श्री चारभुजा नाथ जी मंदिर- यहाँ चारभुजा नाथ रूप में विराजमान है भगवान श्री कृष्ण | 4K | दर्शन 🙏

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Credits:
संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी

भक्तों नमस्कार! प्रणाम! सादर नमन और अभिनन्दन.... भक्तों हमारे देश में हजारों ऐसे मंदिर हैं जिनसे जुड़े कई हैरतअंगेज़ किस्से कहानियाँ हैं जो न केवल जनसामान्य को रोमांचित करते बल्कि अपने चमत्कारों के समक्ष श्रद्धा और भक्ति से नतमस्तक होने को विवश भी करते हैं। ऐसा ही चमत्कारिक और रहस्यमई मंदिर है चारभुजा मंदिर.

मंदिर के बारे में:
भक्तों गढ़बोर का चारभुजा मंदिर, भारत के राजस्थान राज्य में राजसमंद जिले की कुंभलगढ़ तहसील के गढ़बोर गाँव में स्थित एक ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर है। जो भगवान कृष्ण को समर्पित एक वैष्णव मंदिर है जहां चारभुजानाथ के रूप में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण विराजमान है। अपने चार हाथों के कारण भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति चारभुजानाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं। जो कुमावत वंश के कुलदेवता के रूप में विख्यात हैं। उदयपुर से लगभग 112 किलोमीटर और कुंभलगढ़ से 32 किमी की दूरी पर स्थित यह एक पवित्र तीर्थस्थल है, यहाँ प्रतिष्ठित चारभुजा जी की मूर्ति पौराणिक के साथ बहुत ही चमत्कारी भी है। पांडवों के हाथों से स्थापित व पूजित भगवान श्रीकृष्ण की ये चतुर्भुजी दिव्य मूर्ति लगभग 5285 वर्ष पूर्व की है।

मंदिर का निर्माण:
भक्तों इस चारभुजा मन्दिर का निर्माण राजपूत शासक गंगदेव ने करवाया था। चारभुजा के शिलालेख के अनुसार सन् १४४४ ई. (वि.स. १५०१) में खरवड़ शाखा के ठाकुर महिपाल व उसके पुत्र रावत लक्ष्मण ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। एक मन्दिर में मिले शिलालेख के अनुसार यहां इस क्षेत्र का नाम "बद्री" था जो कि बद्रीनाथ से मेल खाता है। इसलिए मूर्ति को बद्रीनाथ माना जाता है।

पौराणिक कथा:
भक्तों एक पौराणिक कथा के अनुसार – एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र उद्धव को हिमालय में तपस्या कर सद्गति प्राप्त करने का आदेश देते हुए स्वयं गौलोक जाने की इच्छा जाहिर की, तब उद्धव ने कहा कि मेरा तो उद्धार हो जाएगा। परंतु आपके परमभक्त पांडव व सुदामा तो आपके गौलोक जाने की ख़बर सुनकर प्राण त्याग देंगे। ऐसे में श्रीकृष्ण ने विश्वकर्मा से स्वयं व बलराम की मूर्तियां बनवाईं, जिसे देवराज इन्द्र को देकर कहा कि “ये मूर्तियां पांडव युधिष्ठिर व सुदामा को सुपुर्द करके उन्हें कहना कि ‘ये दोनों मूर्तियां मेरी है और मैं ही इनमें हूं’। प्रेम से इन मूर्तियों का पूजन करते रहें, कलियुग में मेरे दर्शन व पूजा करते रहने से मैं मनुष्यों की इच्छा पूर्ण करूंगा”।

भक्तों भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दी गयी मूर्तियों को देवराज इन्द्र ने पांडवों व सुदामा को प्रदान कर दी। पांडव व सुदामा इन मूर्तियों की पूजा करने लगे। वर्तमान में पांडवों द्वारा पूजी जाने वाली मूर्ति चारभुजा जी के नाम से गढ़बोर में और सुदामा द्वारा पूजी जाने वाली मूर्ति रूपनारायण के नाम से सेवंत्री गांव में स्थित है। कहा जाता है कि पांडव हिमालय जाने से पूर्व मूर्ति को जलमग्न करके गए थे ताकि इसकी पवित्रता को कोई खंडित न कर सके।

राजा गंगदेव को चारभुजानाथ का स्वप्नादेश:
भक्तों कहा जाता है कि गढ़बोर के तत्कालीन राजपूत शासक गंगदेव को चारभुजानाथ ने स्वप्नादेश दिया कि मेरी मूर्ति जलमग्न मूर्ति जल से बाहर निकालो और उसे मंदिर बनवाकर स्थापित करो। राजा गंगदेव ने ऐसा ही किया, उन्होने जल से प्राप्त मूर्ति को मंदिर में स्थापित करवा दी।

भक्तवत्सल चारभुजा नाथ:
भक्तों तत्पश्चात महाराणा मेवाड़ ने चारभुजानाथ मंदिर को न केवल व्यवस्थित करवाया बल्कि प्रायः दर्शन के लिए चारभुजानाथ मंदिर आते रहते थे। कहा जाता है कि एक बार मेवाड़ महाराणा उदयपुर से आने में देर हो गई। पुजारी देवा ने भगवान चारभुजाजी को शयन करा दिया और हमेशा महाराणा को दी जाने वाली भगवान की माला खुद पहन ली। तभी महाराणा वहां आ गए। पुजारी आनन फानन में पहनी हुई माला महाराणा को दे दी। उसमें सफेद बाल देखकर महाराणा ने पुजारी से पूछा कि क्या भगवान बूढे़ होने लगे है? पुजारी ने घबराते हुए हां कह दिया। महाराणा ने जांच का आदेश दे दिया। दूसरे दिन भगवान के केशों में से एक केश सफेद दिखाई दिया। इसे ऊपर से चिपकाया गया केश मानकर जब उसे उखाडा़ गया तो श्रीविग्रह (मूर्ति) से रक्त की बूंदें निकल पड़ी। इस तरह भक्तवत्सल भगवान चारभुजानाथ ने स्वयं भक्त देवा की लाज रखी।

महाराणा दर्शन नहीं करते:
भक्तों उसी रात्रि को मेवाड़ महाराणा को भगवान ने स्वनादेश देते हुये कहा कि “भविष्य में कोई भी महाराणा मेरे दर्शन के लिए गढ़बोर न आवे”। तब से इस पंरपरा का निर्वाह हो रहा है, यहां मेवाड़ महाराणा नहीं आते है। लेकिन महाराणा बनने से पूर्व युवराज के अधिकार के रूप इस मंदिर पर आकर जरूर दर्शन पूजन करते है और फिर महाराणा की पदवी प्राप्त करते हैं। मुख्य मंदिर के अंदर आज भी मेवाड़ के राजा महाराजाओं के चित्र भी लगे हैं.

भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन ! 🙏

इस कार्यक्रम के प्रत्येक एपिसोड में हम भक्तों को भारत के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर, धाम या देवी-देवता के दर्शन तो करायेंगे ही, साथ ही उस मंदिर की महिमा उसके इतिहास और उसकी मान्यताओं से भी सन्मुख करायेंगे। तो देखना ना भूलें ज्ञान और भक्ति का अनोखा दिव्य दर्शन। 🙏

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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