Mayawati की दलित वोट बैंक पर BJP और I.N.D.I.A की भी नज़र, दलित वोट बैंक पर विपक्षियों में जंग

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अभी तक भाजपा ही दलित वोटरों को लुभाने में लगी थी। अब सपा ने भी डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। यही वजह है कि अखिलेश यादव ने मायावती के परंपरागत वोट बैंक पर टिप्पणी की तो मायावती भड़क उठीं। उन्होंने सपा को घोर दलित विरोधी करार दिया। इससे साफ है कि यूपी में दलित वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए अब बसपा, I.N.D.I.A. और NDA के बीच लड़ाई तेज हो चुकी है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या है इस लड़ाई की वजह? क्या तीन दशक से बसपा के साथ खड़ा दलित वोट बैंक अब छिटक रहा है और उस पर कब्जेदारी की लड़ाई शुरू हो चुकी है?दलित वोट बसपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। बसपा का गठन 1984 में हुआ। बसपा ने 1993 में सपा के साथ मिलकर पहली बार सरकार बनाई और मायावती पहली बार यूपी की सीएम बनीं। तब से दलित बसपा का मजबूत वोट बैंक है। बसपा ने 2007 में 206 सीट लाकर यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। तब बसपा को 30.43% वोट मिले थे। उसके बाद से उसका जनाधार लगातार गिरता गया। विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2012 में बसपा 80 सीटें जीत सकी और वोट प्रतिशत गिरकर 25.91% रह गया।घटते जनाधार और दलित वोट बैंक पर जंग के साथ ही बसपा के लिए और भी चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। बसपा के पास खुद मायावती ही इकलौता बड़ा चेहरा बची हैं। एक समय में बसपा के पास रहे कई बड़े चेहरे अब नहीं हैं। अब आकाश आनंद को चेहरे के तौर पर पेश किया गया तो कुछ उम्मीद बढ़ी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के बीच में ही उनको हटाए जाने से एक बड़ा झटका लगा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अब बसपा की आगे की राह कितनी मुश्किल होगी? क्या बसपा अब नए नेता कैसे तैयार करेगी और घटते जनाधार को कैसे रोकेगी?आकाश आनंद को मायावती ने राष्ट्रीय को-ऑर्डिनेटर और अपना उत्तराधिकारी बनाकर नए लोगों और खासकर युवाओं को जोड़ने की जिम्मेदारी दी थी। पिछले साल उनको चार राज्यों के विधानसभा चुनाव का जिम्मा सौंपा गया। वहां आकाश कुछ खास हासिल नहीं कर सके। उसके बाद अब लोकसभा चुनाव में उनको आगे किया गया। अचानक उनको पद से हटा दिया। ऐसे में नया नेतृत्व तैयार करने की कोशिश को झटका लगा है। साथ ही आकाश के लिए भी आगे की राह आसान नहीं होगी। उनके लिए अपने ऊपर लगा विफलता का टैग हटाना भी आसान नहीं होगा।

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