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Скачать или смотреть NidhiVan Vrindavan Mathura, निधिवन राधाकृष्ण की लीलास्थली और संत हरिदास जी की तपस्थली.

  • SAMISAIZ
  • 2020-09-15
  • 74
NidhiVan Vrindavan Mathura, निधिवन राधाकृष्ण की लीलास्थली और संत हरिदास जी की तपस्थली.
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NidhiVan Vrindavan Mathura, निधिवन राधाकृष्ण की लीलास्थली और संत हरिदास जी की तपस्थली.

श्री निधिवनराज,निज वृंदावन मे यमुना जी के समीप एक बहुत ही रमणीक कुंज है। यहाँ अद्भुत आनंद की अनुभूति होती है। निधिवन ही वास्तविक नित्य वृंदावन है।। यहाँ विशाल तुलसी के वृक्ष है,बिना जल स्रोत ऐवं जड़ के यह बृक्ष मानों ऐक दूसरे का हाथ पकड़ नृत्य कर रहे हो कहा यह भी जाता है कि कृ्ष्ण की सखियां ही तुलसी बृक्ष है इतना विशाल तुलसी वन अन्यत्र कहीं भी नहीं है(सामान्य झाडी नही)। यहाँ लगभग 1500 ई.मे स्वामी श्री हरिदास जी (1480-1575 ई) का आगमन हुआ था, जिनका प्रकाट्य वृंदावन के निकट राजपुर मे अपने ननिहाल मे हुआ था।इनके पिता श्री आशुधीर थे। स्वामी जी अपने स्वरूपगत दिव्यता तथा अगाध प्रेम से अपने " स्वामी श्यामा-कुंज बिहारी" की नित्य लीला का रसास्वादन किया करते थे। उनके भजन का प्रताप आज भी निधिवन की उज्ज्वलतम मधुरता के रूप मे परिलक्षित हो रहा है।स्वामीजी ने नित्य विहार को प्रकाशित किया। "सहज जोरी प्रकट भई","रूचि के प्रकाश परस्पर विहरन लागे", उनके पहले दो पद है। उनके आत्मस्वरूप स्वामी "श्यामा-कुंजविहारी" सहज जोरी है, जो शाश्वत है,और अपनी रूचि के वश विहार मे रत है। श्री हरिदास जी समाधि अवस्था में सदा इन्ही का दर्शन करते रहते थे। वे एकतानता से अपार रस समुद्र को अपने ह्रदय मे रमाये रहते थे।कभी रसावेश मे मधुर वाणी से जो गाते थे,वह उनके परम शिष्य श्री विट्ठल विपुल कंठस्थ कर लेते थे। यही पद संग्रह केलिमाल कहलाता है, जिसमे निधिवन की सहज माधुरी पल्लवित हुई है। निधिवन मे ही वह लीला प्रवेश कर गये।उनकी बैठक ही निधिवन राज मे उनकी समाधि कहलाती है। दोनो पार्श्व मे स्वामी जी के शिष्य विठ्ठल विपुल जी एवम प्रशिष्य विहारिनदास जी की समाधि है। निधिवन के उन स्थानों पर जहाँ वृक्ष नही थे, वहाँ कुछ नवीन मंदिर बन गये है।अन्यथा निधिवन का स्वरूप प्राचीन है।निधिवन का परकोटा भी पहले पहल 1610 ई. के लगभग बन चुका था। यही विठ्ठल विपुल जी के निमित्त स्वामी जी ने बाँके बिहारी जी का स्वरूप उद्घाटित किया था। विहारी जी का प्राकट्य स्थल घेरा(परिक्रमा) मे है। स्वामी जी वृंदावन मे आने वाले सर्वप्रथम महापुरुष थे। स्वामी जी ने ही वृंदावन-श्री को स्थापित किया । बादशाह अकबर स्वामीजी के शिष्य तानसेन के साथ उनके दर्शनार्थ आया था(लगभग ई.1573)। आधुनिक युग मे भी निधिवन मे ही पूर्ण जीवंतता है। जो न केवल आध्यात्मिकता की उच्चतम गहराई को संजोए हुए है,साथ ही आधुनिक प्रौद्योगिक मनुष्य तक को भगवदानुभूति से आप्लावित करती है।कुछ भक्तो का आग्रह है कि यहाँ रात्रि मे रास होता है। स्वामी जी की रसरीति मे बृज लीला का कोई स्थान नही है, उनके "जुगल किशोर"ही यहाँ के आराध्य है,जिनके सानिध्य का दिक्-काल से परे प्रतिक्षण एकरस आस्वादन मिलता है। इस स्वानुभूति के लिये स्वंय निधिवन की महिमा अक्षुण्ण है अतः श्रीनिधिवनराज,वृंदावन-रस का सार-सर्वस्व है।

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