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Скачать или смотреть रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 61 - गोकुल की याद | उद्धव की बृज यात्रा | श्री कृष्ण और उद्धव वार्ता

  • Tilak
  • 2020-12-15
  • 2548504
रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 61 - गोकुल की याद | उद्धव की बृज यात्रा | श्री कृष्ण और उद्धव वार्ता
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Описание к видео रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 61 - गोकुल की याद | उद्धव की बृज यात्रा | श्री कृष्ण और उद्धव वार्ता

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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 61 - Gokul Ki Yaad | Udhav Ki Bruj Yatra | Shri Krishna Udhav Vaarta

श्रीकृष्ण से जुड़ी कथाओं में सबसे गूढ प्रसंग उद्धव की बृज यात्रा का है। जिसमें एक और आध्यात्मिकता और दर्शन है तो दूसरी ओर सरल सच्चा प्रेम जो किसी तर्क वितर्क के फेर में नहीं पड़ना चाहता। उद्धव कृष्ण के चचेरे भाई थे। देवताओं के गुरु बृहस्पति उनके भी गुरु थे इस कारण वह बहुत ही ज्ञानी थे। बस, यही ज्ञान उद्धव में इतना अहंकार भर देता है कि वह यह जानते हुए कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार हैं, वह उन्हें ब्रह्मज्ञान की परिभाषा समझाते हैं। श्रीकृष्ण कथा में उद्धव का प्रसंग तब जुड़ता है, जब मथुरा के राजकाज में व्यस्त हो जाने के बावजूद श्रीकृष्ण को गोकुल की याद आती हैं। श्रीकृष्ण को प्रतीत होता है कि यादों का एक समन्दर है जिसकी लहरों में राधा का मौन चेहरा उभरता है जो बिना कुछ कहे केवल देखता रहता है और फिर उन्हीं लहरों में गुम हो जाता है। यह बात श्रीकृष्ण को और अधिक परेशान करती है। वह कहते हैं कि राधा का मौन मेरी जान ले लेगा। तब राधा की एक सखी श्रीकृष्ण को स्मरण कराती है कि गोकुल छोड़ने से पहले तुमने ही तो राधा से वचन लिया था कि वह आँसू नहीं बहायेगी। अगर तुमने यह वचन न लिया होता तो वह किसी से अपने हृदय की बात बोलकर , थोड़ा रोकर अपनी जी तो हलका कर लेती। श्रीकृष्ण के नयनों से दो आँसू टपकते हैं। तभी वहाँ उद्धव आ जाते हैं और धरती पर गिरने से पहले ये नैननीर अपनी अंजुलि में भर लेते हैं। उद्धव कहते हैं कि यदि यह आँसू धरती पर गिर जाते तो प्रलय आ जाती। गंगा का वेग तो भगवान शिव ने रोक लिया था किन्तु इन अश्रुओं का वेग तो शिव जी भी न रोक पाते। श्रीकृष्ण अपने मन की व्यथा उद्धव से कहते हैं। वह कहते हैं कि मैं चाहकर भी बृज को बिसरा नहीं पा रहा हूँ। बृज की वो कुंज गलियॉं, गोपिकाओं का स्नेह, यशोदा मैया की लाठी, नन्द बाबा का दुलार, राधा का निश्चल प्रेम, वो सारी यादें मुझे रूला रही हैं। श्रीकृष्ण उद्धव से अनुरोध करते हैं कि आप महाज्ञानी हैं। मुझे इस भंवर से निकालें। इसपर उद्धव विस्मयपूर्वक कहते हैं कि क्या अब मुझे परब्रह्म को स्मरण करना होगा कि उनमें ही सारा ब्रह्माण्ड समाया हुआ है और उन्हें किसी मानव की भाँति विचलित नहीं होना चाहिये। श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस समय मैं स्वयं को मोहमाया से बाहर नहीं निकाल पा रहा हूँ और उद्धव से पूछते हैं कि क्या तुम्हें किसी से कोई मोह नहीं। तब उद्धव अपने ज्ञान में अहंकार में कहते हैं कि मोहमाया अज्ञानियों को घेरती है। जो ज्ञानी होता है, उसे मोहमाया भटका नहीं सकती। ज्ञान पत्थर की वो चट्टान है जो तूफान में भी जमी रहती है। अब श्रीकृष्ण उद्धव के ज्ञान का अहंकार तोड़ने का निर्णय लेते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं सदा से अज्ञानी हूँ। गोकुल में गैया चराता रहा हूँ तो कभी गुरुकुल जाने का अवसर नहीं मिला। उद्धव संशय में पडकर कहते हैं कि मेरे गुरु बृहस्पति ने तो बताया था कि श्रीकृष्ण परब्रह्म के अवतार हैं इसलिये मैं सदैव से ध्यान लगाकर आपकी पूजा करता रहा हूँ। तब श्रीकृष्ण उद्धव को उलझन में डालने के लिये कहते हैं कि क्या तुमने ध्यान लगाते समय मेरे हाथ, पैर अथवा चेहरा देखा है। उद्धव कहते हैं कि भगवान तो हर जीव में हैं इसलिये उन्हें या तो हर जीव में देखा जा सकता है अथवा निराकार रूप में। उद्धव अपनी ज्ञान भरी बातें जारी रखते हैं। वह कहते हैं कि गुरु बृहस्पति ने मुझे बताया है कि पिछले जन्मों के अच्छे कर्मो के कारण पुण्य आत्माओं को इस जन्म में गोपिकाओं के रूप में आने का सौभाग्य मिला है ताकि वह प्रभु के सन्निकट रह सकें। वह श्रीकृष्ण से कहते हैं कि आपको ऐसी पुण्य आत्माओं को प्रेम जाल नहीं फँसाना चाहिये था बल्कि गोकुल छोड़ने से उन्हें वास्तविक निराकार ब्रह्म का ज्ञान प्रदान करना चाहिये था ताकि वह परम शान्ति को प्राप्त करतीं। श्रीकृष्ण पूछते हैं कि अब मैं इस गलती को कैसे सुधार सकता हूँ। उद्धव कहते हैं कि आप गोपियों की तरफ मायामोह की लहरें न भेज कर, ज्ञान का उजाला भेजें ताकि वह आपके सच्चिदानन्द स्वरूप के दर्शन कर सकें। उद्धव की बातें सुनकर श्रीकृष्ण निश्चय करते हैं कि अब वह अपने इस भक्त को ज्ञान के अहंकार से बाहर निकालकर उसका कल्याण करेंगे।
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