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Скачать или смотреть भरतमुनि से पंडित जगन्नाथ तक | भारतीय काव्यशास्त्र |

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  • 2023-03-26
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भरतमुनि से पंडित जगन्नाथ तक | भारतीय काव्यशास्त्र |
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Описание к видео भरतमुनि से पंडित जगन्नाथ तक | भारतीय काव्यशास्त्र |

भारतीय काव्यशास्त्र | संस्कृत से हिन्दी कावशास्त्र का विकास | भारतमुनि से पंडित जगन्नाथ तक
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.भारतीय काव्यशास्त्र की परंपरा (आचार्य भरत मुनि से पंडित जगन्नाथ तक) 👇🏻
संस्कृत के काव्यशास्त्रीय उपलब्ध ग्रंथों के आधार पर भरतमुनि को काव्यशास्त्र का प्रथम आचार्य माना जाता है। उनका समय लगभग 400 ईसापूर्व से 100 ईसापूर्व के मध्य समय माना जाता है।

इस परंपरा के अंतिम आचार्य पंडितराज जगन्नाथ है इनका समय 17 वी शती है। इस प्रकार लगभग डेढ़-दो सौ सहस्त्र वर्षों का यह काव्यशास्त्रीय साहित्य अपनी व्यापक विषय-सामग्री अपूर्व एवं तर्क सम्मत विवेचन पद्धति और गंभीर शैली के कारण नूतन मान्यताओं को प्रस्तुत करने के बल पर भारतीय वाड्मय में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।
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. काव्य- लक्षण 👇🏻
काव्य लक्षण का अर्थ , असाधारण अर्थ ,किसी काव्य का विशेष धर्म जो बाहरी अन्य प्रकारों से काव्य का भेद दर्शाता है । वास्तव में एक और अव्याप्ति और दूसरी ओर अतिव्याप्ति इन दोनों दोष रेखाओं के बीच लक्षण की व्याप्ति को रखना कठिन कार्य है । इसलिए काव्य-लक्षण की अपेक्षा उसका स्वरूप निर्धारण करना अधिक आसान है । काव्य स्वरूप से हमारा आशय काव्य के साधारण धर्म से है , जिसके आधार पर हम काव्य के सामान्य तत्वों को ग्रहण करते हैं इन सामान्य तत्वों में भाव , बुद्धि , कल्पना और शैली का उल्लेख किया जाता है।
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.काव्य हेतु 👇🏻
काव्य हेतु का सामान्य अर्थ है - काव्य रचना के कारण अर्थात जिन कारणों से कवि प्रेरित होकर काव्य का निर्माण करता है। उन्हे काव्य हेतु कहते हैं आधुनिक शब्दावली में हेतु के लिए प्रेरणा शब्द का प्रयोग किया जाता है। दूसरे शब्द में कवि जिस प्रेरणा से काव्य सृष्टि करता है, उसे काव्य प्रेरणा कहते हैं। काव्य हेतु दो शब्दों से मिलकर बना है- काव्य और हेतु। जिसमें काव्य का अर्थ 'कविता' और हेतु का अर्थ 'कारण' होता है। इन्ही शब्दो से काव्यहेतु बना हैं।

विभिन्न काव्यहेतु

संस्कृत के काव्य शास्त्रों में से जिन्होंने काव्य हेतु का निरूपण किया दण्डी, वामन, रुद्रट, कुन्तक और मम्मट का नाम विशेष का उल्लेख्य है। इस प्रकार संस्कृत काव्यशास्त्र में कुल पांच - प्रतिभा,शक्ति,व्युत्पत्ति, अभ्यास और समाधि को काव्य - हेतुओं का विवेचन हुआ है।
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