Ruturaj Basant | Batiyan Dourawat | Musical Musings | Ashwini Bhide Deshpande

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"बतियां दौरावत..." की पहली बात!...
कुछ साल पहले मैंने ‘ऋतुराज बसंत’ नाम से दैनिक "लोकसत्ता" (मराठी) में एक लेख लिखा था। वह पूरी तरह से "गद्य" और "पठनीय" था। अब होली के मौके पर मैं इसका दृकश्राव्य रूपांतरण प्रस्तुत कर रही हूं। - शास्त्रीय संगीत में राग, बंदिश और उपशास्त्रीय संगीत के होरी, चैती आदि गायन प्रकारों में दिखाई दे रहा वसंत रितु का मनमोहक दृश्य।

अब कुछ “बतियां दौरावत” के बारेमें :
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चालीस साल पहले जब मैंने गाना शुरू किया था, गायन के कार्यक्रम केवल गायन के कार्यक्रम थे। इनमें कलाकारों का प्रारंभिक परिचय केवल 'गद्य' भाग था, 'compering', 'commentary', या 'विवेचन' इत्यादि “बतिया” नहीं हुआ करती थी। कई कलाकार, उस रागका नाम तक नहीं बताते जिसे वे गाने जा रहे हैं। वे कहा करते थे,
"हम जो 'कहना चाहते हैं', गायन के माध्यम से ही कहेंगे। उसके लिए 'टिप्पणी' क्यों?"
या,
" जो कलाकार गायन के माध्यम से अपनी “बात” नहीं कह सकते, वे मंच से बोलते हैं!" …

अपने रागगायन से कुछ ”बात” बन जानी चाहिए, श्रोतागण तक पहुँचनी चाहिए यह सिद्धांत तब भी महत्वपूर्ण था और आज भी है। यह “बात” क्या होती है? ताल- सुर में बिना गलती के गाना, रागनियमों को बनाए रखना और आस-पास के अन्य रागों से अपनी छबी अलग रखना, बंदिशों की लय और ताल का संतुलन ठीक रखना और राग के अंगों - आलाप, बोल आलाप, बोलतान, तान, सरगम - के सामंजस्य को बनाए रखना यह सारी चीजें राग गायन के लिए आवश्यक तो हैं लेकिन केवल इनसे “बात” नहीं बनती। यह बहुत ज़रूरी है कि कोई “बात”' - जो कलाकार की अपनी है - राग प्रस्तुति से पैदा होनी चाहिए।

वास्तव में यह “बात” न तो शब्दों में कही जा सकती है और न हि कहने से समझी जा सकती है। संगीत “अनुभव” की चीज है। जिस प्रकार हिमाच्छादित चोटियों पर प्रात:कालीन सूर्य की किरणें पड़ने पर कंचनजंगा का जो सुनहरा दर्शन होता है, किसी उत्कृष्ट छायाचित्र द्वारा या किसी प्रतिभासिद्ध वाणी द्वारा किए गये वर्णन से “अनुभव” नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार राग संगीत का अनुभव करने के लिए हमें तन, मन, तथा चित्त के साथ स्वयं उपस्थित रहना जरूरी है।

आज समय बदल गया है। हम गायक शुरू में उस राग के बारे में कुछ बताते हैं, जिसे हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं – राग का संक्षिप्त विवरण, चुने गए बंदिश के रचनाकार, इत्यादि। श्रोतागण भी बदले हैं। भले ही पहले के गायक राग के नाम की घोषणा नहीं करते थे, लेकिन उस समय के श्रोता बंदिश के बोल 'काहे हो...' सुनते ही गौड़ मल्हार, या 'जियरा तरसत ...' यानी जयजयवंती यहाँ तक पहचानते थे। आज के श्रोता एक क्लिक से आधे क्षण में इसकी जानकारी पाते हैं...

इस पृष्ठभूमि पर मैं “बतियां दौरावत…” की यह पहल कर रही हूं। निश्चित रूप से मैं वो “बात” तो पैदा नहीं कर पाऊंगी, फिर भी मेरे प्रिय श्रोताओं के साथ जुड़ने और कुछ 'बातें' करने का अवसर ले रहीं हूँ। मैं इस सत्य से पूरी तरह वाकिफ हूं कि आज दो हजार वर्षों से चली आ रही रागसंगीत की इस सशक्त परंपरामें, मैं कोई नया विचार पेश नहीं कर रहीं हूं, ‘बात’ तो बुजुर्गों ने पहलेही कह दी है, मैं केवल दोहरा रही हूँ।

मैंने इस प्रयास के तहत विभिन्न शृंखलाएँ शुरू करने की योजना बनाई है। चाहे वह 'रागोंकी तस्वीरें' हो, 'कहानी बंदिशकी' हो, या कुछ बिखरे हुए विचार... किस किस से क्या “बात” पैदा होती है यह जानने, सुनने, और इसका अनुभव लेने के लिए मैं उतनी ही उत्साहित हूं जितने कि आप

Written & Presented by: Dr. Ashwini Bhide Deshpande
Creative Ideation: Amol Mategaonkar
Audio & Video: Amol Mategaonkar, Kannan Reddy
Special Thanks to: Dr. Meenal Mategaonkar, Akanksha Mategaonkar
Opening Title Photo Credit: Varsha Panwar

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