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Скачать или смотреть विवाहित स्त्री हमे आकर्षित क्यों लगती है | विवाहित स्त्री का आकर्षण | Osho Speech

  • Osho World
  • 2025-10-18
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विवाहित स्त्री हमे आकर्षित क्यों लगती है | विवाहित स्त्री का आकर्षण | Osho Speech
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Описание к видео विवाहित स्त्री हमे आकर्षित क्यों लगती है | विवाहित स्त्री का आकर्षण | Osho Speech

ओशो इस विषय को केवल “लाल चाह” या “भौतिक आकर्षण” की दृष्टि से नहीं देखते, बल्कि उसे मानव मन, स्वतंत्रता, स्व-अधिकार और मानव सम्बन्धों की गहराई की विवेचना के रूप में देखते थे।

1. “क्यों विवाहित व्यक्ति आकर्षक होता है”

ओशो कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति पहले से किसी के साथ जुड़ा हुआ है — अर्थात विवाह या प्रतिबद्धता में है — तो उस व्यक्ति में एक “अनुभवित मूल्य” दिखाई देता है। शादीशुदा व्यक्ति यह संकेत देता है कि “मुझे किसी ने पहले पसंद किया है, किसी ने मुझे अपना बनाया है” — और इसलिए उसे आकर्षक लगता है।

“Millions of people … are more interested in the married person. … The unmarried person shows that nobody has yet desired him or her; the married person shows that somebody has desired him.”
Osho Fragrance

इसके अलावा:

विवाहित व्यक्ति अक्सर कम उपलब्ध दिखता है — “अलग” या “अलगाव में” प्रतीत होता है — और अस्थायी या चुनौतीपूर्ण चीज़ें अधिक आकर्षित करती हैं।
Osho Fragrance

आकर्षण अक्सर प्रतिस्पर्धा, मुकाबला, प्राप्ति की खुशी से जुड़ा होता है — “मैं ले सकूँ”, “मैं प्राप्त करूँ” की मानसिकता। ओशो इसे प्रेम नहीं बल्कि ईगो‑मुकाबला कहेंगे।
Osho Fragrance

2. असली विषय: उपयोग‑मुक्त सम्बन्ध और स्वतंत्रता

ओशो का मुख्य चिंतन यह रहा कि अधिकांश आकर्षण, प्रेम नहीं होता, बल्कि उपयोग, मालिकाना, अभिग्रहण की प्रवृत्ति होती है। जब आप विवाहित स्त्री (या पुरुष) की तरफ आकर्षित होते हैं, तो अक्सर यह subconscious रूप में होता है कि “यह मुझे मिल नहीं सकता”, “मेरे लिए चुनauti है”, “मैं उसे पा कर दिखाऊँगा” — और यह प्रेम नहीं बल्कि एक खेल बन जाता है।

“If you want to possess the husband you will have to be possessed by him. … A mind that is possessive will be possessed.”

ओशो कहते हैं कि प्रेम में स्वतंत्रता होनी चाहिए — न कि स्वामित्व। विवाह जैसे सामाजिक बँधन, जब प्रेम पर आधारित नहीं बल्कि अधिकार‑आधारित हो जाएँ, तो यह असली प्रेम को बाधित करते हैं।

3. इस दृष्टिकोण से “विवाहित स्त्री आकर्षक क्यों लगती है” — सार

कारण पहचान की भावना: “यह किसी ने पहले चुना है” → यह मुझे उचित लगता है।

चुनौती और प्रतिबंध: जो तुरंत उपलब्ध नहीं होता, उस पर आकर्षण स्वाभाविक रूप से बढ़ता है।

ईगो‑प्रश्न: “मैं उसे प्राप्त करूँगा, मैं उसे जीतूंगा” — यह प्रेम नहीं, प्रतिस्पर्धा है।

गुणवत्ता‑भ्रम: कई बार खुद को रोमांचित करने के लिए विवाहित व्यक्ति का “मिसिंग पज़ल” दिखना।

असली प्रेम के अभाव में विकल्प: जब प्रेम गहरा नहीं होता, तो आकर्षण बाहरी रूप, स्थिति या प्रतिबद्धता को देखकर होता है।

4. ओशो क्या सुझाव देते हैं

पहले यह देखें कि आप आकर्षित क्यों हो रहे हैं — क्या यह प्रेम है या सिर्फ प्रतिस्पर्धा, स्वामित्व की इच्छा, ईगो की जीत?

अपने भीतर यह समझें कि स्वतंत्रता, स्व‑मूल्य महत्वपूर्ण हैं — किसी को “मिलना” या “न मिलना” आपका मूल्य‑निर्धारण नहीं करता।

यदि आप किसी के प्रति आकर्षण महसूस करते हैं, तो उसे वस्तु या चीज़ के रूप में नहीं देखें, बल्कि एक पूर्ण व्यक्ति के रूप में देखें। ओशो कहते हैं: “अगर आप किसी को सिर्फ इसलिए चाहते हैं कि वह आपका हो जाए, तो आप उसे वस्तु बना रहे हैं।”

सम्बन्धों में मुक्ति (freedom) हो: प्रेम संबंध में बंधन नहीं, बल्कि साझेदारी होनी चाहिए। शादी को बुनियादी समझ के बिना, सिर्फ सामाजिक संरचना के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।

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