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उद्यत्कोटिदिवाकरप्रतिभटां बालार्कभाकर्पटां

मालापुस्तकपाशमड़्कुशधरां दैत्येन्द्रमुण्डस्रजाम्।

पीनोत्तुंगपयोधरां त्रिनयनां ब्रह्मादिभि: संस्तुतां

बालां संकटनाशिनीं भगवतीं श्रीभैरवीं धीमहि।।

अर्थ – उगते हुए करोड़ों सूर्यों की कान्ति को तिरस्कृत करने वाली, बाल-सूर्य की प्रभा के समान अरुण वस्त्र धारण करने वाली, अपने हाथों में माला-पुस्तक-पाश और अंकुश धारण करने वाली, दैत्यराज के मुण्ड की माला धारण करने वाली, विशाल तथा उन्नत पयोधरों वाली, तीन नेत्रों वाली तथा ब्रह्मा आदि देवताओं से सम्यक् स्तुत होने वाली उन संकटनाशिनी श्रीभैरवीस्वरूपिणी भगवती बाला का मैं ध्यान करता हूँ।

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