जय गंगा मैया कथा | क्याधु की कथा (भाग - 4)

Описание к видео जय गंगा मैया कथा | क्याधु की कथा (भाग - 4)

भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन दो भगवान!

Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here -    • दर्शन दो भगवान | Darshan Do Bhagwaan ...  

Watch the Short story ''Kyaadhu Ki Katha'' now!

Watch all the Ramanand Sagar's Jai Ganga Maiya full episodes here - http://bit.ly/JaiGangaMaiya

Subscribe to Tilak for more devotional contents - https://bit.ly/SubscribeTilak

गंगा मैया ने क्याधु को आश्रम में दी सांत्वना। शुक्राचार्य ऋषि मधुछंदा के आश्रम जा पहुँचे और क्याधु को वापस भेजने के लिए कहा। ऋषि मधुछंदा ने गुरु शुक्राचार्य को क्याधु को उनके साथ भेजने से मना कर दिया। शुक्राचार्य ने जब आश्रम में घुसने की कोशिश की तो शुक्राचार्य को अग्नि ने प्रवेश नहीं करने दिया। शुक्राचार्य ने क्याधु को अपने साथ चलने के लिए कहा तो क्याधु ने भी साथ चलने से मना कर दिया। शुक्राचार्य क्रोधित होकर वापस चले जाते हैं। गंगा मैया शुक्राचार्य को समझने के लिए उसे रोकती हैं लेकिन वह नहीं मानता। गंगा मैया शुक्राचार्य को समझाने के बाद श्री हरी के पास जाती हैं और उनसे प्रार्थना करती हैं की वो क्याधु को दर्शन देकर उसे धन्य करें। श्री हरी गंगा मैया की बात मान लेते हैं। श्री हरी क्याधु को दर्शन देने के लिए आते हैं और उसे दर्शन देने के बाद क्याधु के पुत्र का जनम हो जाता है। क्याधु अपने पुत्र के जनम के बाद बहुत प्रसन्न होती है। श्री हरी के भक्त के दर्शन पाने के लिए सभी देवी देवता वहाँ आ जाते हैं और श्री हरी भक्त प्रलहाद के जनम की ख़ुशियाँ मनाते हैं। प्रलहाद के जनम की ख़ुशी में आश्रम में त्योहार का माहौल हो जाता है। शुक्राचार्य ने यज्ञ करने के बाद अपने सम्पूर्ण तपोबल को एकत्रित करके प्रलहाद को मधुछंदा के आश्रम के अग्नि चक्र से बाहर लने के लिए भेजते हैं। शुक्राचार्य का तपो बल प्रलहाद को आश्रम से उठा कर ले जाते हैं जिसे देख कर क्याधु अपने पुत्र को वापस पाने के लिए महाऋषि मधुछंदा से आग्रह करती है। लेकिन मधुछंदा क्याधु को कहते हैं की मैं तुम्हारी इसमें कोई सहायता नहीं कर सकता तुम्हें गंगा मैया से प्रलहाद की रक्षा के लिए कहना चाहिए। शुक्राचार्य अल्हाद को बताते हैं की तुम्हें प्रलहाद का वध करना है ताकि राक्षस कुल की रक्षा हो सके। अल्हाद के हाथ में प्रलहाद जैसे ही आता है तो वह उसे मारने के लिए तलवार उठता है तो तभी वहाँ नारद मुनि जी आ जाते हैं। अल्हाद के हाथ में प्रलहाद जैसे ही आता है तो वह उसे मारने के लिए तलवार उठता है तो तभी वहाँ नारद मुनि जी आ जाते हैं। नारद मुनि जी अल्हाद को अपनी बातों से फुसला कर उसे प्रलहाद को नदी में फेंकने के लिए मना लेता है। अल्हाद जैसे ही प्रलहाद को नदी में फेंकता है गंगा मैया नदी में प्रकट हो कर प्रलहाद को पकड़ लेती हैं और उसे वापस मधुछंदा के आश्रम में क्याधु को सौंप देती हैं। अल्हाद शुक्राचार्य के पास आता है और उन्हें बताता है की उसने प्रलहाद को नदी में फेंक दिया है तो इस पर शुक्राचार्य उसे बताते हैं की गंगा ने उसे बचा लिया है और उसे वापस आश्रम में छोड़ आयी है। शुक्राचार्य वापस से अपने तपो बल को वापस अर्जित करने के लिए तपस्या करने के लिए चला जाता है। क्याधु प्रलहाद का पालन पोषण करती है। मधुछंदा प्रलहाद को 8 वर्षों तक शिक्षा देते हैं। शिक्षा पूर्ण होने के बाद क्याधु प्रलहाद को असुरों के संस्कार ग्रहण कर्ण के लिए राजकुमारों की शिक्षा लेने के लिए कहती है। हरिणयकश्यप की तपस्या पूर्ण हो जाती है और ब्रह्मा जी उसे दर्शन देते हैं। हरिणयकश्यप ब्रह्मा जी से वरदान माँगता है। वह ऐसा वरदान माँगता है जिसे से वह कभी मर ना सके। वह ब्रह्मा जी से वरदान में माँगता है की उसे ना कोई नर मर सके ना पशु ना असुर ना देवता, ना ही अस्त्र से मरु ना ही शस्त्र से, ना दिन में मरु ना रात में, ना घर में मरु ना घर के बाहर। ब्रह्मा जी उसे वरदान दे देते हैं। हरिणयकश्यप के वरदान पाने से क्याधु को चिंता होती है। हरिणयकश्यप वरदान पाकर गंगा मैया को मिलता है और उन्हें कहता है की अब वह गंगा को अपने साथ असुर लोक ले जाएगा। अल्हाद अपनी माता सुमुखी को बताता है की हरिणयकश्यप की तपस्या समाप्त हो चुकी है और उन्होंने अपना वरदान पा लिया है। हरिणयकश्यप के असुर लोक जाने की बात सुन ऋषि मधुछंदा क्याधु और प्रलहाद को उनके घर वापस छोड़ने जाने की बात उन्हें कहते हैं। हरिणयकश्यप के असुर लोक में अपने राज महल में आने पर उसका स्वागत किया जाता है। हरिणयकश्यप क्याधु के बारे में पूछता है तो सुमुखी उसे सब कुछ बताती है। क्याधु के अपहरण की बात सुन हरिणयकश्यप को इंद्र पर क्रोध आ जाता है। हरिणयकश्यप के पास ऋषि मधुछंदा क्याधु और प्रलहाद को लेकर आते हैं। हरिणयकश्यप अपने पुत्र और क्याधु को देख कर प्रसन्न होता है। हरिणयकश्यप के सामने जब प्रलहाद ने विष्णु के भगवान होने और परमेश्वर होने की बात की तो हरिणयकश्यप को क्रोध आ जाता है। हरिणयकश्यप प्रलहाद पर वार करने के लिए तलवार निकलता है तो क्याधु उसे रोक देती है। हरिणयकश्यप वहाँ से देवताओं पर आक्रमण करने एक लिए निकल जाता है। इंद्र और अन्य देवता हरिणयकश्यप को मारने के लिए शस्त्र अस्त्र चलता है लेकिन हरिणयकश्यप पर उसका कोई असर नहीं होता। हरिणयकश्यप स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेता है। प्रलहाद गुरुकुल में दूसरे बालकों को भगवान विष्णु के बारे में बताता है और विष्णु के मंत्र उच्चारण सिखाता है। तभी वहाँ आचार्य आ जाते हैं और उसे रोक देते हैं और विष्णु का नाम लेने के कारण दंड के रूप में भोजन ना देने के आदेश देते हैं।

In association with Divo - our YouTube Partner

#JaiGangaMaiya #JaiGangaMaiyaonYouTube #JaiGangaMaiyaKatha

Комментарии

Информация по комментариям в разработке