Logo video2dn
  • Сохранить видео с ютуба
  • Категории
    • Музыка
    • Кино и Анимация
    • Автомобили
    • Животные
    • Спорт
    • Путешествия
    • Игры
    • Люди и Блоги
    • Юмор
    • Развлечения
    • Новости и Политика
    • Howto и Стиль
    • Diy своими руками
    • Образование
    • Наука и Технологии
    • Некоммерческие Организации
  • О сайте

Скачать или смотреть 'चंद्र गहना से लौटती बेर' : केदारनाथ अग्रवाल, क्षितिज, Class 9th, Part- 4, By Jitendra Pant

  • Hindi Point (Hindi)
  • 2020-07-27
  • 78
'चंद्र गहना से लौटती बेर' : केदारनाथ अग्रवाल, क्षितिज, Class 9th, Part- 4, By Jitendra Pant
Kavi Kedarnath AgrawalHindi kavitakshitijkritikaNCERT Hindi SyllabusCBSCE Hindi BooksUttrakhand Shiksha evam Pariksha Parishad RamnagarChandra Gahana Se Lautati Beronline teachingonline learninghindi books for class 9thsecondary educationeducation department of uttarakhandmadhyamik shikshaprakritivadi kavitaprakriti chitranManveeyakaran Alankarत
  • ok logo

Скачать 'चंद्र गहना से लौटती बेर' : केदारनाथ अग्रवाल, क्षितिज, Class 9th, Part- 4, By Jitendra Pant бесплатно в качестве 4к (2к / 1080p)

У нас вы можете скачать бесплатно 'चंद्र गहना से लौटती बेर' : केदारनाथ अग्रवाल, क्षितिज, Class 9th, Part- 4, By Jitendra Pant или посмотреть видео с ютуба в максимальном доступном качестве.

Для скачивания выберите вариант из формы ниже:

  • Информация по загрузке:

Cкачать музыку 'चंद्र गहना से लौटती बेर' : केदारनाथ अग्रवाल, क्षितिज, Class 9th, Part- 4, By Jitendra Pant бесплатно в формате MP3:

Если иконки загрузки не отобразились, ПОЖАЛУЙСТА, НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если у вас возникли трудности с загрузкой, пожалуйста, свяжитесь с нами по контактам, указанным в нижней части страницы.
Спасибо за использование сервиса video2dn.com

Описание к видео 'चंद्र गहना से लौटती बेर' : केदारनाथ अग्रवाल, क्षितिज, Class 9th, Part- 4, By Jitendra Pant

चंद्र गहना से लौटती बेर की व्याख्या- Chandr Gahna Se Lauti Ber Vyakhya: प्रस्तुत कविता में कवि केदारनाथ अग्रवाल जी ने गांव के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही मनोहर वर्णन किया है। हरे-भरे खेत, बगीचे या फिर नदी का किनारा, सभी कवि की इस रचना में जीवित हो उठे हैं। जिस समय यह कविता केदारनाथ जी ने लिखी थी, वह नगर में रहते थे और किसी कार्यवश वे चंद्र गहना नामक गाँव में आये थे। लौटते वक्त एक खेत के पास बैठकर वो प्रकृति का आनंद लेते हुए इस कविता की रचना करने लगे। अपनी कल्पना में वे खेतों में उगने वाली सारी फ़सलों को मानवीय रूप दे देते हैं और उनकी विशेषता बताते हैं। वे ये भी बताते हैं कि वो क्यों सुन्दर लग रही हैं। कवि केदारनाथ अग्रवाल जी अपनी कविता में नदी के तट पर भोजन ढूंढ रहे बगुले के साथ-साथ उस पक्षी का भी बहुत ही सुन्दर वर्णन करते हैं, जो नदी में गोता लगाकर अपना भोजन प्राप्त करता है।

उनके जाने का समय हो जाता है, उनकी ट्रेन आने वाली होती है। उन्हें इस बात का बहुत दुःख होता है कि उन्हें इस प्राकृतिक सौंदर्य से भरे गांव को छोड़कर फिर से नगर में जाना पड़ेगा। जहाँ रहने वाले लोग स्वार्थी एवं पैसे के लालची हैं। जिन्होंने गांव की इस सुंदरता को कभी देखा ही नहीं है। इस तरह हम कह सकते हैं कि कवि अपनी कविता के द्वारा अपने मन की बात कहने में पूरी तरह से सफल हुए हैं।

चंद्र गहना से लौटती बेर – Chandra Gehna Se Lauti Ber full Poem

देख आया चंद्र गहना।
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सजकर खड़ा है।

पास ही मिलकर उगी है
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सर पर चढ़ा कर
कह रही, जो छुए यह
दूँ हृदय का दान उसको।


और सरसों की न पूछो-
हो गयी सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह-मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।

देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।

और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वो भी लहरियाँ।
एक चांदी का बड़ा-सा गोल खम्भा
आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुप चाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी!

चुप खड़ा बगुला डुबाये टांग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले को डालता है!
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में!


औ’ यहीं से-
भूमि ऊंची है जहाँ से-
रेल की पटरी गयी है।
ट्रेन का टाइम नहीं है।
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ,
जाना नहीं है।

चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊंची-ऊंची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर उधर रीवां के पेड़
कांटेदार कुरूप खड़े हैं।

सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों;
मन होता है-
उड़ जाऊँ मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची-प्रेम कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे।

Dr. Jayant Shah,
Dr. Jitendra Pant,
Kedaranath Agrawal

Комментарии

Информация по комментариям в разработке

Похожие видео

  • О нас
  • Контакты
  • Отказ от ответственности - Disclaimer
  • Условия использования сайта - TOS
  • Политика конфиденциальности

video2dn Copyright © 2023 - 2025

Контакты для правообладателей [email protected]