जे श्री जगन्नाथ हरि देवा~रथयात्रा को पद~राग : सोरठ मल्हार~ताल : आडाचौताल(पुष्टिमार्गीय हवेली कीर्तन)

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जेश्रीजगन्नाथ हरि देवा ॥ रथ बैठे प्रभु अधिक बिराजत जगत करत सब सेवा ॥१ ॥ सनक सनंदन ओर ब्रह्मादिक इन्द्रादिक जुर आये ।। अपनी अपनी भेटसबे ले गगन विमानन छाये ॥२ ॥ रत्नजटित रथनीको लागत चंचल अश्व लगाये ।। नरनारी आनंदभये अति प्रमुदित मंगल गाये ॥ ३ ॥ गारीदेत दिवावत अपनपे यह विधि रहिं चलाये ।। रामराय श्रीगोवर्धनवासी नगर उडीसा आये ॥४ ॥

राग : सोरठ मल्हार
ताल : आडाचौताल

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