विश्व का एकमात्र राहु मंदिर | यहाँ राहु के साथ होती है भोलेनाथ की पूजा | उत्तराखंड | 4K | दर्शन 🙏

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हर हर महादेव. आप सभी का हमारे कार्यक्रम में हार्दिक अभिनन्दन. “ॐ रां राहवे नमः” भक्तों इस मंत्र से जुड़ा हुआ ग्रह अगर शुभ है तो आपके जीवन में शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही रूपों में सब कुछ शुभ होता है किन्तु अगर भय होता है तो इसके अशुभ होने पर. जी हाँ भक्तों यह मंत्र है राहु ग्रह का. जिसके नाम से ही लोग भयभीत हो जाते हैं. पर सोचिये क्या हो अगर आपको पता चले की इस ग्रह से जुड़े असुर का एक मंदिर भी है जहाँ लोग इनकी पूजा करते हैं.
भक्तों, उत्तराखंड को ऐसे ही देव भूमि नहीं कहा जाता, यहाँ देवताओं के साथ असुरों के मंदिर की भी पूजा होती है. और आज हम आपको दर्शन करवाने जा रहे हैं एक ऐसे ही मंदिर की, जो है पूरे विश्व में एक मात्र “इन्द्रेश्वर महादेव राहु मंदिर” जहाँ भगवान् भोलेनाथ एवं राहु साथ में पूजे जाते है.

मंदिर के बारे में:
उत्तराखंड के पौड़ी ज‍िले के पैठाणी गांव में स्‍थ‍ित केदारनाथ शैली में बना हुआ राहु मंदि‍र, स्योलीगाड़ नदी तथा नवालिका के संगम पर स्थित है। उत्तराखंड गढ़वाल मंडल में चारों ओर राष्ट्रकूट पर्वत से घिरा हुआ यह मंदिर बहुत ही भव्य, अद्भुत एवं सुंदर मंदिर है. इस मंद‍िर में राहु की पूजा भगवान श‍िव के साथ होती है. मंद‍िर को लेकर मान्‍यता है क‍ि अगर यहां पर क‍िसी वजह से राहु का पूजन बाध‍ित क‍िया जाता है, तो भगवान शि‍व उससे नाराज हो जाते हैं। मंदिर के बायीं तरफ त्रिवेणी संगम एवं नारद कुंड है. जिसमे से नारद कुंड अब विलुप्त हो चुका है. मंदिर में पांच शिवलिंग स्थापित है. मुख्य शिवलिंग गर्भग्रह में तथा अन्य चार शिवलिंग मंदिर के बाहर चारों कोनों में स्थापित किये गएँ हैं. तथा मंदिर के शीर्ष पर शेर और हाथी की प्रतिमा अंकित है। मान्यतानुसार यह स्थान राहु दशा की शांति पूजा का एक मात्र स्थान है. इसके ल‍िए देशभर से श्रद्धालु यहां पहुंचते है. मंदिर के समीप ही दुर्गा माता, हनुमान जी महाराज एवं श्री राम, सीता जी, लक्ष्मण जी का भी मंदिर है. इन्द्रेश्वर महादेव आने वाले श्रद्धालु इन मंदिरों के भी दर्शन पूरे श्रद्धा भाव से करते हैं.

मंदिर का निर्माण:
कहा जाता है इन्द्रेश्वर महादेव राहु मंदिर की स्थापना आदि गुरुशंकराचार्य जी ने की थी. मंदिर की स्थापना के विषय से सम्बंधित कुछ जनश्रुतियों के अनुसार कहा जाता है, कि जब पांडव स्वर्गारोहिणी यात्रा पर थे, तब उन्होनें राहु दोष से बचने के लिए यहीं पर भगवान शिव और राहु की पूजा कर मंदिर स्थापित किया। संभवतः कालांतर मंदिर किसी कारण क्षतिग्रस्त हो गया होगा, जिसे चूंकि आदि गुरु शंकराचार्य महाज्ञानी संत थे, अतः जब वे हिमालय की यात्रा पर आए तो उन्होंने इस स्थान पर राहु के प्रभाव का आभास किया एवं सनातन धर्म के अन्य मंदिरों के साथ इस मंदिर का भी पुनरुत्थान किया।

मंदिर का गर्भग्रह:
श्रद्धालु ऊँचे चबूतरे पर बने इस मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही सामने प्राचीन गर्भग्रह में प्रवेश करते हैं. जहाँ इन्द्रेश्वर महादेव विराजित है. शिवलिंग के समीप ही वीणाधर शिव की आकर्षक प्रतिमा के साथ त्रिमुखी हरिहर की एक दूर्लभ प्रतिमा भी स्थापित है। प्रतिमा के मध्य में हरिहर का समन्वित मुख सौम्य है, जबकि दांये ओर अघोर और बायीं ओर वराह का मुख अंकन किया गया है। मंदिर की दीवारों पर राहु के कटे सिर के साथ-साथ भगवान विष्णु के सुदर्शन की कारीगरी भी की गई है। लोगों क ऐसी मान्यता है की भगवान विष्णु द्वारा राहु का सिर काटे जाने के बाद यहां पत्थरों के नीचे राहु का सिर दबा हुआ है। यहां चढावे में मूंग की खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। तथा यहाँ भंडारे में भी लोगों को प्रसाद रूप में मूंग की खिचड़ी दी जाती है।
गर्भग्रह के बाहर देवी देवताओं की प्राचीन पाषाण की प्रतिमाएं स्थापित हैं. जिसमे भगवान् गणेश, हनुमान जी एवं चतुर्भुजी चामुंडा माता की प्रतिमा प्रमुख है। गर्भग्रह के बाहर ही नंदी जी की प्रतिमा भी विराजमान है.

राहु ग्रह:
भक्तों राहु के उत्पन्न होने से सम्बंधित कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय स्वरभानु नामक एक दानव ने छल से दिव्य अमृत की कुछ बूंदों का पान कर लिया जिसको सूर्य और चंद्र ने पहचान लिया और फिर मोहिनी अवतार में भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से दानव स्वर्भानु का सिर धड़ से अलग कर दिया. जिससे यही सिर राहु और धड़ केतु ग्रह बना तथा सूर्य- चंद्रमा से इसी कारण द्वेष होने से ग्रहण के समय सूर्य और चंद्रमा का ग्रहण करता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु एक छाया ग्रह है जिसको नवग्रह में एक स्थान दिया गया है। दिन में राहुकाल नामक मुहूर्त जो कि २४ मिनट की अवधि होती है यह अवधि अशुभ मानी जाती है। राहु एक क्रूर छाया ग्रह है किन्तु कूटनीति का सबसे बड़ा ग्रह भी माना जाता है और यह कड़े संघर्ष के बाद अच्छी सफलता दिलाता है, ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि राहु के खराब होने से कई तरह के मानसिक तनाव, भ्रमित होना, बाल झड़ना, नाखून टूटना आदि शारीरिक बीमारियाँ तथा कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके बारे में कहा जाता है कि कलियुग में राहु ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जो राजा को रंक और रंक को राजा बनाने की क्षमता रखता है. कलियुग में इसे बहुत ही प्रभावी माना गया है. अंकशास्त्र में इसको 4 अंक प्रस्तुत करता है. तथा इसकी दिशा दक्षिण पश्चिम मानी जाती है. इस ग्रह को शांत करने के लिए सरस्वती माता, हनुमान जी की एवं गणेश जी की पूजा भी बताई जाती है.

Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

श्रेय:
लेखक: याचना अवस्थी

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