महाभारत में नारायणी सेना कौन थी और कहा गई🤔💯 #mahabharat #नारायणी #trending
नारायणी सेना का अर्थ और उत्पत्ति
“नारायणी सेना” — नाम से ही स्पष्ट है कि यह नारायण यानी भगवान विष्णु से संबंधित थी।
श्रीकृष्ण, जो कि विष्णु के अवतार माने जाते हैं, जब द्वारका में शासन कर रहे थे, तब उनके पास असंख्य वीर सैनिकों, योद्धाओं, रथियों, गजाधिपतियों और घुड़सवारों की एक विशाल सेना थी।
इन्हीं सबको सामूहिक रूप से नारायणी सेना कहा गया, क्योंकि वे सब नारायण के अधीन थे।
यह सेना कोई सामान्य जनों से बनी नहीं थी। यह देवतुल्य योद्धाओं की सेना थी, जिनमें असाधारण पराक्रम, अनुशासन और निष्ठा थी।
कहा जाता है कि इन सैनिकों को श्रीकृष्ण ने अपनी तपस्या और योगबल से उत्पन्न किया था, ताकि जब भी अधर्म बढ़े, धर्म की रक्षा हेतु वे तत्पर रहें।
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🏰 द्वारका की सुरक्षा से लेकर धर्मयुद्ध तक
श्रीकृष्ण की नारायणी सेना प्रारंभ में द्वारका की सुरक्षा, व्यवस्था और सीमाओं की रक्षा करती थी।
द्वारका समुद्र के बीच स्थित थी, इसलिए वहाँ स्थलीय और जलीय दोनों प्रकार की सेनाएँ थीं।
उनमें से कुछ प्रमुख अंग थे —
1. पदाति (पैदल सैनिक)
2. रथी और महारथी योद्धा
3. गजसेना (हाथियों की सेना)
4. अश्वसेना (घुड़सवार सेना)
5. धनुर्धर और तलवारबाज
6. रणनीतिक सलाहकार और गुप्तचर
इन सबको मिलाकर द्वारका की सेना अजेय और अनुशासित मानी जाती थी।
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👑 कौरवों और पांडवों का द्वारका आगमन
अब आते हैं महाभारत के उस महत्वपूर्ण प्रसंग पर जिसने इतिहास बदल दिया।
जब कुरुक्षेत्र युद्ध की घोषणा निश्चित हो गई, तब दोनों पक्षों को यह ज्ञात था कि जिसके साथ श्रीकृष्ण होंगे, उसकी विजय निश्चित है।
इसीलिए, युद्ध से पूर्व दोनों भाई – अर्जुन और दुर्योधन, द्वारका पहुँचे ताकि श्रीकृष्ण का सहयोग प्राप्त कर सकें।
श्रीकृष्ण उस समय विश्राम कर रहे थे।
पहले पहुँचा था दुर्योधन, वह जाकर श्रीकृष्ण के सिरहाने की ओर बैठ गया।
थोड़ी देर बाद अर्जुन आया, और वह पैरों की ओर बैठ गया।
जब श्रीकृष्ण जागे, उन्होंने पहले अपनी आँखें खोलीं और अर्जुन को देखा, क्योंकि वह उनके चरणों की ओर बैठा था।
फिर उन्होंने दुर्योधन को देखा।
दोनो ने अपनी-अपनी बात रखी कि वे श्रीकृष्ण का सहयोग चाहते हैं।
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⚖️ श्रीकृष्ण का निष्पक्ष निर्णय
श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले —
“मैं दोनों को समान रूप से सम्मान देता हूँ।
परंतु मैं निष्पक्ष रहूंगा।
इसलिए मैं तुम्हें दो विकल्प देता हूँ —
1. एक ओर मेरी नारायणी सेना है — जो असंख्य वीर योद्धाओं से भरी है।
2. और दूसरी ओर मैं स्वयं हूँ, परंतु बिना किसी शस्त्र के, मैं युद्ध नहीं लडूंगा, केवल सारथी बनूंगा।”
अब पहले निर्णय का अधिकार अर्जुन को दिया गया क्योंकि श्रीकृष्ण ने पहले उसे देखा था।
अर्जुन ने बिना विलंब के कहा —
“मुझे आप चाहिए, हे माधव! चाहे आप शस्त्र न उठाएँ, पर आपका साथ ही मेरे लिए सबसे बड़ा बल है।”
यह सुनकर दुर्योधन के चेहरे पर मुस्कान छा गई, क्योंकि उसे लगा कि अर्जुन ने मूर्खता की है।
दुर्योधन ने तुरन्त कहा —
“तो मैं आपकी नारायणी सेना लेता हूँ।”
इस प्रकार श्रीकृष्ण पांडवों के सारथी बने, और नारायणी सेना कौरवों के पक्ष में चली गई।
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🛡️ नारायणी सेना की संरचना और शक्ति
महाभारत में यह वर्णन मिलता है कि नारायणी सेना अत्यंत विशाल थी।
उसकी संख्या लाखों में थी।
विभिन्न ग्रंथों में उसके आकार का उल्लेख इस प्रकार किया गया है —
कुछ पुराणों में कहा गया है कि नारायणी सेना में १० करोड़ योद्धा थे।
महाभारत के “उद्योग पर्व” में उल्लेख है कि यह सेना ११ अक्षौहिणी बल के बराबर थी।
👉 एक अक्षौहिणी में लगभग २१८,७०० सैनिक होते हैं।
इस हिसाब से ११ अक्षौहिणी का अर्थ है लगभग २४ लाख सैनिक।
यही कारण है कि दुर्योधन को लगा कि वह युद्ध में अजेय रहेगा।
सेना के प्रमुख योद्धा थे —
सात्यकि, जो बाद में श्रीकृष्ण के पक्ष में रहे
कृतवर्मा, जिन्होंने कौरवों की ओर से युद्ध किया
भोज वंश के योद्धा
अंधक और वृष्णि वंश के बलवान सैनिक
अनेक रथी और महारथी योद्धा, जिनमें से कई ने देवताओं के साथ भी युद्ध किए थे।
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⚔️ कुरुक्षेत्र में नारायणी सेना की भूमिका
जब युद्ध आरंभ हुआ, तो नारायणी सेना कौरव पक्ष में थी।
वे अत्यंत अनुशासित और प्रशिक्षित सैनिक थे।
कृष्ण भले ही पांडवों के साथ थे, पर उनकी सेना धर्म के विपरीत पक्ष में खड़ी थी — क्योंकि उसका स्वामी वही दुर्योधन था जिसने पहले चुनाव किया था।
नारायणी सेना ने युद्ध में अभूतपूर्व पराक्रम दिखाया।
उन्होंने पांडव सेना को कई बार पीछे हटने पर मजबूर किया।
कृतवर्मा जैसे योद्धाओं ने भीम, नकुल और सहदेव जैसे महारथियों से युद्ध किया।
लेकिन जब धर्म और अधर्म का टकराव होता है, तो अंततः धर्म की ही विजय होती है।
नारायणी सेना, यद्यपि अत्यंत बलशाली थी, फिर भी पांडवों के धैर्य, श्रीकृष्ण की नीति और अर्जुन के कौशल के आगे टिक न सकी।
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