कैसे और क्‍यों हुई थी देवी दुर्गा की उत्‍पत्ति🙏

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माँ दुर्गा की कहानी 🙏🙏😊🤗

महर्षि व्यास द्वारा रचित अनेक पुराणों में से एक पुराण है श्रीमद् देवीभागवत पुराण, जो माँ दुर्गा की उत्पत्ति और उसके कर्तव्यों की रोचक गाथा है। इसमें बताया गया है कि एक समय सृष्टि पर महिषासुर नाम का एक राक्षस था, जिसका आधा शरीर असुर जैसा और आधा भैंस जैसा था। उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से यह वरदान पा लिया कि कोई भी देव, दैत्य या मानव उसे मार नहीं सके, कोई स्त्री ही उसे मारे। उसे यह भ्रम था कि जो स्वयं अबला है, वह मुझे मारने में समर्थ कैसे हो सकेगी?🙏

दुर्गा अर्थात् दुर्गुणनाशिनी🙏
अमर होने के अहंकार में आकर उसने देवताओं को सताना प्रारम्भ कर दिया। सभी देवताएँ दया की गुहार लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुँचे। ब्रह्मा जी, शंकर जी तथा विष्णु जी के पास पहुँचे। विष्णु जी की राय से सभी देवताओं के सम्मिलित तेज से एक नारी रत्न की उत्पत्ति हुई जिसे नाम मिला ‘दुर्गा’। दुर्गा अर्थात् यज्ञ रूपी दुर्ग की रक्षा करने वाली, दुर्गुणों का नाश करने वाली, दुर्गम कार्यों को सरल करने वाली तथा दुर्गति नाश करने वाली।🙏

असुरों से देवी का युद्ध
सभी देवताओं ने देवी को अलग-अलग आयुध प्रदान किये और आभूषणों से भी अलंकृत किया। जब वे सज-धज कर विराजमान हुई तो त्रिलोकी को मुग्ध करने वाले उनके दिव्य दर्शन पाकर देवताएँ उनकी स्तुति करने में संलग्न हो गये। अजन्मी भगवती ने तभी अपने मुख से वाणी निकाली जिसे सुन महिषासुर का सिंहासन हिलने लगा। उसने अपने असुर साथियों को इस आवाज़ का पता लगाने भेजा। जब उन असुरों ने बताया कि यह आवाज़ एक सुन्दरी देवी की है तो उसने विवाह का प्रस्ताव देकर अपने असुरों को देवी के पास भेजा। देवी के विवाह से मना करने पर उन्होंने देवी से युद्ध किया और मारे गये। वे असुर देवी को महिषासुर की सेवा करने के लिए मनाते रहे, उसके रूप की महिमा करते रहे परन्तु मना कर देवी ने एक-एक कर उन सभी को मौत के घाट उतार दिया।🙏


देवी के कर्तव्य की यादगार नवरात्रे
इसके बाद महिषासुर स्वयं आया और देवी के साथ बड़ी लुभावनी बातें करने लगा। परन्तु देवी ने उसे युद्ध के लिए ललकारा और वह भी मारा गया। इन असुरों से युद्ध करते-करते नौ दिन बीत गये इसलिए भक्तिमार्ग में नवरात्रों का त्यौहार इसी कर्तव्य की याद में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कहा गया है कि ‘कलियुग का नाश माँ दुर्गा ने किया।’ कलियुग नाश का अर्थ है – ‘कलियुग में उपस्थित राक्षसी वृत्तियों का नाश’। इनके नाश के बाद ही देवी वृत्तियों का युग सतयुग आया।

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