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Скачать или смотреть Shri Aaditya Hridaya Stotram। श्री आदित्यहृदय स्तोत्रम्। पैतृक संपत्ति प्राप्त करने के लिए सुनें।

  • Astro Shubh Pandit ji
  • 2025-05-31
  • 319
Shri Aaditya Hridaya Stotram। श्री आदित्यहृदय स्तोत्रम्। पैतृक संपत्ति प्राप्त करने के लिए सुनें।
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‎आदित्यहृदय स्तोत्र’
‎
‎विनियोग
‎
‎ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्यहृदयभूतो ‎भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।
‎
‎ऋष्यादिन्यास
‎
‎ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। अनुष्टुपछन्दसे नमः, मुखे। आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि।
‎
‎ॐ बीजाय नमः, गुह्ये। रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो:। ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।
‎
‎करन्यास
‎
‎ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
‎
‎ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ विवस्‍वते अनामिकाभ्यां नमः।
‎
‎ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
‎
‎हृदयादि अंगन्यास
‎
‎ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट्।
‎
‎ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।
‎
‎आदित्यहृदय स्तोत्र
‎
‎ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌ ।
‎
‎रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥1॥
‎
‎दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌ ।
‎
‎उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
‎
‎राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌ ।
‎ेन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
‎
‎आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌ ।
‎
‎जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥4॥
‎
‎सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌ ।
‎
‎चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥5॥
‎
‎रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌ ।
‎
‎पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥6॥
‎
‎सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: ।
‎
‎एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥7॥
‎
‎एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
‎
‎पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
‎
‎आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌ ।
‎
‎सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
‎
‎हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌ ।
‎
‎तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌ ॥11॥
‎
‎हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: ।
‎
‎अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
‎
‎व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: ।
‎
‎घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
‎
‎आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:।
‎
‎कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
‎
‎नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: ।
‎
‎तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते ॥15॥
‎
‎नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: ।
‎
‎ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
‎
‎जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: ।
‎
‎नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
‎
‎नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।
‎
‎नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
‎
‎ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।
‎
‎भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
‎
‎तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
‎
‎कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
‎
‎तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे ।
‎
‎नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
‎
‎नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: ।
‎
‎पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
‎
‎एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: ।
‎
‎एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌ ॥23॥
‎
‎देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च ।
‎
‎यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
‎
‎एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
‎
‎कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
‎
‎पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌ ।
‎
‎एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
‎
‎अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
‎
‎एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌ ॥27॥
‎
‎एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा ॥
‎
‎धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌ ॥28॥
‎
‎आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌ ।
‎
‎त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌ ॥29॥
‎
‎रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌ ।
‎
‎सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌ ॥30॥
‎
‎अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।
‎
‎निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥
‎
‎इति श्रीवाल्मीकीये रामायणे युद्धकाण्डे अगस्‍त्‍यप्रोक्‍तमादित्‍यहृदयस्‍तोत्रं सम्‍पूर्णम् ।
‎
‎

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