The History of Bali fort :- राजपूतों में विधवा पुनर्विवाह का साक्षी हैं बाली का किला

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The History of Bali fort/ बाली किले का इतिहास:- राजपूतों में विधवा पुनर्विवाह का साक्षी हैं बाली का यह किला
इतिहास इतिहास की किताबों से मिटाये जा चुके मेवाड़ व गोडवाड के अनसुने इतिहास का परिचय कराते हैं।
बाली का किला 700 वर्ष पुराने इतिहास को बयां करता हुआ नजर आता है एक ऐसा इतिहास जो कुछ छुपाया गया तो कुछ किवदंती बन गई पश्चिमी राजस्थान में मारवाड़ और मेवाड़ की सीमा पर बसे कस्बे का इतिहास
फालना से रणकपुर सड़क मार्ग के किनारे पर स्थित है प्राचीन गौरवमय इतिहास की गवाही देता हुआ किला दिखाई देता है जो अब खंडहर का रूप ले लिया है जीर्ण-शीर्ण हो रहा बाली का किला केवल राजपूती शौर्य की याद नहीं दिलाता है बल्कि यह स्थान है जहां पहली बार सामंती व्यवस्था में हीन दृष्टि से देखे जाने वाले विधवा के पुनर्विवाह परंपरा की शुरुआत की थी
चित्तौड़ के नायक मालदेव सोनीगरा की विधवा पुत्री बालादे का विवाह चित्तौड़ के राजा हमीर सिंह सिसोदिया करवाया गया यह जानकारी कर्नल टॉड द्वारा रचित राजस्थान के इतिहास से मिलती है विधवा पुनर्विवाह के कारण मेवाड़ में राणा हमीर सिंह के खिलाफ विद्रोह भड़क गया लेकिन हम्मीर सिंह अब बालादे को छोड़ने को तैयार नहीं थे तथा अकेले मेवाड़ नहीं जाना चाहता थे तब बाला दे से परामर्श कर सोनीगरा चौहान हमीर सिंह सिसोदिया के मध्य एक संधि होती है तथा संधि के तहत सोनीगरा चौहानों ने एक जालंधर नाम का सरदार तथा बाली का किला बालादे को दहेज में दिया था तब हम्मीर सिंह सिसोदिया ने बालादे को अपनी पत्नी स्वीकार किया
बालादे व हम्मीरसिंह बाली में हि रहने लगे तब हम्मीर को चाहने वाले मेवाड़ से कुछ सामंत सरदार बाली आकर रहने लगे
बाली किले निर्माण में वीरमदेव चौहान उनके बाद नाडोल के चौहान राजा सर्वबली बालदेव जिन्हें बालाजी भी कहा जाता है उन्होंने विक्रम संवत 1240 के आसपास इस किले का निर्माण करवा कर इसे पूरा किया यह किला विशाल पत्थरों व मिट्टी की पक्की ईंटों से निर्मित है प्रवेश द्वार गढ़ निवास के बीच काफी लंबा चौड़ा स्थान छोड़ा गया है विशाल परीक्षेत्र है किले में सुरक्षा स्थल 10000 सैनिकों के लिए मुंडेर रक्षा नालियां बनी हुई है किले में आपातकालीन बावड़ी नुमा हौज बना हुआ है किले में दैनिक कार्य के लिए उस समय भी सुलभ सुविधा भी उपलब्ध थी गोडवाड प्रान्त में यह किला घाणेराव, नारलाई,देसुरी, किलो से अधिक मजबूत है बाली का यह किला जोधपुर,सियाणा,जालौर,सिरोही,कुंभलगढ़ के बीच एक हृदय स्थल है
अंग्रेजी शासन समय में यहां पर स्वतंत्र सेनानियों को नजरबंद रखा गया था यहां के प्रमुख स्वतंत्र सेनानी छोटमल सुराणा व उनके साथियों को यही नज़रबंद रखा गया था वर्तमान में यह दुर्ग राजस्थान सरकार के अधीन है तथा इस दुर्ग को अब जेल के रूप में उपयोग में लिया जा रहा है
किले में बोल माजीसा का मंदिर भी है तथा शीतला माता का मंदिर भी है जहां पर शीतला सातम के दिन भव्य मेले का आयोजन होता है तथा गैर नृत्य का आयोजन होता है
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