Starting Pari dancer // छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य नाचा परी डांसर / nacha durre banjari/मया के बोली भाखा

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छत्तीसगढ़ के लोक रंग म जतका भिन्नता हे वतका विशेषता घलो हे। इहां के मनखे मन जतका सीधा साधा अऊ भोला-भाला हे , वतका ही भोलापन इहां के कलाकारी म तको दिखथे। जे हमर छत्तीसगढ़ राज ल दूसर  आने राज के कला संस्कृति ले अलग ठउर अऊ सम्मान देथे। वो चाहे मया के बात ल ददरिया के रूप म गाय के होवय या फेर माईलोगन मन अपन विरह-वेदना ल सुआ गीत के माध्यम ले सुआ ल बता के अपन बात ल पठोय के होवय।
नारी मन के बात करन त छत्तीसगढ़ म नारी मन के पात्र ल लेके इहां के लोक जीवन म रचे बसे घटना या सामाजिक बदलाव ल लेके छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य नाचा म गम्मत (कौमिक) के माध्यम ले मनोरंजन के संगे-संग समाज के कुरीति म बदलाव लाय के सुग्घर उद्देश्य ले इहां के मनखे मन कलाकारी के माध्यम ले मंच म प्रस्तुति देथे।
फेर छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य नाचा ह आने राज के लोकनाट्य ले अपन अलग स्थान अऊ चिन्हारी रखथे। हमर राज के लोकनाट्य के सबले बड़का विशेषता आय कि इहां के गांव के बिना पढ़े लिखे कलाकार मन भी बिना कोनो लिखित पटकथा या स्क्रिप्ट के अपन संवाद ल मंच म खुदे गड़थे। अऊ माईलोगन के अभिनय ल इहां के टुरा जात (पुरूष) मन ही मंच म अभिनीत करथे। पहिनावा, बोल-चाल अऊ ये कलाकार मन के हाव-भाव ले माईलोगन अऊ इंखर म थोरको अंतर नई लगय। माईलोगन मन के जेन सुरीली आवाज रथे वइसनेहे सुर म गाथे अऊ गम्मत म संवाद कहिथे।
पहिली पुरखा मन के समे म जब नाचा के शुरुआत होइस त वो समे के तत्कालीन हमर समाज म नारी मन ल घर ले बाहिर निकल के कलाकारी करे के छूट नई रिहिस , तेखर सेती हमर पुरखा के कलाकार मन ह ये रद्दा ल अपनइस । आज हमन आधुनिक अऊ मशिनी युग के दुनिया म जियत हन, फेर पहिली के बखत म जब खड़े साज के नाचा ह छेना,भभका, गियास के अंजोर म होवय तब ये आधुनिक ध्वनिविस्तारक(पोंगा) यंत्र नई रिहिस, वोखरे परभाव आय कि नाचा के संवाद ल दरसक (देखइया) मन तक पहुंचाय बर नाचा के मंच म संवाद अऊ गायन चउथा परदा म  (जोर-जोर ले चिल्ला के) करे जाथे।

नाचा म माईलोगन के पात्र ल अभिनय करइया संगी मन ल परी/डांसर अऊ जनानी/नजरिया के नाम ले जाने जाथे।
अभी के आधुनिक नाचा के सुरवात म वंदना होथे जेमा पुरुष पात्र अऊ माईलोगन के सवांग करे दोनों तरह के कलाकार मन एकसंघरा समुह म मंच म नाचे बर आथे। छत्तीसगढ़ के नाचा के एकठन अऊ खासियत हे कि इहां के लोकनाट्य नाचा म हिन्दी के गाना ल लोकफेम म लेके गाय अऊ बजाय जाथे। जईसे-
अलाप- 1-तो हे भगवन ! तुम्हारे नाम के चारो तरफ दुहाई है ।मेरी भी बिगड़ी बना दे भगवन!
तुने लाखों की बिगड़ी बनाई है।।

2- तो गजब की बंसी बजती है कि बिन्दाबन बसईया की ।
     क्या तारिफ मैं करुँ भगवन कि मुरली धर कन्हईया की ।
गीत- देदे दरसन भवानी मोहे पावनी तेरी पईंया परँव महरानी।।
  तेरी पलकों की पलना संवारुँगी माँ ,
  तेरी मंदिर को धो कर सजा दुँगी माँ ।
  लाई हूँ असुँअन भर भरी गागरी , तेरी पईंया परँव महारानी।
          नाचा म नारी पात्र के अभिनय ल देखबे त सबले पहिली मुख्य आकरसन के रुप म निकल के आथे जेमा हमर छत्तीसगढ़ के गांव-देहात म नारी मन के मरयादा अऊ गांव के गली खोर म बहु मन के रेंगे के जेन दृश्य हे वो  कि कइसे ठंग ले छत्तीसगढ़ म नान्हे बहुरिया मरयादा के रूप म मुड़ी ढांक के रेंगथे। अऊ छत्तीसगढ़ म माईलोगन मन मुड़ी म लोटा बोही के खेत खार जाथे वहू ह मंच म जनानी के माध्यम ले दिखाई देथे। अऊ मे जहां तक समझथो नाचा के अगर "आत्मा" कहन त ओ "नारी" पात्र ही आय,जेकर बिना नाचा गम्मत के कल्पना घलो नई कर सकन। छत्तीसगढ़ म जइसे सुआ गीत के माध्यम ले नारी मन के विरह वेदना निकल के आथे वइसनेहेच नाचा के मंच म जनानी गीत म भी माईलोगन के दुख ह दिखथे।
जनानी गीत- 1- अई हो, हो, हो,हो , आ जाही धनी, मोर आही, परदेस ले, जी भर  के देखत रईहंव राजा ल निहार के। हो धनी ,
जी भर के देखत रईहंव धनी ल निहार के।
आज बिहनिया ले मोरे डेरी आंखी फरकत हे, छानी परवा म बईठ के कंऊआ कांव-कांव करत हे।
आ जाही धनी मोर आही परदेस ले, जी भर के देखत रईहंव धनी ल निहार के ।
2-  अई हो, हो , हो, हो ,बसुरिया बिना गउआ रोवय दाई वो बसुरिया बिना गउवा रोवय न  ।
मोर धनी गेहे परदेश ओ  बसुरिया बिना गउवा रोवय न  ,
बसुरिया बिना गउवा रोवय न ।
     आज के आधुनिक अऊ सिनेमाई दउर म नाचा के अस्तित्व ल बचा के रखना कतका बड़का काम हे ये तो कोन्हो नाचा के संगी मन ही बता पाही । फेर हमर नाचा के संगी मन कुछ परिवरतन के साथ आज भी नाचा के अस्तित्व ल बना के रखे हे, "बिना कोनो सरकारी मदद के"। फेर अब हमर सरकार ल पहल करे ल परही काबर कि नवा पीढ़ी म कलाकारी के ये हमर अमूल्य धरोहर ल बचा के रखईया नवा संगी अब वतेक जादा निकल के नई आवत हे जतेक पाछु के बछर म आवत रहिस । जब तक हमर सरकार ह अपन मदद के हाथ आघु नई बड़हाही त अवइया पीढ़ी म येखर परसार कम हो जाही , जेखर बिना नाचा ह छिंही-बिंही हो जाही।
ये उदिम बर सिरिफ सरकारेच ह जिम्मेदार नई हे हमर असन पढ़े लिखे संगी मन ल भी अइसन कलाकार मन के परती अपन जिम्मेदारी समझे ल परही, चाहे वो नाचा के मंच म हो या फेर उंखर असल जिनदगी म होय। कतको संगी मन नाचा म माईलोगन के अभिनय करइया कलाकार मन ल जेन मान मिलना चाहिए वो नई दे सकय, त वोमन ल इंखर बारे म चारी-चुगली (गलत टिप्पणी) करे के तको अधिकार नई हे। मय समझथव की दुनिया म सबले बड़का अऊ कठिन कलाकारी हमर ये नाचा के संगी मन करथे , जिंखर कर न तो कोनो लिखित म पटकथा स्क्रिप्ट नई होवय। मुहखरा एक दूसर ले सीख के प्रस्तुति देथे।

              आलेख
      दुर्गेश सिन्हा "दुलरवा"
  छुरिया बंजारी राजनांदगांव 

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