ऐसा नशा जो कभी उतरे नहीं | Sadhguru Hindi

Описание к видео ऐसा नशा जो कभी उतरे नहीं | Sadhguru Hindi

सद्‌गुरु बताते हैं कि नशीले पदार्थ लेकर आप उस पदार्थ का आनंद लेने की कोशिश नहीं करते, बल्कि जीवन का आनंद लेने की कोशिश करते हैं। लेकिन जब आप मनुष्य होने की पूरी क्षमता को भी नहीं जानते, तो खुद को सुलाने के लिये समय ही कहाँ है? सद्‌गुरु बताते हैं, कि परमानन्द और पूरी तरह से नशे में होते हुए, पूरी तरह सजग रहने की संभावना भी मौजूद है - और वो भी बिना किसी पदार्थ का इस्तेमाल किए।

English video:    • Bliss Beyond Intoxication | Sadhguru  

एक योगी, युगदृष्टा, मानवतावादी, सद्‌गुरु एक आधुनिक गुरु हैं, जिनको योग के प्राचीन विज्ञान पर पूर्ण अधिकार है। विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्‌गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के करोडों लोगों को एक नई दिशा मिली है। दुनिया भर में लाखों लोगों को आनंद के मार्ग में दीक्षित किया गया है।

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Transcript:
हम नशा करके सच्चाई से भागते हैं।
क्या जीने के इस तरीके को स्वीकार किया जा सकता है?

सद्‌गुरु – जब आप पूछते हैं कि क्या कोई चीज़ सही है या गलत, तो आप नैतिक तरीके से प्रश्न पूछ रहे हैं। मैं जीवन को नैतिकता के नजरिए से नहीं देखता। मेरे लिए सिर्फ एक ही प्रश्न है - कि क्या कोई चीज़ कारगर है, या नहीं है। क्योंकि जब हम यहाँ जीवन के रूप में आते हैं, जीवन का हर रूप, सिर्फ इंसान नहीं, जीवन का हर रूप एक पूर्ण विकसित जीवन बनने की इच्छा रखता है, हाँ?
एक कीड़ा पूर्ण विकसित कीड़ा बनना चाहता है। एक मकोड़ा पूर्ण विकसित मकोड़ा और एक पेड़ एक पूर्ण विकसित पेड़ बनना चाहता है। और इंसान भी पूर्ण विकसित इंसान बनना चाहता है। लेकिन हम स्पष्ट रूप से जानते हैं, कि एक पूर्ण विकसित कीड़ा कैसा होता है, एक पूर्ण विकसित मकोड़ा कैसा होता है, एक पूर्ण विकसित पेड़ कैसा होता है, लेकिन हम नहीं जानते कि पूर्ण विकसित इंसान कैसा होता है। आप जो भी बन जाते हैं, तब भी आपके अन्दर कुछ और बनने की इच्छा होती है, है न?
तो ये स्पष्ट है कि आप नहीं जानते पूर्ण विकसित इंसान कैसा होता है। जब आप ये भी नहीं जानते कि पूर्ण विकसित इंसान कैसा होता है, तो आपके पास सोने का समय कहाँ है? देखिए, किसी भी तरह के नशे का मतलब है आप किसी रूप में जीवन को दबा रहे हैं। जो इन्सान जानता है कि अपने विचारों और भावनाओं को कैसे संभालना है.. अगर आप जानते कि अपने विचारों और भावनाओं को वैसा कैसे रखें जैसा आप चाहते हैं। तो क्या आप खुद को आनंद में रखते या तनाव में या दुखी?
मैं पूछ रहा हूँ। ये एक सवाल है। अगर आपके विचार और भावनाएं आपसे निर्देश लेते, तो क्या आप स्वाभाविक रूप से खुद को सबसे ऊंचे सुख और अनुभव की स्थिति में रखते ?
आप ऐसा ही करते।
तो, अगर आप अपने भीतर सबसे ऊंचे अनुभव के स्तर पर होते, तो क्या आप उसे शराब या ड्रग से दबाना चाहते? नहीं। तो फिलहाल हमारे मन ऐसी स्थिति में हैं, कि वे ज़बरदस्त तनाव और दुःख पैदा कर रहे हैं। आप चाहते हैं कि कम से कम शाम में कुछ आराम मिले। अगर आप पूरे दिन पीयेंगे, तो वे आपको एक नाम दे देंगे। तो कम से कम घर जाकर..। एक महीने पहले, मैं न्यूयॉर्क में था.. कई लोगों के साथ। मैंने उनसे पुछा, आपको क्या लगता है कि न्यू यॉर्क शहर के कितने लोग, शाम में शांति से बैठ सकते हैं। आनंद से नहीं, बस शांति से। बिना शराब का एक भी गिलास पीये। मैं शराब के एक गिलास को सबसे छोटा डोस मान रहा हूँ।
वे आपसी चर्चा के बाद बोले पांच प्रतिशत। पांच प्रतिशत लोग शाम में शांति से बैठ सकते हैं, बिना एक भी गिलास शराब पीये।
मैं लंदन में था, कुछ बहुत प्रसिद्द लोगों के साथ। मैंने उनसे पूछा लन्दन मे कितने प्रतिशत लोग बिना एक गिलास शराब पीये शांति से बैठ सकते हैं? वे बोले, एक प्रतिशत से कम लोग। मेरा मतलब, पूरी दुनिया इस दिशा में जा रही है। आप इसकी वजह जानते है।
वजह बस ये है कि इन्सान का तर्क पहले से कहीं ज्यादा सक्रिय है। मानवता के इतिहास में इससे पहले कभी, इतने सारे लोग खुद के लिए सोच नहीं पाते थे। पहले आपके पादरी, पंडित, ग्रन्थ, गुरु या कोई और आपके लिए सोचते थे। आपको सोचना नहीं होता था।
कई संस्कृतियों में अगर आप सोचते थे, तो वे सिर काट देते थे। अगर आप वहाँ मौजूद किताब से परे जाकर खुद के लिए सोचते थे, तो वे आम तौर पर आपका सिर काट देते थे। क्योंकि आप परेशानी थे। हाँ या ना? लेकिन मानवता के इतिहास में पहली बार, इतने ज्यादा लोग खुद के लिए सोच रहे हैं। जब आप खुद के लिए सोचना शुरू कर देते हैं, तो जब तक कोई चीज़ तार्किक रूप से ठीक न हो, आप उसे मान नहीं पाते। है न?
कोई चीज़ आप तक पहुँचती है, तो जब तक वो आपको समझ न आए, आप उसे हजम नहीं कर सकते। है न?
लोगों के बीच होने वाली सबसे घटिया बहस भी.. आप प्रेसिडेंट पद की बहस देख रहे हैं, जो सबसे घटिया बहस कोई करता है, वो भी उस इन्सान की समझ में ठीक है। हाँ या ना? घर पर पति पत्नी में बहस हो रही है, दोनों को लगता है दूसरा बेतुका है, लेकिन अपने अंदर वे सोचते हैं कि उनकी बात में समझदारी है, है न?
तो जब तक बात तार्किक न हो, आप उसे हजम नहीं कर पाते। तो ऐसा होने के बाद.. दुनिया में ये होता है -
ये आपके साथ हो चुका है, और युवा पीढ़ी के साथ ज्यादा बड़े तरीके से हो रहा है।
स्वर्ग ढह गए हैं। ये छोटी बात नहीं है। स्वर्ग ढह रहे हैं।
इस पीढ़ी के लोगों के लिए भी.. वे ढह चुके हैं, पर वे किसी तरह से उन्हें बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन मैं आपको बता रहा हूँ, कि अगर वे नहीं ढहते.. तो आपके बच्चे उन्हें खींच कर गिरा देंगे।

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