आखिर महिलाएं क्यों नहीं जाती शमशान घाट | भगवान श्री कृष्ण से जानकर से जानकर उड जायेंगे आपके होश
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नमस्कार दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आप सभी का हमारे इस यूट्यूब चैनल पर, दोस्तों हिंदू रीति रिवाज के तहत जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके अंतिम संस्कार के लिए उसे श्मशान भूमि लेजाया जाता है, और अपने यह देखा होगा कि महिलाएं शमशान घाट तक साथ कभी नहीं जातीं हैं, क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यूँ होता है और इसके पीछे क्या कारण है? जब भी किसी पुरुष या महिला कि मृत्यु होती है तो महिलाओं का योगदान केवल घर की चौखट तक ही रहता है, लेकिन शमशान घाट पर सारे कर्म कांड अथवा अंतिम अग्नि पुरुषों द्वारा ही दी जाती है, तो चलिए जानते हैं आखिर क्यों महिला शमशान घाट तक नहीं जाती और इसके पीछे मुख्य कारण क्या है, दोस्तों हिंदु धर्म में सोल्हवें संस्कार होते हैं, जिसमें मनुष्य की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार यानी कि सोलह संस्कार के रूप में पूरा किया जाता है, हिंदु धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार के समय कुछ नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती हैं जो कि महिलाओं पर आसानी से हावी हो सकती हैं, जिसके चलते पीड़ित महिलाएं किसी घोर बीमारी से ग्रस्त हो सकती हैं, आपने यह बात जरुर नोट की होगी कि मृत्यु का दुख सबसे ज्यादा महिलाओं में होता है, अगर सबसे ज्यादा अगर रोता हुआ दिखाई देगा तो वह ज्यादातर महिला ही होगी, क्यों कि महिलाओं का दिल काफी हद्द तक कोमल होता है, इसलिए महोलाओं को शमशान घट लेजाना उचित बात नहीं समझी जाती, क्यों कि महिलाएं अपने दुख और भी ज्यादा इज़हार कर सकती हैं, जिससे कि मृत आत्मा को भी दुख पहुँचता है और उन्हे मुक्ति मिलने में भी मुश्किल होती है, साथ ही साथ महिलाओं की सेहत पर भी बुरा असर पड़ सकता है, इसके इलावा जब शव को जलाया जाता है तो उस समय बहुत सी जहरीली गैन्से और कीटाणु वातावरण में शामिल होते हैं जिसके चलते पुरुष अपने बाल कटवाते हैं और नदी में स्नान करते हैं, लेकिन हिंदू धर्म में इस्त्रियों का बाल कटवाना अशुभ माना जाता है, साथ ही शमशान घाट में कुछ बुरी आत्माएँ वास करती हैं, जो कि महिलाओं के शरीर में प्रवेश करने की संभावना रखती हैं, इन सब कारणों के चलते महिलाओं का शमशान घाट जाना सही नही माना जाता हालांकि अब समय बदल गया है और आपने देखा होगा कि अब इस्त्रियाँ भी शमशान घाट जाने लगी हैं, एक जमाने में राजा महाराजा के पुत्र को पूरे राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था, बरसों बाद अब इस बात में बदलाव आया है और इस वर्तमान समय में कई माता पिता अपनी बेटियों को विरासत का अधिकार देते हैं, यह बात मृतक के अंतिम संस्कार से जुड़ी है, क्यों कि कहा जाता है कि जो विरासत का उत्तराधिकारी होता है उसे मृतक संस्कार के जुलूस का नेतृतव् करना चाहिए, लेकिन जब आस पड़ोस या रिश्तेदारों में से किसी पुरुष को अपनी बेटी एवम पत्नी की बजाए, मृतक को अग्नि देने के लिए कहा जाता है तो अब कोई सवाल नहीं करता है, लेकिन प्राचीन समय से प्रचलित मान्यता यह है कि पुत्र जन्म से मरण तक का सेतु होता है और मृत्यु के पश्चात् जन्म मरण के चक्र से मुक्ति शाश्वत आनंद हेतु एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन लोग इस बात पर अडिग हैं कि अगर कोई भी महिला के हाथ से दी गयी अग्नि से मृतक को मुक्ति मिलना संभव नहीं होगा, दोस्तों आपको यह जानकारी कैसी लगी कॉमेंट करके हमें अवशय बताएं धन्यवाद आपका कीमती समय इस वीडियो को देने के लिए, मिलते है एक और नये एपिसोड में तब तक सबको प्यार भरी नमस्कार।
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