माँ सरस्वती की संगीतमय पूजा” — यह केवल बाहरी आराधना नहीं, बल्कि आंतरिक सुर, स्वर, और समरसता की साधना भी है। नीचे मैं आपको एक संपूर्ण संगीतमय पूजन-विधि दे रहा हूँ, जिसमें भक्ति, स्वर, और ध्यान का अद्भुत मेल है — जिसे आप घर या आश्रम में कर सकते हैं।
माँ सरस्वती की संगीतमय पूजा-विधि
1. प्रारंभिक शुद्धि एवं संकल्प
शुद्ध स्थान पर पूर्वमुखी बैठें, दीया जलाएँ।
धीरे-धीरे श्वास लें और मन में कहें —
“ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥”
फिर संकल्प लें —
“आज मैं सुरों के माध्यम से माँ सरस्वती का पूजन करूँगा/करूँगी,
जिससे मेरे भीतर का ज्ञान, प्रेम और विवेक जागृत हो।”
2. गायन से आह्वान (स्वर-पूजन)
धीरे-धीरे तान या आलाप से आरंभ करें —
सां-रे-गा-मा-पा-धा-नि-सां
हर स्वर को मंत्र-स्वरूप मानें।
गायन मंत्र:
ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः।
(3 बार गाएँ — मधुर लय में)
3. भजन / स्तुति (मुख्य अर्पण)
मृदुल संगीत में यह भजन गाएँ:
भजन:
माँ शारदे, जय जय हे विद्यादायिनी,
ज्ञानप्रदायिनी, करुणामयिनी॥
(1)
वीणा की धुन में तू विराजी,
श्वेत वस्त्र में तू है साजी,
हंसा पर सवारी प्यारी,
माँ तू शुभकारी, भव भय हारी॥
(2)
मन मंदिर में दीप जलाऊँ,
ज्ञान का सागर मैं बन जाऊँ,
तेरे चरणों में ध्यान लगाऊँ,
माँ वर दे तू, बुद्धि बढ़ाऊँ॥
4. वाद्य-निवेदन (संगीत से अर्पण)
वीणा, हारमोनियम, बांसुरी या तबला जैसे वाद्य बजाएँ।
हर स्वर में "माँ का नाम" लें — “ऐं ऐं सरस्वत्यै नमः”।
यदि कोई वाद्य न हो, तो केवल “ॐ” का दीर्घ उच्चारण करें (गुणगुणाते हुए)।
5. ध्यान और मौन (स्वर-मौन)
संगीत रुकने दें।
अब अपनी आँखें बंद करें और कल्पना करें —
माँ श्वेत कमल पर विराजमान हैं, वीणा बजा रही हैं।
वीणा के तारों से उठने वाला आनंद-सुर आपके हृदय में गूँज रहा है।
“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वाग्देव्यै नमः।”
धीरे-धीरे जप करते रहें, स्वर और नाद में लीन हो जाएँ।
6. समापन
फूल या अक्षत अर्पित करते हुए कहें —
“माँ, मेरे स्वर, वाणी, और विचार तुझको समर्पित हैं।”
“तेरे बिना कोई ज्ञान नहीं, तेरे बिना कोई गीत नहीं।”
अंत में आरती गाएँ —
आरती:
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता,
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
भावार्थ
संगीतमय पूजा का अर्थ है —
अपने स्वर, भाव और प्राण को माँ के चरणों में अर्पित करना।
जब मन, स्वर और श्रद्धा एक हो जाते हैं —
तो वही पूजा “संगीतमय ध्यान” बन जाती है,
जहाँ वाणी स्वयं माँ सरस्वती बन जाती है।
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