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  • sanatan lok down
  • 2023-05-20
  • 72
इंद्र कौन है, क्यों नहीं होती इंद्र की पूजा?
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Описание к видео इंद्र कौन है, क्यों नहीं होती इंद्र की पूजा?

माना जाता है कि इंद्र किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं बल्कि यह एक पद का नाम है और दूसरा एक विशेष प्रकार के बादल का भी नाम है। इंद्र एक काल (समय अवधि) का नाम भी है। मन्वंतर में अलग इंद्र सप्तर्षि अंशावतार मनु होते हैं।
इंद्र को सुरेश सुरेन्द्र, देवेन्द्र देवेश शचीपति वासव सुरपति शक्र पुरंदर देवराज भी कहा जाता है। इंद्र के कारण ही इंद्र धनुष इंद्रजाल इंद्रियां इंदिरा जैसे शब्दों की उत्पत्ति हुई है। इंद्र को देवताओं का अधिपति माना गया है। इंद्र को उनके छल के कारण अधिक जाना जाता है।वैदिक समाज जहां देवताओं की स्तुति करता था वहीं वह प्राकृतिक शक्तियों की भी स्तुति करता था और वह मानता था कि प्रकृति के हर तत्व पर एक देवता का शासन होता है। उसी तरह वर्षा या बादलों के देवता इंद्र हैं तो जल समुद्र नदी आदि के देवता वरुण हैं।
समुद्र-मंथन से जो 14 रत्न प्राप्त हुए उनमें से एक ऐरावत भी था। रत्नों के बंटवारे के समय इंद्र ने अत्यंत सुंदर और ऐश्वर्ययुक्त दिव्यगुणों वाले ऐरावत हाथी को अपने लिए रख लिया था। ऐरावत चमकता हुआ श्वेत वर्ण का है। उसके 4 दांत हैं। इसीलिए इसे इंद्रहस्ति अथवा इंद्रकुंजर भी कहा जाता है।स्वर्ग पर राज करने वाले 14 इंद्र माने गए हैं। इंद्र एक काल का नाम भी है, जैसे 14 मन्वंतर में 14 इंद्र होते हैं। 14 इंद्र के नाम पर ही मन्वंतरों के अंतर्गत होने वाले इंद्र के नाम भी रखे गए हैं। प्रत्येक मन्वंतर में एक इंद्र हुए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं सुचयज्न विपस्चित शीबि विधु मनोजव पुरंदर बाली अद्भुत शांति विश रितुधाम देवास्पति और सुचि।
कहा जाता है कि एक इन्द्र 'वृषभ' बैल के समान था। असुरों के राजा बली भी इंद्र बन चुके हैं और रावण पुत्र मेघनाद ने भी इंद्रपद हासिल कर लिया था।
इन्द्र का चरित्र और कार्य : इन्द्र को सभी देवताओं का राजा माना जाता है। वही वर्षा पैदा करता है और वही स्वर्ग पर शासन करता है। वह बादलों और विद्युत का देवता है। इंद्र की पत्नी इंद्राणी कहलाती है।
इंद्रपद पर आसीन देवता किसी भी साधु और राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देता था इसलिए वह कभी तपस्वियों को अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देता है तो कभी राजाओं के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े चुरा लेता है।
ऋग्वेद के तीसरे मण्डल के वर्णनानुसार इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गई। दशराज्य युद्ध में इंद्र ने भरतों का साथ दिया था। सफेद हाथी पर सवार इंद्र का अस्त्र वज्र है और वह अपार शक्तिशाली देव है। ऐसे माना जाता है कि इंद्र की सभा में गंधर्व संगीत से और अप्सराएं नृत्य कर देवताओं का मनोरंजन करते हैं।हिन्दू धर्म में इंद्र की पूजा नहीं होती क्योंकि भगवान कृष्ण के पहले 'इंद्रोत्सव' नामक उत्तर भारत में एक बहुत बड़ा त्योहार होता था। भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा बंद करवाकर गोपोत्सव रंगपंचमी और होली का आयोजन करना शुरू किया। श्रीकृष्ण का मानना था कि ऐसे किसी व्यक्ति की पूजा नहीं करना चाहिए जो न ईश्वर हो और न ईश्वरतुल्य हो। गाय की पूजा इस लिए क्योंकि इसी के माध्यम से हमारा जीवन चलता है। होली उत्सव इसलिए क्योंकि यह सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है। रंगपंचमी जीवन को उत्सव और खुशियों से भरने का त्योहार श्रीकृष्ण ने का मानना था कि हमारे आस-पास जो भी चीजे हैं उनसे हम बहुत ही प्रेम करते हैं जैसे गायें पेड़ गोवर्धन पर्वत तब गोवर्धन पर्वत साल भर हरा घास फल मूल एवं शीतलजल को प्रवाहित करता था श्रीकृष्ण के शब्दों में 'ये सब हमारी जिंदगी हैं। यही लोग यही पेड़ यही जानवर यही पर्वत तो हैं जो हमेशा हमारे साथ हैं और हमारा पालन पोषण करते हैं। इन्हीं की वजह से हमारी जिंदगी है। ऐसे में हम किसी ऐसे देवता की पूजा क्यों करें जो हमें भय दिखाता है। मुझे किसी देवता का डर नहीं है। अगर हमें चढ़ावे और पूजा का आयोजन करना ही है तो अब हम गोपोत्सव मनाएंगे इंद्रोत्सव नहीं।
इंद्र को आया तब क्रोध श्रीकृष्ण के निवेदन पर स्वर्ग के सभी देवी और देवताओं की पूजा बंद हो गई। धूमधाम से गोवर्धन पूजा शुरू हो गई। जब इंद्र को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने प्रलय कालीन बादलों को आदेश दिया कि ऐसी वर्षा करो कि ब्रजवासी डूब जाएं और मेरे पास क्षमा मांगने पर विवश हो जाएं। जब वर्षा नहीं थमी और ब्रजवासी कराहने लगे तो भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण कर उसके नीचे ब्रजवासियों को बुला लिया। गोवर्धन पर्वत के नीचे आने पर ब्रजवासियों पर वर्षा और गर्जन का कोई असर नहीं हो रहा। इससे इंद्र का अभिमान चूर हो गया। बाद में श्रीकृष्ण का इंद्र से युद्ध भी हआ और इंद्र हार गए। तब ही से इंद्र की पूजा का प्रचलन नहीं ......
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