एक किताब पुचकू के लिए : Learn Hindi with subtitles - Story for Children and Adults "BookBox.com"

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Puchku has run out of books to read. Then she discovers more books in the top shelf of the library bookcase. But Puchku is small, and the bookcase tall. How will she ever get to her beloved books?
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एक किताब पुचकू के लिए
लेखिका - दीपांजना पाल
“पुचकू! नहा लो!”
“पुचकू! अपना खाना ख़तम करो!”
“पुचकू! कक्षा में जाओ!”
“पुचकू! अपना होमवर्क पूरा करो!”
“मगर पुचकू है कहाँ?”
पुचकू किताब पढ़ने में व्यस्त है।
पुचकू हमेशा पढ़ती रहती है।
पन्ने के बाद पन्ना,
एक किताब के बाद दूसरी ​किताब,
एक के बाद एक,
वह सारी की सारी किताबें पढ़कर
ख़त्म कर चुकी है।
“पर तुम हमेशा
पढ़ती क्यों रहती हो पुचकू?”
बोल्टू बोला।
“इधर आओ ना,
कार्टून देखते हैं,”
डोडला ने पुकारा।
“किताब पढ़ने का तो मज़ा कुछ और ही है!”
पुचकू बोली।
मगर आज पुचकू एक उलझन में थी।
वह सारी किताबें पढ़ चुकी थी।
“अब मैं क्या करूँ?
और कोई किताब नहीं बची है पढ़ने को।”
पुचकू रोने को हो आयी।
मगर ​तभी, वहाँ क्या है?
पुचकू की नज़र ऊपर गयी तो।
एक नहीं, दो नहीं, पूरे तीन खाने,
किताबों से भरे हुए!
“और बहुत सी किताबें!”
पुचकू ख़ुशी से झूम उठी।
मगर एक ​गड़बड़ थी।
पुचकू तो छुटकी सी थी,
और पुस्तकों की अलमारी ​के वे खाने ऊँचे थे।
अब पुचकू​ पुस्तकों ​तक कैसे पहुँच पाएगी?
क्या वह रस्सी​ ​का ​उपयोग ​करे?
या फिर माँ की साड़ी के सहारे
ऊपर चढ़ जाए?
और अगर वह कमरे में रखी
कुर्सियों और मेज़ों का उपयोग करे तो?
पुचकू को एक तरकीब सूझी।
उसने बोल्टू और डोडला को
मदद के लिए बुला​ लिया।
चुपचाप, बिना कोई आवाज़ किये,
सब एक के ऊपर ​एक ​चढ़ ​गए।
तभी, सब गड़बड़ हो गई।
आ… ​ह!
“क्या हो रहा है यहाँ?”
बहुत ही लम्बी सी लाइब्रेरियन की आवाज़ ​गूँजी।
उसने पुचकू को ​धीरे से ​नीचे उतारा।
बोल्टू और डोडला नौ दो ग्यारह हो चुके थे।
पुचकू ​ने लगभग ​हाथ में आई किताब ​की ​ओर
दु:खी होकर देखा।
“क्या मैं कुछ मदद करूँ?”
लम्बी लाइब्रेरियन ने कहा।
“मैं तो बस अलमारी पर चढ़ने की
कोशिश कर रही थी,
क्योंकि मेरे पास पढ़ने के लिए
किताबें ही नहीं बची हैं,”
पुचकू ने रुआँसी होकर कहा।
“तुमने मुझसे क्यों नहीं कहा?”
लम्बी लाइब्रेरियन बोली,
“जब तक मैं यहाँ हूँ,
तुम्हें अलमारी पर चढ़ने की
कोई ज़रुरत नहीं।
क्या मैं तुम्हें ऊपर उठाऊँ?”
पुचकू​ ​ने सर हिलाया।
“मैं यह वाली लूँगी,
और यह और यह भी।”​ ​
और ख़ुशी से बोली, “धन्यवाद।”
“वह वाली भी ले लो।
जब मैं छोटी थी
तब मैंने इसे बड़े चाव से पढ़ा था।”
बहुत लम्बी लाइब्रेरियन बोली।
“आप भी कभी छोटी थीं?”
पुचकू​ ​ने पूछा।
“ओह हाँ, तुमसे भी छोटी,"
बहुत लम्बी लाइब्रेरियन बोली।
"फिर मैं बड़ी हुई।
तुम भी हो जाओगी।
मगर तब तक
तुम्हें जिस किताब की भी ज़रुरत हो
मुझसे ​माँग लिया करो।
मैं तुम्हें लाकर दूँगी, ठीक है न?”
मगर क्या पुचकू ने सुना?
जी नहीं।
वह तो किताब में रम गई।

Author : Deepanjana Pal
Illustrations : Rajiv Eipe
Translation : Nagraj Rao
Narration : Neha Gargava
Music : Rajesh Gilbert
Animation : BookBox

This story has been provided for free under the CC-BY license by Pratham Books, which is a not-for-profit children's books publisher with a mission to see "A book in every child's hand". Visit http://www.prathambooks.org/ and http://blog.prathambooks.org/p/cc-tra... to know more. Artwork has been adapted from the original book while the animation, music and narration have all been done by BookBox. This story artwork is originally illustrated by Rajiv Eipe.


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