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History of Baiswara (बैसवाड़ा का इतिहास)
बैसवाड़ा की स्थापना महाराजा अभयचंद बैस द्वारा सन 1230 ईस्वी में की गई थी। बैसवाड़ा भौगोलिक क्षेत्र में आज प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश के रायबरेली,उन्नाव जिले आते हैं तथा इसके साथ ही समीपवर्ती जिलो सुल्तानपुर, बाराबंकी,लखनऊ,प्रतापगढ़,फतेहपुर आदि का कुछ हिस्सा भी बैसवाड़ा का हिस्सा माना जाता है। बैसवाड़ा में आज भी बैस राजपूतो का प्रभुत्व है तथा इसकी अपनी एक विशिष्ट संस्कृति है जो इसे विशेष स्थान प्रदान करती है।
महाराजा अभयचंद बैस द्वारा बैसवाडा राज्य की स्थापना -
कन्नौज के बैसवंशी सम्राट हर्षवर्धन के बाद उनके वंशज कन्नौज के आस पास ही कई शक्तियों के अधीन सामन्तों के रूप में शासन करते रहे। इन्हीं हर्षवर्धन के वंशज राव अभयचंद बैस ने सन 1230 के लगभग बैसवाड़ा राज्य की नींव रखी। इस वंश को शालिवाहन के वंशज त्रिलोकचंद प्रथम का वंशज भी माना जाता है,जिन्होंने चौथी सदी के आसपास दिल्ली में भी राज्य स्थापित किया था लेकिन यह राज्य सन 640ई. के आसपास समाप्त हो गया था।
सम्राट हर्षवर्धन बैस की 24 वीं पीढ़ी में लोहागंज के शासक केशव राय उर्फ़ गणेश राय ने मुहम्मद गोरी के विरुद्ध राजा जयचन्द की ओर से चंदावर के युद्ध में भाग लिया और वीरगति को प्राप्त हुए थे। इसके बाद इनके पुत्र निर्भयचंद और अभयचंद अपनी माता के साथ स्यालकोट पंजाब में गुप्त रूप से रहने लगे,बड़े होने पर दोनों राजकुमार अपने प्राचीन प्रदेश में वापस आए। सन 1230 के आसपास अरगला के गौतम राजा पर कड़ा के मुसलमान सूबेदार ने हमला कर दिया, किन्तु गौतम राजा ने उसे परास्त कर दिया। कुछ समय बाद गौतम राजा की पत्नी गंगास्नान को गयी,वहां मुसलमान सूबेदार ने अपने सैनिको को रानी को पकड़ने भेजा, यह देखकर रानी ने आवाज लगाई कि यहां कोई क्षत्रिय है जो मेरी रक्षा कर सके। संयोग से लोहागंज के शासक गणेशराय के दोनों बैस राजकुमार उस समय वहां उपस्थित थे,उन्होंने तुरंत वहां जाकर मुस्लिम सैनिकों को मार भगाया। रानी को बचाने के बाद निर्भयचंद बैस तो अधिक घावो के कारण शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हुए,किन्तु अभयचंद बैस बच गये।
गौतम राजा ने अपनी पुत्री का विवाह अभयचन्द बैस से कर दिया और दहेज़ में उसे गंगा से उत्तर दिशा में 1440 गाँव दिए,जहाँ अभयचंद बैस ने बैस राज्य की नींव रखी,यही बैस राज्य आज बैसवाडा कहलाता है। उस समय मध्य उत्तर प्रदेश कन्नौज के राजा जयचंद की प्रभुता को मानता था, मगर उनकी हार के बाद इस क्षेत्र में अराजकता हो गई, जिसका लाभ उठाकर भर जाति के सामंत स्वतंत्र हो गए। इन 1440 गांवों पर वास्तविक रूप से भर जाति का ही प्रभुत्व था जो गौतम राजा को कर नहीं देते थे।
परंतु अभयचंद बैस और उनके वंशज कर्णराव,सिंधराव और पूर्णराव बैस ने वीरता और चतुराई से भर जाति की शक्ति का दमन करके इस क्षेत्र में बड़ा राज्य कायम किया और डोडियाखेड़ा को अपनी राजधानी बनाया। पूर्णराव बैस के बाद घाटमराव बैस राजा बने, जिन्होंने फिरोजशाह तुगलक के समय उसकी धर्मान्धता की नीति से ब्राह्मणों कि रक्षा की।
घाटमराव के बाद क्रमश: जाजनदेव,रणवीरदेव ,रोहिताश्व बैस राजा हुए।
रोहिताश्व बैस का शासनकाल 1404 से 1422 तक रहा,इनका शासन काल बैसवाड़ा में शौर्य युग के नाम से विख्यात है। इनके काल में खूब युद्ध हुए और राज्य का भी काफी विस्तार हुआ। रोहिताश्व बैस ने मैनपुरी के चौहान राजा के निमन्त्रण पर वहां जाकर अहीर विद्रोहियों का दमन किया और मैनपुरी के आसपास के गाँवो पर भी अधिकार कर लिया। रोहिताश्व बैस का जौनपुर के शर्की सुल्तानों से भी संघर्ष हुआ। रोहिताश्व बैस पंजाब में एक युद्ध में गये थे जहां उन्होंने वीरगति पाई थी।
रोहिताश्व बैस के बाद राव सातनदेव गद्दी पर बैठे, सन् 1440 में जौनपुर के शर्की सुल्तान के हमले में यह काकोरी में वीरगति को प्राप्त हुए। उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी, डोडियाखेड़ा के रास्ते में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जो आगे चलकर महाराजा त्रिलोकचंद द्वितीय के नाम से प्रसिद्ध हुए।
महाराजा त्रिलोकचंद बैस द्वितीय:-
महाराजा त्रिलोकचंद बैस की माता मैनपुरी के चौहान राजा की पुत्री थी, डोडियाखेड़ा पर शर्की सुल्तान के हमले के बाद त्रिलोकचंद बैस की माता ने अपने पुत्र को मैनपुरी में पाला। त्रिलोकचंद बैस बड़े होकर वीर और साहसी क्षत्रिय बने। त्रिलोकचंद बैस ने अपने पिता की मौत का बदला लेने का प्रण लिया था, त्रिलोकचंद बैस ने एक छोटी सी सेना तैयार कर बैसवाड़ा क्षेत्र पर धावा बोल दिया और रायबरेली, हैदरगढ़, बाराबंकी, डोडियाखेड़ा, डलमऊ आदि पर अधिकार कर लिया। दिल्ली सल्तनत ने भी त्रिलोकचंद बैस को शर्की सुल्तानों के विरुद्ध मदद की, जिससे त्रिलोकचंद बैस ने शर्की सुल्तान को हराकर भगा दिया।
दिल्ली के लोदी सुल्तानों ने त्रिलोकचंद बैस की इस बड़े बैसवाड़ा भूभाग पर आधिपत्य को स्वीकार कर लिया। महाराजा त्रिलोकचंद बैस को उनकी उपलब्धियों के कारण अवध केसरी भी कहा जाता है, इन्ही के वंशज त्रिलोकचंदी बैस कहलाते हैं।
आगे चलकर मुगल सम्राट अकबर ने भी इस इलाके में बैस राजपूतों की शक्ति को देखते हुए उन्हें स्वतंत्रता दे दी और बाद के मुगल सम्राटो ने भी यही नीति जारी रखी।
लम्बे समय तक इस वंश ने डोडियाखेड़ा को राजधानी बनाकर बैसवाड़ा पर राज्य किया। किन्तु सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण अंग्रेजो ने अंतिम शासक बाबू रामबख्श सिंह बैस को फांसी दे दी और इनका राज्य जब्त कर लिया।
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