थित चन्द्रमा मानसिक शक्ति और समृद्धि देता है। ऐसा जातक प्रेम करने वाला, सिद्धान्तवादी, यात्री, शोधकर्त्ता और अच्छा लेखक होता है।चन्द्रमा से शनि की युति भ्रामकता देती है, मंगल की युति स्त्रियों में मासिक धर्म सम्बन्धित व्याधि के साथ-साथ जातक को निर्भयता भी देती है, राहु की युति वातोन्माद बनाती है और बृहस्पति की युति समृद्धि, धन-सम्पति एवं उच्च विचारों के लिए शुभ होती है। निर्बली चन्द्रमा जातक को अस्थिर, अविश्वासी, बार-बार विचार बदलने वाला, व्यर्थ में घूमने वाला, चिड़चिड़ा और लक्ष्यविहीन बनाता है।
मंगलः यदि मंगल उच्च अथवा स्वराशि का होकर लग्न में स्थित हो तो रुचक नाम का महापुरुष योग बनाता है और साहस, उत्तरदायित्व की भावना, दूसरों के प्रति शुभ भावनायें और सत्यता देता है। ऐसा जातक भय के नाम से भी परिचित नहीं होता और आकर्षक एवं तेजस्वी होता है। ऐसे जातक के चेहरे पर घाव का निशान या क्रोध के समय चेहरा लाल हो सकता है और इसमें आगे बढ़ने का अद्वितीय साहस होता है। ऐसे लोग क्रोध का शिकार जल्दी हो जाते है और जीवन साथी को ज्यादा नियंत्रण में रखना चाहते है, ऐसे लोगो के दाम्पत्य में दिक्कत लगी रहती है, लग्न में स्थित पीड़ित मंगल जातक को अस्वस्थता देता है, दुर्घटनाओं के प्रति उन्मुख बनाता है,
बुधः यदि बुध उच्च अथवा स्वराशि का होकर लग्न में स्थित हो तो भद्र नाम का महापुरुष योग बनाता है। ऐसा बुध जातक को बुद्धिमान बनाता है नवीन ज्ञान. खेलों में सम्मान, व्यवसाय में लाभ और तत्परता देता है।आज के समय के अनुसार ऐसा व्यक्ति आईटी, इन्टरनेट में निपुड होगा, अच्छी वाक् शक्ति,स्मरण शक्ति,ज्योतिष में रूचि लेने वाला होता है,
निर्बली बुध जातक को शीघ्र घबराने वाला, विशेषकर राहु के साथ होने पर मानसिक अवसाद देता है, त्वचा एवं नाड़ी सम्बन्धित परेशानियां देता है और बार-बार विचार बदलने वाला बनाता है।
बृहस्पतिः यदि बृहस्पति उच्च अथवा स्वराशि का होकर लग्न में स्थित हो तो हंस नाम का महापुरुष योग बनाता है। ऐसा बृहस्पति जातक को सौभाग्यशाली, आशावादी, और सम्मोहित करने वाले व्यक्तित्व का स्वामी बनाता है। ऐसा बृहस्पति प्रत्येक वस्तु को प्रचुरता में देता है और ज्ञान एवं सद्गति प्रदान करता है। लग्न में स्थित बृहस्पति दिशाबली होकर पंचम एवं नवम भाव अर्थात पूर्व पुण्य एवं भाग्य के भाव को दृष्ट करता है जिसके कारण वह कुण्डली के हजारों दोषों को धो डालता है। पराशर के अनुसार केन्द्र में स्थित बृहस्पति बहुत बड़ा रक्षक होता हैl 'निर्बली बृहस्पति जातक को बड़ा-चढ़ाकर बातें करने वाला, आडम्बर युक्त जीवन जीने वाला, वृथा स्तुति करनेवाला, उर्जा शक्ति एवं उत्साह की कमी से ग्रस्त और निर्बल इच्छा शक्ति एवं विश्वास वाला बनाता है। जातक धन,परिवार,संतान से सुखी होता है,
शुक्रः यदि शुक्र उच्च अथवा स्वराशि का होकर लग्न में स्थित हो तो मालव्य नाम का महापुरुष योग बनाता है। ऐसा शुक्र जातक को सुन्दर, सौम्य, दयावान, सन्जन, कलात्मक रुचिवाला, सुसंस्कृत, परिष्कृत मित्रों का प्रेमी वार्तालाप में दक्ष, सामाजिक एवं शिष्टाचार युक्त सहज कार्य करने वाला, निस्वार्थ और मृदु भाषी बनता है। निर्बली एवं पीड़ित शुक्र जातक को विकृत मानसिकता वाला, पथभ्रष्ट, म्लेच्छ और अरुचिपूर्ण जीवन जीने वाला बनाता है। पीड़ित शुक्र से गलत भोग विलास या ख़राब आदतों की लत हो सकती है,
शनिः यदि शनि लग्न में अपनी उच्च राशि या स्वराशि का होकर स्थित हो तो शश नाम का महापुरुष योग बनाता है जो समृद्धि दायक योगों में से एक महत्वपूर्ण योग है। ऐसा जातक गंभीर, निष्कपट, विचारक एवं विवेचक व्यक्ति होता है और अपने जीवन में सफलता धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से प्राप्त करता है। जातक भ्रामक मानसिकता वाला, दुर्बल असन्तोषी और रहस्यपूर्ण प्रवृति का होता है भाग्यहीनता. शिथिलता या देरी के कारण हानि उठाता है, शीघ्र घबराने वाला और डरपोक होता है लेकिन मध्य आयु के बाद भयहीन हो जाता है। यदि शनि पीड़ित हो तो जातक नाक एवं सांस सम्बन्धित रोगों से ग्रसित रहता है, भार्या अधिक आयु की दिखती है,, और अपने कर्मो , बुरी आत्माओं, दरिद्रता एवं चोरों से परेशान रहता है। वह दिखने में कुरुप होता है बुरे विचार वाला या षडयन्त्र रचने वाला होता है, दूसरों के प्रति द्वेष भावना रखता है और कई प्रकार के रोगों से पीड़ित रहता है
राहुः यदि शुभ स्थित लग्नस्थ राहु उच्च का हो अथवा स्वराशि का हो तो जातक को शत्रुओं पर विजय करने वाला बनाता है और प्रभावशाली व्यक्तित्व देता है। यह सम्मान की प्राप्ति, धार्मिक क्रिया-कलापों के द्वारा धन प्राप्ति, शिक्षा एवं वैज्ञानिक उपलब्धियां और दूसरों की सहायता से सफलता प्राप्त करवाता है। मेष, कर्क एवं सिंह राशियों का लग्नस्थ राहु, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता हैl लग्न में राहू जातक को चालक बनाता है, ऐसे लोग जैसे दीखते है वास्तव में वैसे होते नहीं हैl इनके व्यक्तित्त्व को पढ़ना मुश्किल होता हैl ऐसे लोग काम निकालने में निपुड होते हैl
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